लेटरल भर्ती के फैसले पर फिलहाल लगी रोक, UPSC अध्यक्ष को सरकार ने लिखा पत्र; जानें पूरा मसला

Lateral Entry Issue : नौकरशाहों की भर्ती में ‘लेटरल एंट्री’ से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण छिन जाने के राहुल गांधी के दावे के बाद से जहां एक ओर सियासी घमासान छिड़ा। वहीं लेटरल भर्ती के फैसले पर फिलहाल रोक लग गई है।

Lateral Entry UPSC

लेटरल एंट्री पर सरकार का बड़ा फैसला।

Cancelling The Lateral Entry Advertisement: नौकरशाहों की भर्ती में ‘लेटरल एंट्री’ को लेकर जहां एक ओर सियासी उठापटक का दौर तेज हो गया, वहीं दूसरी ओर लेटरल भर्ती के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। आखिर इस पर रोक लगाने की वजह क्या है, आपको समझाते हैं। दरअसल, इस मसले पर उस वक्त सियासत गरमा गई थी, जब राहुल गांधी ने दावा किया कि नौकरशाहों की भर्ती में ‘लेटरल एंट्री’ से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण छिन गया है। अब मंत्रालय ने यूपीएससी अध्यक्ष को पत्र लिखा है।

सरकार ने यूपीएससी के अध्यक्ष को लिखा पत्र

लेटरल एंट्री को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग को पत्र लिखा है। मंत्री ने पत्र में संघ लोक सेवा आयोग से लेटरल एंट्री के आधार पर निकाली गई भर्तियों को वापस लेने को कहा है। पत्र में कहा गया है कि लेटरल एंट्री के आधार पर निकाली गई भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है, जिसे ध्यान में रखते हुए इसे वापस लिया जाए।
पत्र में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उच्च पदों पर लेटरल एंट्री के लिए संविधान में निहित सामाजिक न्याय और आरक्षण पर जोर देना चाहते हैं। इसलिए इस विज्ञापन को वापस लिया जाए। केंद्र ने पत्र में सामाजिक न्याय के प्रति संवैधानिक जनादेश को बनाए रखने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। केंद्र ने कहा कि हाशिए पर मौजूद योग्य उम्मीदवारों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिले, इसकी जरूरत है।
बीते 17 अगस्त को संघ लोक सेवा आयोग ने लेटरल एंट्री के आधार पर नियुक्तियों के लिए विज्ञापन जारी किए थे जिसका कांग्रेस सहित विपक्ष ने पुरजोर विरोध किया था। विपक्ष का कहना है कि इससे आरक्षण खत्म हो जाएगा और सामाजिक न्याय की बात अधूरी रह जाएगी। बीते दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर इसका विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार लेटरल एंट्री के जरिए दलितों, आदिवासियों और पिछड़ा वर्ग से उनका आरक्षण छीनने की कोशिश कर रही है, जो कि स्वीकार्य नहीं है।

कब शुरू की गई थी लेटरल एंट्री की अवधारणा?

‘लेटरल एंट्री’ की अवधारणा पहली बार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान शुरू की गई थी और 2005 में उसके द्वारा स्थापित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसका जोरदार समर्थन किया था। सरकारी सूत्रों ने रविवार को यह बात कही।

किस विज्ञापन के बाद गरमाई थी सियासत?

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने विभिन्न सरकारी विभागों में विशेषज्ञों की भर्ती के वास्ते 45 पदों के लिए शनिवार को विज्ञापन दिया था। इन पदों में 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव के पद हैं। इन पदों को अनुबंध के आधार पर लेटरल एंट्री के माध्यम से भरा जाना है। हालांकि अब इस विज्ञापन को रद्द कर दिया गया है।
इस फैसले की विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की और दावा किया कि इससे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण के अधिकार कमजोर होंगे। सूत्रों ने कहा कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि ‘लेटरल एंट्री’ की अवधारणा पहली बार कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान शुरू की गई थी और 2005 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में स्थापित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका जोरदार समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि सरकार ने ऐतिहासिक रूप से बाहरी प्रतिभाओं को आमतौर पर सलाहकार भूमिकाओं में, लेकिन कभी-कभी प्रमुख प्रशासनिक कार्यों में भी उच्च स्तरों पर शामिल किया है।
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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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