Morbi Bridge Collapse: पुल को नहीं मिला था नगर पालिका का 'फिटनेस' सर्टिफिकेट, अफसर बोले- सरकार को न थी जानकारी

Morbi bridge collapse: शहर में यह पुराना पुल शाम करीब साढ़े छह बजे लोगों से खचाखच भर था। इसके टूट जाने के बाद कम से कम 150 लोगों की जान जाने की आशंका है। टाइम्स नाउ नवभारत रिपोर्टर के मुताबिक, सुबह साढ़े सात बजे तक घटनास्थल से 141 लाशें बरामद की गई हैं, जबकि 50 लोग जख्मी हुए।

morbi cable bridge accident

गुजरात के मोरबी शहर में माच्छू नदी पर केबल सस्पेंशन ब्रिज टूटने के बाद नाव से टीमें रेस्क्यू ऑपरेशन चलाते हुए। (AP)

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो

Morbi bridge collapse: गुजरात (Gujarat) के मोरबी (Morbi) शहर में लगभग 143 साल पुराना जो केबल सस्पेंशन ब्रिज सैकड़ों लोगों के लिए मौत का पुल बन गया, वह मरम्मत से जुड़े काम के बाद चार दिन पहले ही आम जनता के लिए खोला गया था। माच्छू नदी (Machchu River) पर बने इसे पुल का मरम्मत कार्य एक प्राइवेट कंपनी की ओर से सात महीने तक किया गया था। हालांकि, सबसे हैरानी की बात यह है कि इस पुल को नगर पालिका का ‘‘फिटनेस सर्टिफिकेट’’ नहीं मिला था।

मोरबी नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह जाला ने इस बाबत समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘पुल को 15 साल के लिए संचालन और रख-रखाव के लिए ओरेवा कंपनी को दिया गया था। इस साल मार्च में इसे मरम्मत के लिए जनता के लिए बंद कर दिया गया था, जबकि 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर मरम्मत के बाद इसे फिर से खोल दिया गया था।’’

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उन्होंने आगे कहा, "मरम्मत से जुड़ा काम पूरा होने के बाद इसे जनता के लिए खोल दिया गया था। वैसे, स्थानीय नगर पालिका ने अभी तक (मरम्मत कार्य के बाद) कोई फिटनेस प्रमाण पत्र जारी नहीं किया था।’’

जाला ने अंग्रेजी चैनल एनडीटीवी को बताया, "यह सरकारी टेंडर था। ग्रुप को पुल के खुलने से पहले रेनोवेशन के बारे में ब्यौरा देना था और क्वालिटी चेक कराना था, पर ऐसा न हुआ। सरकार को इस बारे में जानकारी नहीं थी।"

जिला कलेक्ट्रेट की वेबसाइट पर पुल के विवरण के अनुसार, ‘‘यह एक "इंजीनियरिंग चमत्कार" था और यह केबल पुल ‘‘मोरबी के शासकों की प्रगतिशील और वैज्ञानिक प्रकृति" को प्रतिबिंबित करने के लिए बनाया गया था।

सर वाघजी ठाकोर ने 1922 तक मोरबी पर शासन किया। वह औपनिवेशिक प्रभाव से प्रेरित थे और उन्होंने पुल का निर्माण करने का फैसला किया जो उस समय का "कलात्मक और तकनीकी चमत्कार" था।

पुल निर्माण का उद्देश्य दरबारगढ़ पैलेस को नज़रबाग पैलेस (तत्कालीन राजघराने के निवास) से जोड़ना था। कलेक्ट्रेट वेबसाइट की मानें तो पुल 1.25 मीटर चौड़ा था और इसकी लंबाई 233 मीटर थी। पुल का उद्देश्य यूरोप में उन दिनों उपलब्ध नवीनतम तकनीक का उपयोग करके मोरबी को एक विशिष्ट पहचान देना था।

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अभिषेक गुप्ता author

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