2 जून 1995 का वह दिन,जिसने मुलायम-मायावती को बना दिया दुश्मन, फिर 24 साल बाद टूटी दीवार

Mulayam Singh Yadav Death: मुलायम सिंह यादव और मायावती का राजनीतिक नाता ऐसा रहा है कि एक समय दोनों ने मिलकर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी। लेकिन 2 जून 1995 की घटना ने उस रिश्ते को ही खत्म कर दिया। उस दिन गेस्ट हाउस कांड में जो हुआ, उसके बाद दोनों नेताओं के बीच दूरियां बन गई।

मुख्य बातें
  • साल 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने दलित-ओबीसी-मुस्लिम गठजोड़ के साथ चुनाव लड़ा था।
  • सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद भाजपा सरकार नहीं बना पाई थी। और सपा-बसपा की सरकार बनीं।
  • मुलायम के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार में दो साल बाद ही दरार आनी शुरू हो गई थी।
Mulayam Singh Yadav Death: भारतीय राजनीति में पिछले 5 दशक से लगातार अहम भूमिका निभाने वाले वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav)के निधन पर बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती (Mayawati) ने शोक संवेदना जाहिर की है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है कि समाजवादी पार्टी के व्योवृद्ध नेता व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव जी के आज निधन हो जाने की खबर अति-दुःखद है। उनके परिवार व सभी शुभचिन्तकों के प्रति मेरी गहरी संवेदना।'
मुलायम सिंह यादव और मायावती का राजनीतिक नाता ऐसा रहा है कि एक समय दोनों ने मिलकर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी। लेकिन 2 जून 1995 की घटना ने ऐसा भूचाल लाया कि मायावती और मुलायम सिंह यादव को दोस्ती, दुश्मनी में बदल गई। और यह दुश्मनी ऐसी चली कि 24 साल तक दोनों एक दूसरे से दूर रहे। तो सवाल यही है कि 2 जून 1995 को ऐसा क्या हुआ था कि जिससे दोनों नेता एक दूसरे के राजनीतिक दुश्मन बन गए।
गेस्ट हाउस कांड (Guest House) के नाम से जानी जाती है घटना
साल 1993 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में वहीं प्रयोग किया था गया था, जो कि साल 2019 के लोक सभा चुनाव में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने दोहराया। यानी मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने दलित-ओबीसी-मुस्लिम गठजोड़ के साथ चुनाव लड़ा था। और उसका असर भी हुआ, चुनाव में सपा को जहां 109 सीटें मिलीं वहीं बसपा के 67 प्रत्‍याशी चुनाव जीते । दोनो दलों ने भाजपा (BJP)के 177 सीटें जीतने के बाद भी दूसरे सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बना ली। और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने।
लेकिन यह गठबंधन ज्यादा दिन चल नहीं पाया। और ढाई साल बाद ही लड़खड़ाने लगा। एक तरफ मुलायम सिंह यादव को लगता था कि कांशीराम कभी भी उनकी सरकार गिरा सकते हैं। दूसरी तरफ मायावती को लगता था कि मुलायम सिंह यादव बसपा विधायकों को तोड़ने में लगे हुए। इस बीच कांशीराम-मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला कर लिया। और एक जून को मायावती ने मुलायम सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। और उसके बाद उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में जो हुआ, उसे एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है।
2 जून बना काला अध्याय
तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा को एक जून को मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का समर्थन पेश किया। और उसके अगले दिन यानी 2 जून, 1995 मायावती ने लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में बीएसपी (BSP) विधायकों की एक बैठक बुलाई। उस दिन बैठक खत्म होने के बाद, मायावती आगे की चर्चा के लिए कुछ प्रमुख पार्टी विधायकों के साथ दूसरे कमरे में चली गई। आगे की रणनीति पर बसपा में माथा पच्ची चली रही थी कि शाम 4 बजे के करीब 200 लोगों की भीड़ ने गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया। आरोप है कि भीड़ में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के विधायक और समर्थक शामिल थे। सपा कार्यकर्ता कमरे में बंद मायावती पर भी हमला करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन पुलिस कर्मियों और कुछ भाजपा नेताओं की वजह से मायावती हमले से बच पाई। इसी बीच बसपा के कई नेताओं को चोटें आई। इसी घटना को गेस्ट हाउस कांड कहा जाता है। और उसके बाद से दोनों नेताओं में एक ऊंची दीवार खिंच गई।
2019 में अखिलेश ने तोड़ी दीवार
मुलायम सिंह यादव और मायावती के बीच यह खाई ऐसी बनी कि फिर अगले 24 साल दलित-ओबीसी-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कोशिशें परवाह नहीं चढ़ पाई। लेकिन 24 साल बाद जब 2019 के लोक सभा चुनाव होने वाले थे, तो अखिलेश यादव ने भाजपा से मुकाबले के लिए एक बार फिर मायावती को मना लिया। और सपा-बसपा ने करीब 26 साल मिलकर चुनाव लड़ा। हालांकि इन चुनावों में इस बार यह गठजोड़ भाजपा को पटखनी नहीं दे पाया।
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प्रशांत श्रीवास्तव author

करीब 17 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ हूं। और इस दौरान मीडिया की सभी विधाओं यानी टेलीविजन, प्रिंट, मैगजीन, डिजिटल और बिजनेस पत्रकारिता में काम कर...और देखें

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