Mulayam Singh Yadav Death:मुलायम को रह गई इस बात की कसक,अखिलेश को दी थी बड़ी नसीहत

Mulayam Singh Yadav Death: मुलायम सिंह यादव ने अपने 55 साल के राजनीतिक जीवन, सभी प्रमुख ऊंचाइयों को छुआ। वह 7 बार सांसद और 8 बार विधायक रहे। लेकिन इसके बावजूद उनके मन में प्रधानमंत्री नहीं बन पाने की कसक रह गई । असल में उनके राजनीतिक करियर में ऐसे मौके दो बार आए थे, लेकिन दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम की वजह से उनकी इच्छा अधूरी रह गई।

मुख्य बातें
  • मुलायम सिंह यादव का प्रधानमंत्री बनने की रेस में नाम पहली बार साल 1996 में आया था।
  • लेकिन बाद में एच.डी.देवगौड़ा के नाम पर सहमति बनी और मुलायम सिंह के हाथ से मौका छूट गया।
  • 2017 में यूपी में विधान सभा में हार के बाद मुलायम ने अखिलेश यादव को आड़े हाथ लिया था।
Mulayam Singh Yadav Death:समाजवादी पार्टी के संस्थापक, पूर्व रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav ) का निधन हो गया है। मुलायम का जीवन एक ऐसे खांटी नेता का रहा है, जो 3 बार मुख्यमंत्री रहने के बाद भी कभी जमीन से नहीं कटे। उन्हें मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री रहते हुए भी जमीन से नाता नही तोड़ा और उसी का असर था कि उन्हें यूपी की हर सीट के राजनीतिक समीकरण की नब्ज पता थी। मुलायम सिंह यादव ने अपने 55 साल के राजनीतिक जीवन, सभी प्रमुख ऊंचाइयों को छुआ, लेकिन इसके बावजूद उन्हें एक बात की हमेशा कसक रही कि वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।असल में उनके जीवन में दो बार ऐसे मौके आए, जब वह प्रधानमंत्री की कुर्सी के बेहद करीब पहुंच गए थे। लेकिन ऐन वक्त पर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav), शरद यादव जैसे नेताओं का साथ नहीं मिलने के कारण, उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई। खास बात यह है कि मुलायम सिंह यादव ने कभी अपनी कसक को छुपाया नहीं..
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1996 में मिला था पहली बार मौका
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मुलायम सिंह यादव का प्रधानमंत्री (Prime Minister) बनने की रेस में नाम पहली बार साल 1996 में आया था। उस दौरान लोकसभा चुनाव में देश में त्रिशंकु जनादेश आया था। कांग्रेस को केवल 141 सीटें मिली थीं। जबकि भारतीय जनता पार्टी के खाते में 161 सीटें आई थीं। ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला। लेकिन बहुमत नहीं होने से बाजपेयी सरकार 13 दिनों में ही गिर गई। ऐसे में दूसरे दलों ने सरकार बनाने की कवायद शुरू की। कांग्रेस बहुमत से 130 से ज्यादा सीटें कम पाने के कारण, सरकार का नेतृत्व करने को तैयार नहीं थी। ऐसे में साल 1989 में सरकार बना चुके वी.पी.सिंह पर सबकी नजर थी। लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।
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