News Ki Pathshala: हल्द्वानी में सड़क पर मुसलमान..बुलडोज़र भी तैयार..क्या होगा? मुसलमानों को भड़काने वाला टूलकिट आने लगा?
Haldwani musluim: हल्द्वानी में अच्छी खासी संख्या में मुस्लिम वोटर्स भी है। और इसी वजह से ओवैसी ने उत्तराखंड की 70 सीटों में जो 4 सीटें चुनाव लड़ने के लिए चुनी थीं।
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हल्द्वानी में सड़क पर मुसलमान.. बुलडोज़र भी तैयार.. क्या होगा?
हल्द्वानी में मुसलमानों को भड़काने वाला टूलकिट आने लगा?
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अगर सुप्रीम कोर्ट भी हाई कोर्ट की बात को मानता है तो हम तो यहां के लोगो से यह कहते है जान चली जाए पर जगह नही छोडनी है, हालांकि इन दोनों पार्टियों को बहुत कम वोट मिला था लेकिन इनकी कोशिश हमेशा इस इलाके में पकड़ बनाने की रही है। क्योंकि हल्द्वानी में अच्छी खासी संख्या में मुस्लिम वोटर्स भी है। और इसी वजह से ओवैसी ने उत्तराखंड की 70 सीटों में जो 4 सीटें चुनाव लड़ने के लिए चुनी थीं, उसमें एक सीट हल्द्वानी की भी थी। हल्द्वानी सीट पर वोटों का समीकरण क्या है वो भी आपको बताता हूं
कुल वोटर - 1 लाख 50 हजार 634 वोट
मुस्लिम वोटरों की संख्या - करीब 43 हजार
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उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से हल्द्वानी में 4 बार चुनाव हो चुके हैं।
हल्द्वानी सीट-
- 4 में से 3 चुनाव कांग्रेस ने जीते
-मौजूदा विधायक- कांग्रेस
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कांग्रेस की इंदिरा ह्रदयेश जीती
- पहली बार 2002 में हुए चुनाव में इंदिरा ह्रदयेश की जीत हुई
- दूसरी बार 2007 में बीजेपी के बंशीधर भगत की जीत हुई
- फिर 2012 और 2017 में इंदिरा ह्रदयेश यहां से विधायक बनीं
- 2021 में इंदिरा ह्रदयेश के निधन के बाद उनके बेटे को उतारा गया
- 2022 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में हल्द्वानी सीट से समाजवादी पार्टी और AIMIM ने भी अपना उम्मीदवार उतारा।
- ये पहला मौका था जब AIMIM ने हल्द्वानी सीट पर अपना उम्मीदवार उतारा था
- क्योंकि हल्द्वानी सीटे पर मुस्लिम मतदाता भी अहम भूमिका में हैं।
- हल्द्वानी में इंदिरा नगर, नई बस्ती, मंडी और लाइन नंबर वाले वनभूलपुरा के इलाके में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी संख्या में है
- हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के आस-पास मुस्लिम बहुल इलाके हैं।
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अब आप देखिए जिन नेताओं और जिन पार्टियों का उत्तराखंड से कोई लेना देना नहीं, वो भी इसमें राजनीति कर रही है, क्योंकि वो इसमें धर्म को देख रही हैं, जैसे महबूबा मुफ्ती, उन्होंने कहा कि बीजेपी जानबूझकर मुसलमानों को बेघर कर रही है।
महबूबा मुफ्ती ये नैरेटिव बना रही है कि मुस्लिमों को बेघर किया जा रहा है, जबकि सच ये है कि उस इलाके में हिन्दू और मुसलमान दोनों रहते हैं, वहां मस्जिद भी है और मंदिर भी। मैं आपको हल्द्वानी के उस इलाके से एक रिपोर्ट दिखाता हूं यहां मंदिर में लोग प्रार्थना कर रहे हैं कि अतिक्रमण की कार्रवाई से सबके घर बच जाए
जो लोग हल्द्वानी के मामले को धर्म से जोड़ रहे हैं, और दूसरा कुछ उन्हें नजर नहीं आ रहा। क्या उन्हें ये समझ में नहीं आता कि उत्तराखंड में अवैध अतिक्रमण का खतरा कितना बड़ा है। आप सभी को समझना चाहिए कि उत्तराखंड बॉर्डर स्टेट है, जिसके जिलों की सीमाएं चीन और नेपाल से लगती हैं। आपको उत्तराखंड का मैप दिखाता हूं
पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी- चीन बॉर्डर से जुड़े
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अवैध अतिक्रमण में पता नहीं होता कि कौन आदमी कहां का है। बॉर्डर स्टेट होने की वजह से खतरा ज्यादा रहता है। कहीं अगर डेमोग्राफी बदल रही है तो सरकारें अलर्ट हो जाती हैं। पिछले साल ही उत्तराखंड सरकार ने माना था कि उत्तराखंड में तेजी से डेमोग्राफी बदल रही है और इसकी वजह से एक समुदाय को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
पिछले साल उत्तराखंड सरकार ने पुलिस और प्रशासन को ये आदेश दिया था कि वो देखे कि उनके जिले में कहीं अवैध रूप से जमीन की डील तो नहीं हो रही। कहीं लोग डर की वजह से या दवाब में अपनी जमीन तो नहीं बेच रहे। कहीं बाहरी लोग जिनका क्रिमिनल रिकॉर्ड है वो तो नहीं आकर बस रहे। पुलिस को पीस कमेटी की बैठकें बढ़ाने को कहा, ये भी आदेश दिया कि वो उन इलाकों कि चिन्हित करें जहां अपराध ज्यादा बढ़ रहा है
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सरकार की तरह से ऐसे लोगों की लिस्ट बनाने को कहा जिनका क्रिमिनल बैकग्राउंड है
ऐसे लोगों के पेशा और domicile status से जुड़े कागज चेक करने को भी कहा गया।
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उत्तराखंड सरकार ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए ये कहा था कि
राज्य के कुछ जिलों में अप्रत्याशित रूप से आबादी बढ़ी है, कुछ इलाकों की डेमोग्राफी बदल रही है। जिस वजह से एक समुदाय के लोग पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं और इससे सामाजिक सौहार्द के बिगड़ने की आशंका है। बड़े स्तर पर पलायन की एक वजह डेमोग्राफी में बदलाव भी हो सकता है
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हल्द्वानी में जो लोग अवैध रूप से रह रहे हैं उन्हें अपनी बात रखने के लिए हाईकोर्ट ने पूरा मौका दिया था। इन लोगों से जमीन से जुड़े कागज मांगे गए। लेकिन हाईकोर्ट में इन दावे नहीं टिके, पर हैरानी की बात ये है इन लोगों के पास आधार कार्ड है, राशन कार्ड है, वोटर आईडी है। सवाल ये है कि जब जमीन के कागज नहीं है, तो ये सब कैसे बन गए?
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