राज्यसभा में विपक्ष के बोलने का अधिकार और विचारों की अभिव्यक्ति का हनन आम बात, बिफरे मल्लिकार्जुन खरगे
उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, राज्यसभा में विपक्ष के बोलने का अधिकार और विचारों की अभिव्यक्ति का हनन आम बात हो गई है।
मल्लिकार्जुन खरगे
Mallikarjun Kharge: राज्यसभा में लगातार हंगामे और सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के बीच आज नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने जमकर दिल की भड़ास निकाली। खरगे ने आरोप लगाया कि सदन में विपक्ष को बोलने के अधिकार से भी वंचित रखा जा रहा है। खरने ने कहा कि सभापति धनखड़ लगातार टीकाटोकी करते हैं और सत्तापक्ष का पक्ष लेते हैं। बता दें कि राज्यसभा में सभापति के खिलाफ विपक्ष ने मोर्चा खोल लिया है और अविश्वास प्रस्ताव लाने की मुहिम चलाई जा रही है।
खरगे ने क्या-क्या कहा
उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, राज्यसभा में विपक्ष के बोलने का अधिकार और विचारों की अभिव्यक्ति का हनन आम बात हो गई है। राज्यसभा के सभापति धनखड़ लगातार टीकाटोकी कर और सत्यापन की अनावश्यक जिद कर विपक्ष की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सदैव दबाते हैं। राज्यसभा के सभापति सदन के बाहर विपक्ष के नेताओं की बार-बार आलोचना करते हैं, अक्सर सत्तारूढ़ दल की दलीलें दोहराते हैं।
खरने ने कहा, नेता प्रतिपक्ष समेत विपक्षी सदस्यों के भाषणों के महत्वपूर्ण अंशों को राज्यसभा के सभापति मनमाने एवं दुभार्वनापूर्ण तरीके से सदन की कार्यवाही से निकालने का नियमित रूप से निर्देश देते रहते हैं। राज्यसभा के सभापति धनखड़ ने मूर्तियों को दूसरी जगह स्थापित करने, सुरक्षा तंत्र में बदलाव जैसे मामलों पर एकतरफा फैसले किए।
निष्पक्षता की परंपरा पूरी तरह खंडित कांग्रेस अध्यक्ष ने यह आरोप भी लगाया कि धनखड़ के कार्यकाल में निष्पक्षता की परंपरा पूरी तरह खंडित हो चुकी है। विपक्षी दलों ने धनखड़ को उप राष्ट्रपति पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है। राज्यसभा की कार्यवाही गुरुवार को दिन भर के लिए स्थगित होने के बाद खरगे ने सभापति पर तीखे प्रहार किए और कहा कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया गया। खरगे ने एक्स पर पोस्ट किया, लोकतंत्र हमेशा दो पहियों पर चलता है। एक पहिया है सत्तापक्ष और दूसरा विपक्ष। दोनों की जरूरत होती है। सांसदों के विचारों को तो देश तब ही सुनता है जब सदन चलता है। 16 मई 1952 को राज्यसभा में पहले सभापति डॉ राधाकृष्णन जी ने सांसदों से कहा था कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से हूं।
उन्होंने दावा किया कि यह निष्पक्षता की परंपरा धनखड़ के कार्यकाल में पूरी तरह खंडित हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, संसद प्रजातंत्र का पोषण गृह है। संसद संसदीय मर्यादाओं का आईना है। संसद सत्ता की जबाबदेही निश्चित करने का स्थान है। जहां आज विपक्ष की आवाज का गला घोंटना राज्यसभा में संसदीय प्रक्रिया का नियम बन गया है…जहां संसद की मर्यादाओं तथा नैतिकता आधारित परंपराओं का हनन अब राज्यसभा में दिनचर्या बन गई है। उन्होंने दावा किया कि प्रजातंत्र को कुचलने तथा सत्य को पराजित करने की कोशिश लगातार व बदस्तूर जारी है।
खरगे ने कहा, संविधान के सिपाही तथा रक्षक के तौर पर हमारा निश्चय और ज़्यादा दृढ़ हो जाता है। हम न झुकेंगे, न दबेंगे, न रुकेंगे और संविधान, संसदीय मर्यादाओं तथा प्रजातंत्र की रक्षा के लिए हर कुर्बानी के लिए सदैव तत्पर रहेंगे। हालांकि, इन्ही ताकतों ने मुझे आज संसद में सच्चाई बयां करने से रोक कर रखा, मैं देश के लोगों के समक्ष 10 बिंदु रखूंगा। संसद में सदस्यों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है, लेकिन सभापति महोदय विपक्ष को लगातार टोकते हैं, उन्हें अपनी बात पूरी करने का मौका नहीं देते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने दावा किया कि सभापति ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए कई बार सदस्यों को थोक में निलंबित किया है। कुछ सदस्यों का निलंबन सत्र पूरा होने पर भी जारी रखा था, जो नियम और परंपराओं के ख़िलाफ़ था।
खरगे ने आरोप लगाया, सभापति ने कई बार सदन के बाहर भी विपक्षी नेताओं की आलोचना की है। वो अक्सर भाजपा की दलीलें दोहराते हैं और विपक्ष पर राजनीतिक टीका टिप्पणी करते हैं। वो रोज ही वरिष्ठ नेताओं को स्कूली बच्चों की तरह पाठ पढ़ाते है, उनके व्यवहार में संसदीय गरिमा और दूसरों का सम्मान करने का भाव नहीं दिखता है। उन्होंने दावा किया कि सभापति सदन में और सदन के बाहर भी सरकार की अनुचित चापलूसी करते दिखते हैं। राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, सभापति मनमाने ढंग से विपक्ष के सदस्यों के भाषणों के अंश कार्यवाही से हटाते हैं। यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष के भाषण के भी महत्वपूर्ण हिस्सों को मनमाने तरीके से और दुर्भावनापूर्ण रूप से कार्यवाही से हटाने का निर्देश देते रहे हैं, जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों की बेहद आपत्तिजनक बातों को भी रिकॉर्ड पर रहने देते हैं।
उनका कहना है, सभापति ने नियम 267 के तहत कभी किसी भी चर्चा की अनुमति नहीं दी है। विपक्षी सदस्यों को नोटिस पढ़ने की भी अनुमति नहीं देते हैं, जबकि पिछले तीन दिनों से सत्ता पक्ष के सदस्यों को नाम बुला बुला कर नियम 267 में नोटिस पर बुलवा रहे हैं। खरगे ने कहा, सभापति के कार्यकाल के दौरान संसद टेलीविजन का कवरेज बिल्कुल एक तरफा है। ज़्यादातर समय केवल आसन और सत्ता पक्ष के लोग दिखाए जाते हैं। विपक्ष के किसी भी आंदोलन को ब्लैकआउट कर देते हैं। जब कोई विपक्षी नेता बोलता है तो कैमरा काफी समय के लिए आसन पर रहता है। संसद टीवी के प्रसारण के नियम मनमाने ढंग से बदल दिए गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सभापति ने कई फैसले बिल्कुल मनमाने ढंग से लिए हैं।
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