माई लॉर्ड मेरी गर्लफ्रेंड को वापस दिला दें, जज बोले-अर्जी खारिज, 5 हजार का जुर्माना भरो

Gujarat Highcourt: गुजरात हाईकोर्ट के सामने दिलचस्प मामला सामने आया। अदालत के सामने एक शख्स ने लिव इन एग्रीमेंट के आधार पर गुहार लगाई कि उसकी गर्लफ्रेंड अपने पति के अवैध कब्जे में है लिहाजा उसकी गर्लफ्रेंड को वापस दिला दें। लेकिन अदालत ने कहा कि तुम्हारी अर्जी खारिज की जाती है।

गुजरात हाईकोर्ट ने खारिज की अर्जी

Gujarat Highcourt: गुजरात हाईकोर्ट ने एक शख्स पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया है। अब सवाल यह है कि आखिर अदालत ने जुर्माना क्यों लगाया। उस शख्स ने आखिर गुनाह क्या किया था। दरअसल जिस शख्स पर फाइन लगाया गया उसकी एक गर्लफ्रेंड थी। लेकिन गर्लफ्रेंड की शादी कहीं और हो गई। अब सवाल यह कि शादी कहीं और हुई तो जुर्माना लगाने की जरूरत क्यों पड़ गई। उस शख्स ने अदालत के सामने कहा कि गर्लफ्रेंड के साथ लिव इन एग्रीमेंट(Live in agreement) था। लेकिन दवाब में उसकी शादी उसके परिवार ने कहीं और की। गर्लफ्रेंड की उसके पति से नहीं बनती है लिहाजा एग्रीमेंट को ध्यान में रखकर उसके पास वापस भेज दिया जाए।

बनासकांठा जिले का मामला

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक मामला गुजरात के बनासकांठा जिले का है। जिस शख्स पर जुर्माना लगा उसने अदालत के सामने पक्ष रखा कि उसकी गर्लफ्रेंड की शादी उसकी इच्छा के खिलाफ हुई थी। यही नहीं उसके पति के साथ संबंध भी अच्छे नहीं हैं। संबंध जब खराब हुए तो उसने अपने ससुराल को छोड़ दिया और उसके साथ रहने के लिए आ गई। दोनों साथ साथ रहने लगे और लिव-इन रिलेशनशिप के लिए एग्रीमेंट किया गया। लेकिन लड़की के परिवार और ससुराल वाले आए और जबरदस्ती लेते गए। अदालत के सामने उस शख्स ने दलील पेश करते हुए कहा कि वो अपने ससुराल के गैर कानूनी कब्जे में है।

'याचिकाकर्ता की दलील आधारहीन'

इस मामले में सरकारी वकील से अदालत के सामने रखा कि जिस शख्स ने तहरीर दी है उसकी इस तरह की याचिका में कोई भूमिका नहीं है। यदि कोई महिला अपने पति के साथ है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि वो गैरकानूनी कब्जे में है। सरकारी पक्ष की दलील के बाद जस्टिस वी एम पंचोली और जस्टिस एच एम प्रछाक ने कहा कि याचिकाकर्ता की महिला से शादी वैधानिक नहीं है और ना ही उस महिला का अपने पति के साथ तलाक हुआ है, लिहाजा इस अदालत का मत है कि महिला और उसके पति के बीच शादी अवैध नहीं है। इसके साथ ही याचिकाकर्ता की कोई भूमिका भी नहीं है। लिहाजा अदालत याचिकाकर्ता के खिलाफ पांच हजार रुपए का जुर्मना लगाती है।

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