मोदी का 'अश्वमेध' उत्तर से दक्षिण तक, '144 वाली' विजयनीति से बदलेगा समीकरण!
इस बार मोदी ने तेलंगाना और आंधप्रदेश में जो सियासत का जो शो किया है उसका मकसद यहां बीजेपी की जड़ों को और ज्यादा गहरा करना और नए साथियों की तलाश भी है।यही कारण है कि अभिनेता और जन सेना पार्टी के अध्यक्ष पवन कल्याण ने शुक्रवार की रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से करीब आधे घंटे मुलाकात की।
हाल ही में कर्नाटक, तेलंगाना के दौरे पर थे पीएम मोदी
पीएम मोदी ने साल 2024 के लिए विजय यात्रा शुरु कर दी है। दक्षिण के राज्यों पर बीजेपी अभी से फोकस करने लगी है।पीएम मोदी का दो दिन का दक्षिण भारत का दौरा आज खत्म हो गया।अपने दौरे में मोदी तमिलनाडु। कर्नाटक।आध्रप्रदेश और तेलंगना में रहे इस दौरान उन्होंने दक्षिण के राज्यों को 25 हज़ार करोड़ की परियोजनाओं की सौगात दी...सवाल यही है कि बीजेपी दक्षिण भारत पर ज़ोर क्यों दे रही है।दक्षिण को साधने के पीछे क्या है मोदी का गेमप्लान।बीजेपी का नया नारा अब लुक साउथ है।उसमें भी पहले तेलंगाना फिर तमिलनाडु पर खास फोकस है।फॉरवर्ड प्लान 2022 से कहीं आगे का है। इसी भरोसे के साथ बीजेपी ने एक टारगेट सेट करके दक्षिण भारत में प्रचार का बिगुल फूंक दिया है।खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया है।मोदी इलेक्शन मोड में हैं।कम से कम वक्त में मैक्सिमम आउटपुट पाने का लक्ष्य है।
2 दिन में 109 सीट कवर
2 दिन का वक्त कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना और आंध्रप्रदेश यानी 4 राज्यों का दौरा और 109 लोकसभा सीटें कवर हुई। यही है मोदी का विजन।जो उन्हें सबसे अलग नेता की कतार में लाकर खड़ा करता है।इसे ऐसे समझिए।अभी राहुल गांधी भी दक्षिण से लेकर उत्तर तक की भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। लेकिन राहुल ने जितना इलाका 2 महीने में कवर किया मोदी ने उसे कवर करने में सिर्फ 2 दिन लगाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दक्षिण भारत का दौरा केवल आधिकारिक दौरा नहीं है बल्कि राजनीतिक तौर पर अहम है।जिसमे संदेश छुपा है कि भारतीय जनता पार्टी अपना विस्तार दक्षिण तक करना चाहती है। खासतौर पर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पार्टी फोकस कर रही है।मोदी शनिवार को तेलंगना में थे जहां उन्होंने टीआरएस को वार्निंग और तेलंगाना के बीजेपी नेता को आगे बढ़ने का मंत्र दिया।
तेलंगाना बीजेपी के कार्यकर्ताओं को को बधाई देने आया हूं आज तेलंगाना की जनता बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी बनाने का मन बना चुकी है।तेलंगाना में अंधविश्वास के नाम पर क्या।क्या हो रहा है, इसके बारे में देश को जानना चाहिए।अगर तेलंगाना का विकास करना है, उसे पिछड़ेपन से निकालना है, तो उसे सबसे पहले यहां के हर तरह के अंधविश्वास को दूर करना होगा।यह शहर सूचना और प्रौद्योगिकी का किला है।लेकिन जब मैं यह देखता हूं कि आधुनिक शहर में अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है, तो बहुत दुख होता है।ऐसा लगता है कि यहां की सरकार ने अंधविश्वास को सरकारी आश्रय दिया हुआ है।मोदी उस रीजन में हैं।जहां बीजेपी का पहले कोई नाम नहीं लेता था।उत्तर की पार्टी दक्षिण में जीत सकती है ये कोई सोच भी नहीं सकता था।लेकिन पीएम मोदी ने दक्षिण के उन्हीं राज्यों से 2023 के विधानसभा चुनावों के प्रचार के साथ ही 2024 का शंखनाद भी कर दिया है।
2023 में कर्नाटक, तेलंगाना में चुनाव
कर्नाटक और तेलंगना में साल 2023 में असेंबली इलेक्शन होने वाले हैं।वहीं आंध्र प्रदेश में साल 2024 के आम चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव होंगे।जहां तक विधानसभा चुनावों का सवाल है तो बीजेपी की कोशिश इस बार तेलंगना में टीआरएस और ओवैसी के घर में घुसकर उन्हें सबसे बड़ी चुनौती देने की है जिस पर पिछले कई महीनों से काम चल रहा है।अगर लोकसभा की बात करें तो बीजेपी इस बार हैट्रिक लगाना चाह रही है लिहाजा उसका फोकस जीती हुई सीटों पर दोबारा जीत दर्ज करने के साथ ही उन 144 सीटों पर है जहां बीजेपी दूसरे या तीसरे नंबर पर आई थी।इन 144 सीटों के लिए अपना मास्टर प्लान तैयार किया है।
उनमें ज्यादातर सीटें पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, तमिलनाडु जैसे राज्यों की है।दक्षिण भारत के 5 राज्यों। कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना में ही लोकसभा की 129 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी इनमें से महज 30 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी। इन 30 में से भी 26 सीटें अकेले कर्नाटक से हैं।लिहाजा बीजेपी ने इन राज्यों की ज्यादातर सीटों के लिए रणनीति तैयार की है।खुद प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मिशन साउथ' को लीड कर रहे हैं।आपको याद होगा इसी साल मई में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक केसीआर के गढ़ हैदराबाद में करके पार्टी के इसी मिशन को धार देने की कोशिश की गई थी।
अमित शाह ने भी किया था दौरा
आपको याद होगा इसी साल अगस्त के महीने में गृहमंत्री अमित शाह ने भी तेलंगाना में आरआरआर फेम जूनियर एनटीआर के साथ मुलाकात की थी।दरअसल इन मेल मुलाकातों के मायने समझना इतना मुश्किल भी नहीं है।बीजेपी की जड़े हिंदुत्व से जुड़ी है।अपने इसी ट्रायड एंड टेस्टेड फॉर्मूले को वो दक्षिण में भी आजमा रही है।मौजूदा दौर में दक्षिण की फिल्में पैन इंडिया मूवी की तरह ट्रीट की जा रही हैं।बीते दिनों एक नैरेटिव भी बना है कि दक्षिण की फिल्मों में असली हिंदू और हिंदुत्व।परंपराएं और संस्कृति दिखाई जाती है।
दक्षिण से देश को संदेश
दरअसल इन दिनों एक मैसेज दिया जा रहा है कि दक्षिण भारतीय असली हिंदू रिति रिवाजों का पालन करते हैं।इसे आप एक माहौल बनाने की रणनीति के तौर पर भी देख सकते हैं।ये तो रही नैरिटिव सेट करने की बात लेकिन सिर्फ अगर सिर्फ माहौल बनाने से ही सरकारें बनती तो आज सियासत की तस्वीर शायद कुछ और होता...सवाल यही है कि बीजेपी दक्षिण पर इतना फोकस क्यों कर रही है।पूरी रणनीति क्या है।दक्षिण से कैसे खुलेगा दिल्ली दरबार का द्वार अब इसे भी समझिए।सधी रणनीति से असंभव टारगेट हासिल करना अभी तक मोदी की यही पहचान रही है।इस बार जैसे बीजेपी ने 2024 के लिए दक्षिण का जो दांव चला है।उसके पीछे जबरदस्त रणनीति हैं।राहुल गांधी बीते दो महीनों से भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं।उनकी ये पदयात्रा केरल से कन्याकुमारी तक जा रही है।लेकिन क्या आप जानते हैं कि राहुल ने इस पदयात्रा की शुरुआत के लिए दक्षिण के राज्यों को ही क्यों चुना।
दरअसलपीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरे उत्तर भारत और पूर्वी भारत में बीजेपी का भगवा झंडा लहरा चुका है।साल 2019 में बीजेपी ने जो 303 लोकसभा सीटें जीती थीं उसमें से 274 सीटें इन्हीं राज्यों से आई थीं।लेकिन दक्षिण भारत में उसका हाथ खाली है।राहुल ये जानते हैं कि बीजेपी को उत्तर भारत में हराना मुश्किल हैं हां दक्षिण वो द्वार जरूर है जहां से बीजेपी को रोका जा सकता हैइसीलिए उन्होंने दक्षिण में पदयात्रा पर पूरा जोर लगाया है।वहीं अगर बीजेपी के नजरिए से देखा जाए तो 2019 के मुकाबले इस बार स्थितियां कुछ बदली।बदली सी हैं।बीजेपी के लिए 2024 की राह उतनी आसान नहीं दिख रही।पिछले 3 साल में एनडीए के कई सहयोगी अलग राह पकड़ चुके हैं।
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