सदाबहार दोस्ती का दिखा रंग, मोदी-पुतिन की डील भारत के लिए कर गई काम
तेल और गैस की कीमतों पर रूस और यूक्रेन के बीच जंग का असर पड़ रहा है। लेकिन पीएम मोदी और पुतिन की एक डील के बाद भारत उस तरह के हालात का सामना नहीं कर रहा है जो दुनिया के दूसरे मुल्क कर रहे हैं। हाल ही में पेट्रोलियम उत्पाद के दामों में कमी भी की गई है।
पूरी दुनिया तेल गैस की कीमतों से परेशान है। तेल गैस की बढ़ी कीमतों से महंगाई बढ़ रही है और ये महंगाई इतनी खतरनाक हो गई है कि ब्रिटेन जैसे देशों में प्रधानमंत्री की कुर्सी तक चली गई। तेल गैस की बढ़ी कीमतों और महंगाई का हाल ये है कि अमेरिका के राष्ट्रपति वहां की तेल कंपनियों को धमका रहे हैं कि अगर तेल गैस के दाम कम नहीं किए तो ज्यादा टैक्स लगा देंगे। लेकिन ये स्थिति और भी भयानक हो सकती थी। तेल गैस की ग्लोबल कीमत और भी ज्यादा होती। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की डील नहीं होती। और ये डील है रूस से तेल खरीदने की। जिसको लेकर अमेरिका और पश्चिमी देश और वहां का मीडिया भारत के पीछे 8 महीने से पड़ा है। लेकिन भारत ने जो रूस का तेल खरीदा है उससे दुनिया को कैसे फायदा हुआ है जिसने भारत के खिलाफ एजेंडा चला रहे पश्चिमी देशों को ऐसा दमदार जवाब दिया जिसकी चर्चा दुनिया में हो रही है और जिस जवाब के बाद रूस के मामले में भारत पर दबाव बनाने वालों की बोलती बंद हो गई है।
मोदी-पुतिन की डील कर गई काम
अगर मोदी-पुतिन की डील ना होती तो दुनिया और बदतर हालत में होती।अप्रैल से जून 2022 में भारत ने रूस से तेल खरीदा- औसतन 60,000 बैरल प्रति दिन <1 बैरल में 159 लीटर>अक्टूबर में रूस से तेल आयात का आंकड़ा- 8 लाख 90 हजार बैरल प्रति दिन औसतन। अब आपको तेल उत्पादक देशों के बारे में जानना चाहिए। OPEC यानी Organization of the Petroleum Exporting Countries के टॉप 5 देशों में शामिल है।
- सऊदी अरब
- इराक
- यूएई
- कुवैत
- ईरान
11 फीसद तेल उत्पादन रूस में
इसमें रूस की स्थिति है। दुनिया का 11% तेल उत्पादन होता है। अब रूस का तेल दुनिया में भारत और चीन जैसे कुछ ही देश खरीद रहे हैं। क्योंकि यूक्रेन युद्ध की वजह से प्रतिबंध लगा है और अमेरिका और पश्चिमी देश दूसरे देशों को धमका रहे हैं। इसलिए तेल की सप्लाई पर असर पड़ रहा है और इससे तेल के दाम भी बढ़ रहे हैं। तेल के बढ़ते दामों के बीच ओपेक देशों ने ये फैसला किया गया था कि वो तेल उत्पादन में कटौती करेंगे। यानी सप्लाई कम हो जाएगी और डिमांड ज्यादा है। इस वजह से तेल के दाम दुनिया भर में बढ़े और इसी की वजह से महंगाई बढ़ रही है।
युद्ध के वक्त से ही रूस पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे और कई देशों के साथ रूस का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार काफी कम हो गया जैसे
- रूस-अमेरिका के बीच व्यापार- 35 % कम
- रूस-ब्रिटेन के बीच व्यापार - 79 % कम
- रूस-स्वीडन के बीच व्यापार- 76 % कम
- रूस-जर्मनी के बीच व्यापार - 3 % कम
इन देशों से व्यापार कम होने के बावजूद रूस का एक्सपोर्ट, इंपोर्ट दोनों बढ़ गया है, इसकी वजह ये है कि युद्ध के दौरान बहुत से देशों रूस के साथ अपने व्यापार को कई गुना बढ़ा दिया इसमें भारत सबसे ऊपर रहा। युद्ध के दौरान रूस के साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बात करें तो
- रूस-India के बीच ट्रेड - 310% बढ़ा
- रूस-टर्की के बीच ट्रेड - 198 % बढ़ा
- रूस-ब्राजील के बीच ट्रेड- 106 % बढ़ा
- रूस-बेल्जियम के बीच ट्रेड - 81 % बढ़ा
- रूस-चीन के बीच ट्रेड - 64 % बढ़ा
रूस का तेल सस्ता भी मिल रहा है। कच्चे तेल का ग्लोबल बेंचमार्क माना है Brent crude को। अगर Brent Crude की रूस के कच्चे तेल से तुलना करें तो रूस के कच्चे तेल के दाम एक समय पर Brent Crude के मुकाबले 30 डॉलर प्रति बैरल कम थे। सितंबर के आखिर तक रूस का कच्चा तेल Brent Crude के मुकाबले करीब 20 डॉलर प्रति बैरल सस्ता था।भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीद कर सितंबर तक 35,000 करोड़ रुपये बचाए हैं।
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