Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता में शादी से संबंधित नए नियम; जान लीजिए उत्तराखंड में अब क्या बदलाव होगा

Uniform Civil Code Marriage Law: समान नागरिक संहिता में किए गए प्रावधानों के तहत शादी से संबंधित नए नियम के बारे में जान लें क्या-क्या बदलाव होंगे, जानें इसमें क्या-क्या प्रावधान हैं।

Uniform Civil Code Marriage

समान नागरिक संहिता में शादी से संबंधित नए नियम

Uniform Civil Code Marriage Law: समान नागरिक संहिता (UCC) में किए गए प्रावधानों के तहत विवाह (Marriage) से संबंधित नए नियमों के बारे में जान लें, इसके मुताबिक विवाह के समय पुरुष की आयु 21 वर्ष पूरी हो और स्त्री की आयु 18 साल हो वहीं विवाह का पंजीकरण धारा 6 के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा ऐसा नहीं करने पर 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगेगा।
इस संहिता में पति अथवा पत्नी के जीवित होने की स्थिति में दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है वहीं इस संहिता में विवाह के उपरांत वैवाहिक दंपतियों में से कोई भी यदि बिना दूसरे को सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को तलाक लेने और गुजारा भत्ता क्लेम करने का पूरा अधिकार होगा।

उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता विधेयक में शादी से संबंधित क्या प्रावधान हैं? इसे समझिए-

1- समान नागरिक संहिता सभी के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, जिसमें कि युवक की आयु 21 वर्ष तथा युवती की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
परिणाम:- इसके परिणाम स्वरुप हम ऐसी बच्चियों का मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न रोक पाएंगे, जिन्हें उनकी अच्छे बुरे की समझ विकसित होने से पहले ही जोर-जबरदस्ती करके विवाह करने को मजबूर कर दिया जाता था।
2- इस संहिता में पार्टीज टू मैरिज यानी किन-किन के मध्य विवाह हो सकता है, इसे स्पष्ट रूप से बताया गया है। विवाह एक पुरुष व एक महिला के बीच ही संपन्न हो सकता है।
परिणाम : विवाह किन दो जनों के मध्य हो सकता है, इसकी व्याख्या करके हमने अपने देश की संस्कृति को बचाने का प्रवास किया है, तथा समाज को एक स्पष्टता भी देने का प्रयास किया है।
3- इस संहिता में पति अथवा पत्नी के जीवित होने की स्थिति में दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है।
परिणाम: पति की एक से अधिक पत्नियां होने की स्थिति में वे महिलाएं मानसिक रूप से अत्यधिक असहज व प्रताड़ित रहती हैं अब हमने अपनी माताओं बहनों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से और उन्हें मानसिक व सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए ही बिना तलाक लिए दूसरी शादी को इस संहिता में प्रतिबंधित कर दिया है।
4- अब तलाक के बाद दोबारा उसी पुरुष से या अन्य पुरुष से विवाह करने के लिए महिला को किसी प्रकार की शर्तों में नहीं बांधा जा सकता। यदि ऐसा कोई विषय संज्ञान में आता है, तो इसके लिए तीन वर्ष की कैद अथवा एक लाख रुपए जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान किया गया है।
परिणाम: ऐसा करने से हलाला और इद्दत जैसी कुप्रथाओं का अंत होगा। हमारी माताओं, बहनों, बेटियों के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली कोई भी कुरीति सभ्य समाज में स्थान पाने लायक नहीं है, और हमारी सरकार ऐसी सभी कुरीतियों व कुप्रथाओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है।
5- विवाह के उपरांत वैवाहिक दंपतियों में से कोई भी यदि बिना दूसरे को सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को तलाक लेने और गुजारा भत्ता क्लेम करने का पूरा अधिकार होगा।
परिणाम: एक दूसरे के व्यक्तित्व, परिवार व धर्म-संस्कृति को समझने के उपरांत ही विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य को संपन्न किया जाता है। यदि विवाह के बाद कोई बिना जानकारी के धर्म परिवर्तन करता है तो यह एक प्रकार का धोखा है और अपराध भी है। ऐसी स्थिति में पीड़ित पक्ष को तलाक लेने और शेष जीवन के लिए गुजारा भत्ता क्लेम करने का अधिकार मिलना ही चाहिए। इस कानून ने उन्हें यही सुरक्षा प्रदान की है।
6- विवाह का पंजीकरण अब अनिवार्य रूप से कराना होगा, इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए ग्राम पंचायतनगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम तथा जिला व राज्य स्तर पर इनका पंजीकरण कराना अब संभव होगा। प्रक्रिया को और सरल बनाने के लिए एक वेच पोर्टल भी होगा जिस पर जाकर पंजीकरण संबंधी प्रक्रिया फॉलो की जा सकतीहै।
परिणाम: उत्तराखंड के अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम 2010 को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए ऐसा किया गया है। विवाह व तलाक का पंजीकरण होने से अब पहला विवाह छुपा कर व महिला को धोखा देकर दूसरा विवाह करने वाले व्यक्ति का पता चल सकेगा। पंजीकरण होने से हमारी माता बहनों में सुरक्षा का भाव भी जाग्रत होगा।
अब सरकारी योजनाओं व सुविधाओं का लाभ भी उन्ही को प्राप्त होगा जिन्होंने अपने विवाह को पंजीकृत कराया हो। हमारी सरकार योजनाओं व सुविधाओं को बिना किसी लीकेज के जन-जन तक पहुँचाना चाहती है, और अपने इस संकल्प की सिद्धि के लिए भी हमने इस कानून में पंजीकरण की व्यवस्था को अनिवार्य बनाया है।
स्पष्टीकरण : पंजीकरण न होने की स्थिति में भी किसी विवाह को अवैध या अमान्य नहीं माना जाएगा। किन्तु सरकारी योजनाओं व सुविधाओं का लाभ उन्हें प्राप्त नहीं होगा। (अनिवार्य विवाह अधिनियम 2010 होने के बावजूद भी हम अभी तक मात्र 10% विवाहों का ही पंजीकरण कर सके हैं। सरकारी योजनाओं के लाभ प्राप्ति को इससे जोड़ने पर हम विवाहों के पंजीकरण को प्रोत्साहित करने में सफल रहेंगे और इसके बहुत से लाभ समाज को धीरे-धीरे समझ में आने लगेंगे)
7- एक महिला व एक पुरुष के मध्य होने वाले विवाह के धार्मिक/सामाजिक विधि-विधानों को इस संहिता में छेड़ा नहीं गया है अर्थात वे लोग जिस पद्धति से भी विवाह करते चले आ रहे हैं, जैसे कि सप्तपदी, आशीवाद, निकाह, होली- बूनियन या आनंद कारज अथवा इस प्रकार की अन्य परंपराएं, वे लोग उन्हीं प्रचलित परंपराओं के आधार पर विवाह संपन्न कर सकेंगे।
स्पष्टीकरण : इस संहिता के पीछे का उद्देश्य सभी नागरिकों को उनके अधिकारों की समानता प्रदान करना है। हमारी संस्कृति व अच्छी परंपराएं बची रहे, तथा एक सभ्य समाज होने के नाते हम कुरीतियों को धीरे-धीरे कानून के माध्यम से दूर करते रहें, इस संहिता के माध्यम से हम सबका यही प्रयास रहा है।
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रवि वैश्य author

मैं 'Times Now नवभारत' Digital में Assistant Editor के रूप में सेवाएं दे रहा हूं, 'न्यूज़ की दुनिया' या कहें 'खबरों के संसार' में काम करते हुए करीब...और देखें

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