क्या नीतीश कुमार का करिश्मा हो रहा है खत्म, कुढ़नी के नतीजे को समझिए

बिहार में कुढ़नी विधानसभा के नतीजे में बीजेपी ने बाजी मारी है। यहां पर जेडीयू उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा है। सवाल यह है कि इस सीट पर बीजेपी और जेडीयू दोनों के लिए जीत और हार के मायने क्या हैं।

नीतीश कुमार, सीएम बिहार

सियासी सड़क पर अगर गाड़ी बेपटरी होने लगे तो समझिए कि मामला गड़बड़ है। बात यहां पर हम बिहार की कुढ़नी विधानसभा के नतीजे की कर रहे हैं। कुढ़नी में बीजेपी की जीत और जेडीयू को हार का सामना करना पड़ा है। इस उपचुनाव में बीजेपी की जीत और जेडीयू के हार के मायने क्या हैं। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि किसी एक सीट से पूरी सरकार के कामकाज का आकलन नहीं किया जा सकता है। लेकिन जब कोई सीट पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए खास बन जाए तो मामला दिलचस्प हो जाता है। कुढ़नी विधानसभा में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन की तरफ से जेडीयू ने अपना उम्मीदवार उतारा था और सीएम नीतीश कुमार ने प्रचार भी किया था। इस सीट पर विकासशील इंसान पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी ने अपना उम्मीदवार उतारा था। यहां हम बताएंगे कि बीजेपी की जीत और जेडीयू की हार के मायने क्या हैं।

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कुढ़नी के नतीजे का अर्थ

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कुढ़नी विधानसभा चुनाव इसलिए भी दिलचस्प हुआ क्योंकि बीजेपी 30 साल बाद अपने दम पर चुनावी मैदान में थी। इससे पहले इस सीट पर जेडीयू उम्मीदवार ही अपनी किस्मत आजमाते थे। इस चुनाव से पहले गोपालगंज सीट के नतीजों का भी जिक्र करना अहम हो जाता है। गोपालगंज की सीट पर गठबंधन की तरफ से आरजेडी का उम्मीदवार चुनावी मैदान में था और उसे हार का सामना करना पड़ा। अगर कुढ़नी और गोपालगंज की बात करें को दोनों सीटों पर अलग अलग नजारे देखने को मिले थे। जैसे गोपालगंज की सीट पर आरजेडी का उम्मीदवार था हालांकि नीतीश कुमार चुनाव प्रचार करने गए थे। लेकिन कुढ़नी की सीट पर अघोषित तौर पर जेडीयू उम्मीदवार को पांच दलों का समर्थन हासिल था हालांकि हार का मुंह देखना पड़ा। सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार उचित अवसर पर पाला बदल करेंगे।

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