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नेताओं की आजादी के नए पंख, जुबान पर एक्स्ट्रा लगाम नहीं

मामला ये है कि अपने नेताओं, मंत्रियों के तर्कसंगत (या अतार्किक और बेहुदा) बयानों से पार्टियां और सरकारें बरी हो चुकी हैं। नेता तो पहले ही आजाद थे, अब देखिए कि उड़ान और कितनी ऊंची होगी।

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कोर्ट ने कहा कि वह माननीयों की अभिव्यक्ति की आजादी पर अतिरिक्त रोक नहीं लगा सकता।

अनंत त्यागी। नेताओं की आजादी की उड़ान में नए पंख लग चुके हैं। बदजुबानी से दिखावटी परहेज करने वाले नेता अब चटकारे लेकर 'बेहूदगी' कर सकेंगे। जनता की नब्ज़ टटोलने के नाम पर, मन का गुबार निकालने वाले नेता, अब आपके सामने 'बदजुबानी' भी कर सकेंगे और अगर किसी को उनकी बात बुरी लगी तो नेता ठहाके भी लगा सकेंगे। अब नेता जी, नेताओं वाले उन सारे विशेषणों, उपनामों, संज्ञाओं और उपमाओं का धुंआधार इस्तेमाल करने के लिए उतने ही फ्री हो चुके हैं जितने फ्री, चुनावों में जन हित के वायदे होते हैं। वो सारी संज्ञा, सारे सर्वनाम, विशेषण और उपमा जिनके इस्तेमाल पर स्कूल में डंडा पड़ता है, अब उसी पर नेता जी को हार पहनाए जाने पर चौंकिएगा मत, क्योंकि नेताजी को भाषाई मर्यादा से आजाद कर दिया गया है।

अब माननीय गैंग रेप को आसानी से ‘राजनीतिक साजिश’ या ‘लड़के हैं, गलती कर देते हैं’ कह कर पल्ला झाड़ सकते हैं। किसी को उनके बयान से आपत्ति तो जाए कोर्ट। लेकिन कोर्ट जाने से पहले याद रखिएगा कि अदालत ने ये भी कह दिया है कि नेता जी की जबान पर लगाम लगाने का काम नेता जी लोगों का ही है...यानी आपकी आपत्ति दर्ज कर ली जाएगी लेकिन नेता जी आगे ऐसा ना बोलें..ये कहने का अधिकार संसद में बैठ नेता जी को ही है।

दरअसल, मामला शुरू भी ऐसे ही बयान से हुआ था। साल था 2016, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, मुख्यमंत्री थे अखिलेश यादव। 30 जुलाई की रात नोएडा से एक परिवार शाहजहापुर में अपने पैतृक गांव के लिए निकलता है। बुलंदशहर के पास गाड़ी को कुछ बदमाश रोकते हैं। गाड़ी में सवार मां (35 साल) और बेटी (14 साल) के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया जाता है। घंटो तक हैवानियत होती है, बदमाश इतने बेखौफ कि इसी दौरान शराब भी पीते हैं।

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