देश के इस राज्य में लिथियम भंडार की मौजूदगी का चला पता, ऐसे बदल सकती है देश-प्रदेश की किस्मत
भारत में लिथियम भंडार की खोज कोई नई बात नहीं है। इसे पहली बार 1999 में जम्मू और कश्मीर में खोजा गया था, लेकिन तब लिथियम का इस कदर इस्तेमाल नहीं होता था और इसकी मांग भी नहीं थी।
प्रतीकात्मक तस्वीर
Lithium Reserves: जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और कर्नाटक में लिथियम भंडार की खोज के महीनों बाद अब बताया जा रहा है कि झारखंड में भी इस खनिज का भंडार मिला है। छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल से घिरा ये पूर्वी राज्य पहले से ही यूरेनियम, अभ्रक, बॉक्साइट, ग्रेनाइट, सोना, चांदी, ग्रेफाइट, मैग्नेटाइट, डोलोमाइट, फायरक्ले, क्वार्ट्ज, फेल्डस्पार, लोहा, तांबा (भारत का 25 प्रतिशत), कोयला (भारत का 32 प्रतिशत) के भंडार के लिए जाना जाता है।
राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET) ने झारखंड के कोडरमा और गिरिडीह में इस खनिज के बड़े भंडार की मौजूदगी की खोज की है। पूर्वी सिंहभूम और हज़ारीबाग में लिथियम खनन की संभावना तलाशने पर भी काम चल रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एनएमईटी को जियोकेमिकल मैपिंग के जरिए कोडरमा के तिलैया ब्लॉक और उसके आसपास सीज़ियम और अन्य कीमती खनिजों की मौजूदगी भी मिली है।
कहलाता है सफेद सोना
'सफेद सोना' के रूप में जाना जाने वाला लिथियम जलवायु परिवर्तन के कारण इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बढ़ती मांग के बीच वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक मांग वाले खनिजों में से एक है। दुनिया में केवल कुछ ही देशों के पास लिथियम के भंडार हैं, चाहे वह साल्ट लेक ब्राइन के रूप में हो या खदानों के रूप में। फिर भी सबसे बड़े लिथियम भंडार के बिना चीन का लिथियम खनन और प्रसंस्करण पर कब्जा है। भारत का नए वाहनों की बिक्री में 30 प्रतिशत ईवी हिस्सेदारी हासिल करने और 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। हालांकि, भारत अपनी लिथियम जरूरतों के लिए पड़ोसी देशों मुख्य रूप से हांगकांग और चीन पर निर्भर है।
जम्मू-कश्मीर में भी मिला था भंडार
भारत में लिथियम भंडार की खोज कोई नई बात नहीं है। इसे पहली बार 1999 में जम्मू और कश्मीर में खोजा गया था, लेकिन तब लिथियम का इस कदर इस्तेमाल नहीं होता था और इसकी मांग भी नहीं थी। इसका इस्तेमाल विशेष रसायनों, कांच और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में किया जाता था। इससे खनन के बजाय तमाम जरूरतों के लिए लिथियम का आयात किया जाता था। लेकिन आज जलवायु परिवर्तन ने हालात को पूरी तरह बदल दिया है लिथियम अचानक ईवी और बैटरी भंडारण के लिए सबसे अधिक मांग वाली धातु बन गया है। इसने पूरी इकोनॉमी को बदलकर रख दिया है।
देश को होगा बहुत बड़ा फायदा
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में लिथियम भंडार की खोज रणनीतिक महत्व की साबित हो सकती है क्योंकि यह महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देकर भारत की ऊर्जा सुरक्षा में सुधार कर सकती है। यह देश के आयात बिल और व्यापार घाटे को कम करने में भी योगदान दे सकता है। साथ ही भंडार हरित परिवहन और हरित ऊर्जा अपनाने में तेजी लाकर भारत को अपने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद कर सकता है।
हालांकि, इनमें से अधिकांश लिथियम भंडार G3 खोज स्तर पर है - यानी, प्रारंभिक खोज या प्रारंभिक मूल्यांकन जिसमें भंडार की पहचान होती है। इसके बाद G2 (सामान्य अन्वेषण) और G1 (विस्तृत अन्वेषण) करना होगा और G1 वर्गीकरण के बाद ही खनन शुरू हो सकता है। पूरी क्षमता से व्यावसायिक उत्पादन तक लाने में छह से आठ साल तक का समय लग सकता है।
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