VIDEO: ओल्ड पेंशन स्कीम सामाजिक न्याय या रेवड़ी, देश में खुशहाली लाएगी या बर्बादी?

Sawal Public Ka : देश में झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश के अलावा पंजाब में सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का फैसला कर लिया है। अब सवाल उठता है। ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने देश में खुशहाली आएगी या बर्बादी ?

Sawal Public Ka : कहते है न कि बाप बड़ा भइया..सबसे बड़ा रुपइया। तो रुपइया को लेकर दुनिया के देश एक मंच पर बैठे हैं। मोदी सरकार के भी कई मंत्री हैं, दर्जन भर से अधिक बड़े ऑफिसर हैं। और जाहिर सी बात है सरकार अपने टारगेट 2025 तक 5 ट्रिलियन इकोनॉमी को लेकर प्लानिंग में जुटी है। लेकिन दूसरी ओर देश में झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश के अलावा पंजाब में सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने जैसा आर्थिक फैसला हो चुका है। ओल्ड पेंशन स्कीम को कई अर्थशास्त्री unsustainable बता रहे हैं यानी एक ऐसा फैसला जो आर्थिक तबाही ला सकता है तो दूसरी ओर ओल्ड पेंशन लागू करने वाली कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इसे सामाजिक न्याय बताने में जुटी हैं। सवाल पब्लिक का है कि क्या बोझ उठाएं टैक्सपेयर, और जेब भरें पेंशनर? आखिर न्यू इंडिया में ओल्ड पेंशन का क्या काम है? 5 ट्रिलियन का विजन V/S ओल्ड पेंशन? आज यही है सवाल पब्लिक का।

OPS यानी ओल्ड पेंशन स्कीम दिसंबर 2003 में अटल सरकार ने बंद की थी। 1 अप्रैल 2004 से सरकारी सेवा में आने वाले कर्मचारियों के लिए न्यू पेंशन स्कीम जरूरी किया गया। मई 2004 में सत्ता में आयी मनमोहन सरकार ने न्यू पेंशन स्कीम को जारी रखा। सरकारी कर्मचारी की आखिरी सैलरी का 50% पेंशन के तौर पर तय करने वाली ओल्ड पेंशन स्कीम पर सवाल इसलिए उठा क्योंकि पेंशन खर्च उठाने का अपना खुद का Source नहीं होता, और पेंशन खर्च लगातार बढ़ता जाता है।

NPS यानी न्यू पेंशन स्कीम लागू होने के बावजूद 2020-21 में 1990-91 के मुकाबले केंद्र का पेंशन बिल 58 गुना और राज्यों का पेंशन बिल 125 गुना बढ़ा है। ओल्ड पेंशन दोबारा लागू करने का फैसला लोकलुभावन तो है लेकिन मनमोहन सरकार के समय योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया तक इसका विरोध करते हैं। तो उधर कांग्रेस इसे सामाजिक न्याय का बड़ा फैसला बताने में जुटी है।

कुछ राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का ये फैसला ऐसे समय में हो रहा है जब देश की इकोनॉमी प्री कोविड लेवल तक आने लगी है। लेकिन मैं ये भी बता दूं कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ये समिट शुरू होने से पहले फोरम ने जो ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2023 जारी की है उसके मुताबिक शॉर्ट टर्म में सबसे बड़ा रिस्क cost-of-living crisis है यानी जीवनयापन का खर्च सबसे बड़ा संकट है।

इसका मतलब क्या है ? क्या ओल्ड पेंशन दोबारा लागू करने जैसा फैसला इस जीवनयापन के संकट को दूर करने में मदद करेगा ? उधर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। कर्ज के जाल से महंगाई के बोझ तले दबे पाकिस्तान में आटा पाने के लिए गृह युद्ध जैसी नौबत है। पिछले साल श्रीलंका का हाल सबने देखा। वहां वैट 15 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी करने और बिना तैयारी आर्गेनिक खेती को जरूरी किए जाने जैसे खराब आर्थिक फैसलों का खामियाजा उठाना पड़ा। आर्थिक न्याय करने और रेवड़ी बांटने में बहुत महीन फर्क होता है। हाल ही में मिडिल क्लास के लिए कहा गया वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का ये बयान सुनिए।

सवाल पब्लिक का

1. कुछ राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का फैसला देश में खुशहाली लाएगा या बर्बादी ?

2. क्या आत्मनिर्भर भारत के सामने 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ' वाला आर्थिक विजन है ?

3. अगर रेवड़ी कल्चर से सरकारें बनेंगी, तो क्या देश 5 ट्रिलियन डॉलर वाली इकोनॉमी बन पाएगा ?

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