23 जून को पटना में सजायाफ्ताओं का होने जा रहा संगम, बीजेपी का करारा जवाब
23 जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दल एक मंच पर नजर आने वाले हैं। बीजेपी की इस कवायद पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल ने कहा कि यह एका नहीं बल्कि सजायाफ्ताओं का संगम होगा।
प्रेम शुक्ला, बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता
आगामी 23 जून को पटना में विरोधी दलों की एक संयुक्त रैली आयोजित है । इस रैली के आयोजन के महीनों पहले से विपक्षी एकता के नारे लगाए जा रहे हैं । विपक्षी जमावड़ा तो है पर इनमें एकता कहां तक जाएगी इसकी गारंटी जमावड़े में शामिल किसी नेता के पास नहीं है। इतना तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ इन दलों में बेहद आक्रोश है । आक्रोश सहज और स्वाभाविक है ।बीते 7 दशकों से भारतीय राजनीति में एक अलिखित समझौता रहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज भले बुलंद करना है ,पर कार्रवाई के लिए अपेक्षित प्रतिबद्धता आवश्यक नहीं। इसलिए भ्रष्टाचार धीरे-धीरे सामाजिक शिष्टाचार बनने लगा। प्रधानमंत्री पद का संस्थान भ्रष्टाचार के आरोपों से मलिन होगा, यह कल्पना संविधान निर्माताओं को नहीं रही होगी । हालांकि सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में ही प्रारंभ हो गयो थे।
संविधान निर्माता डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने नेहरू सरकार में भ्रष्टाचार जिस संस्थागत ढंग प्रारंभ हुआ था, उसके चलते कहा था कि "कांग्रेस एक जलता हुआ घर है। जो कोई इसके साए में भी खड़ा होगा वह भी भस्म हो जाएगा ।" नेहरू के कार्यकाल में हर्ष मूंदड़ा के भ्रष्टाचार का मामला राहुल गांधी - प्रियंका वाड्रा के पितामह फिरोज गांधी ने उठाया था । तब से आज तक कांग्रेस और राजनीतिक विमर्श में बदला क्या है ? तब भ्रष्टाचारियों से संबंध रखना भी राजनीतिक दृष्टि से अनैतिक था। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भ्रष्टाचार को मान्यता मिलने का अशुभारंभ हुआ । राजीव गांधी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री निवास सोनिया गांधी के चलते भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया । उनके चलते ही पहली बार बोफोर्स ,फेयरफैक्स, पनडुब्बी घोटाले सुनाई दिए। सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्षा और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की अध्यक्षता के कार्यकाल में भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन गया । गांधी परिवार तमाम आपराधिक मामलों में जमानत पर रिहा है ।उन पर लगे आरोपों की हम छोड़ भी दें तो इससे कौन इंकार कर सकता है कि राहुल गांधी सजायाफ्ता मुजरिम हैं । कांग्रेस पार्टी किसी आरोपी को नहीं बल्कि एक सजायाफ्ता को अपना नेतृत्व बनाकर ढोने को अभिशप्त है । स्वयं सोनिया गांधी ने स्वतंत्रता काल में आंदोलनकारियों के योगदान से खड़े 'नेशनल हेराल्ड' की संपत्ति का गबन कर लिया । उन पर यह आरोप नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नहीं लगा, बल्कि सोनिया गांधी के पति राजीव गांधी को अपना मित्र बताने वाले डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने दंडाधिकारी की अदालत में साक्ष्य प्रस्तुत कर अदालती आदेश से मामले की प्राथमिकी दर्ज कराई । कांग्रेस पार्टी और सोनिया गांधी परिवार सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ा, इस कांड की जांच से मुल्जिमों को मुक्त नहीं करा पाए । सोनिया गांधी- राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कई पदाधिकारी भारतीय दंड विधान की धारा 420 के मुकदमे में जमानत पर रिहा अभियुक्त हैं ।
गांधी मैदान में खड़े हो रहे हैं मोदी विरोधी
अकेले कांग्रेसी नहीं हैं, पटना के गांधी मैदान में मोदी विरोध खड़े हो रहे हैं उनमें अधिकांश सजायाफ्ता और सजा की प्रक्रिया का सामना करने वाले वंश के चिरागों का समागम होगा। राहुल गांधी की तरह राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव चारा चोरी के आधा दर्जन मामलों में सजायाफ्ता हैं। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव बेहिसाबी संपत्ति मामलों में अभियुक्त की भूमिका में रहे । उनके 'चाचा जान' आजम खान परिवार समेत सजायाफ्ता हैं। ममता बनर्जी का पूरा कुनबा भ्रष्टाचार से कमाए गए नोटों की गड्डियों के ढेर पर पकड़ा जा चुका है। ममता के भाईपो अभिषेक बनर्जी ने जो कुछ घपले घोटाले कर रखे हैं वह तो बेपर्दा है । स्वयं ममता बनर्जी ने भी अपनी पेंटिंग जनता के धन का अपहरण करने वाले जालसाजों को ही बेचा। शरद पवार दाऊद इब्राहिम समेत आतंकी गिरोहों के प्रति स्नेह रखने वाले राजनेता के रूप में जाने जाते हैं । जेजे हत्याकांड के दो अभियुक्त जब वह रक्षा मंत्री थे तब उनके रक्षा मंत्रालय के विमान में सवार थे । प्रवर्तन निदेशालय के कई मामलों में पवार परिवार वांछित है । पवार ने दाऊद इब्राहिम की बहन से सौदा करने वाले मंत्री नवाब मलिक को जेल यात्रा के दौरान भी मंत्री बनाए रखा। संविधान से अधिक उनकी निष्ठा दाऊद गिरोह में दिखाई देती है ।उद्धव ठाकरे नाते रिश्तेदारों समेत भ्रष्टाचार के मामलों में जांच के कारण अत्यंत आक्रोश में हैं । उनके कई नामी बेनामी बंगले ,रिसोर्ट और फ्लैट प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जप्त हैं ।एमके स्टालिन का कुनबा भी तमिलनाडु में भ्रष्टाचार के वंशवाद का प्रमाण है। नीतीश कुमार 1990 के दशक से जिस भ्रष्टाचार और जंगलराज के खिलाफ खड़े होकर बिहार का विकल्प बने थे ,वही आज लालू वंश के भ्रष्टाचार को बचाए रखने का संकल्प ले रहे हैं। अरविंद केजरीवाल की क्या कहें ! जनाब लोकपाल आंदोलन की कोख से पैदा हुए थे, संतानों की कसम खाई थी सियासत में कदम न रखने की। राजनीति में आए तो भ्रष्टाचार विरोधी नारों पर सवार होकर। पर ऐसे भ्रष्टाचारी सिद्ध हुए कि जब उनके मंत्री सत्येंद्र जैन जेल पहुंचे तो जेल में ही उन्हें जेल मंत्री का प्रभारी बनाए रखा। रेपिस्ट को थेरेपिस्ट बताने का पराक्रम वह कर ही चुके हैं । पाठशाला की जगह मधुशाला खोलने वाले उनके साथी मनीष सिसोदिया महीनों से जेल में हैं। अरविंद केजरीवाल भी जेल से ज्यादा दूर नहीं। अरविंद केजरीवाल ने अगर अरुण जेटली और नितिन गडकरी से नाक रगड़ कर माफी नहीं मांगी होती, तो अब तक वह भी राहुल गांधी की तरह मानहानि के मामले में सजायाफ्ता हो चुके होते । ऐसे में पटना के मैदान से वैकल्पिक राजनीति की बजाय भ्रष्टाचारियों का ऐसा समागम हो रहा है जिसमें कुछ सजायाफ्ता हैं और कुछ सजा पाने की प्रतीक्षा सूची में हैं।
(प्रेम शुक्ल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी)
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