Amitabh Bachhan Birthday: कभी राजीव गांधी के बेहद करीब थे अमिताभ, ऐसे पड़ गई दोनों परिवारों में दरार
Amitabh Bachhan Birthday : कहा जाता है कि राजीव गांधी की विदेशी लड़की से शादी को लेकर इंदिरा गांधी सहज नहीं थी। इंदिरा को लगता था कि इसे समाज ठीक से नहीं लेगा और उन्हें राजनीतिक नुकसान हो सकता है। इंदिरा खुले मन से इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थीं।
बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन।
- इलाहाबाद में 11 अक्टूबर 1942 को हुआ अमिताभ बच्चन का जन्म
- इनके पिता हरिवंश राय बच्चन अपने दौर के हिंदी के बड़े कवि थे
- दिल्ली में राजीव गांधी और अमिताभ का बचपन एक साथ बीता
दोनों परिवारों का इलाहाबाद से रिश्ता
दरअसल, गांधी और बच्चन दोनों परिवारों का रिश्ता इलाहाबाद से है। दिल्ली आने से पहले नेहरू का परिवार इलाहाबाद में रहता था। अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन अपने दौर के हिंदी के बड़े कवि एवं लेखक थे। वह भी परिवार के साथ इलाहाबाद में रहते थे। दोनों परिवारों के बीच जान-पहचान इलाहाबाद से ही थी। हरिवंश राय बच्चन दिल्ली में जब विदेश मंत्रालय में हिंदी अधिकारी के रूप में कार्यरत हुए तो यहां उनकी पत्नी तेजी बच्चन एवं इंदिरा गांधी के बीच संपर्क और बढ़ा। इंदिरा और तेजी बच्चन अच्छे दोस्त बन गए। फिर यहीं से दोनों परिवारों के बीच रिश्ते की डोर और मजबूत हुई। बताया जाता है कि दिल्ली में रहते हुए अमिताभ बच्चन का बचपन राजीव गांधी एवं संजय गांधी के साथ बीता।
सोनिया गांधी की शादी में बच्चन परिवार की अहम भूमिका
कहा जाता है कि राजीव गांधी की विदेशी लड़की से शादी को लेकर इंदिरा गांधी सहज नहीं थी। इंदिरा को लगता था कि इसे समाज ठीक से नहीं लेगा और उन्हें राजनीतिक नुकसान हो सकता है। इंदिरा खुले मन से इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थीं। बताया जाता है कि इस मुश्किल घड़ी में अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन ने इंदिरा गांधी को काफी समझाया और उन्हें भरोसे में लिया। सोनिया गांधी जब पहली बार दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पहुंची तो उन्हें रिसीव करने कोई और नहीं बल्कि खुद अमिताभ बच्चन गए थे। सोनिया और उनका परिवार एयरपोर्ट से सीधे अमिताभ के घर पहुंचा और वहीं ठहरा। शादी होने तक सोनिया गांधी बच्चन परिवार के साथ रहीं। इससे उनकी करीबी भी बच्चन परिवार के साथ बढ़ी।
राजीव के कहने पर अमिताभ ने इलाहाबाद से चुनाव लड़ा
1980 के दशक में अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता अपने चरम पर थीं। वह बॉलीवुड के बादशाह थे। उनकी फिल्में लगातार सुपरहिट हो रही थीं। इसी दौर में राजीव गांधी ने उनसे चुनाव लड़ने की पेशकश की। शुरू में अमिताभ इसके लिए तैयार नहीं हुए लेकिन राजीव के बार-बार कहने पर वह सियासत में उतरे और 1984 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद सीट पर उस समय के दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को भारी अंतर से हराया। अमिताभ चुनाव जीतकर संसद तो पहुंचे लेकिन उन्होंने पूरे मन से राजनीति को कभी स्वीकारा नहीं। दिल्ली में वह कांग्रेस की यूथ ब्रिगेड का हिस्सा बन गए। दिल्ली में उनकी तुलना सतीश शर्मा, अरूण नेहरू, अरूण सिंह और कमलनाथ के साथ होने लगी।
बोफोर्स में नाम आने पर छोड़ दी राजनीति
दरअसल, बोफोर्स कांड में एक अखबार ने अमिताभ बच्चन का नाम छापा था। इससे अमिताभ को काफी तकलीफ हुई। हालांकि, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दे दी। लोग कहते हैं कि बोफोर्स मामले में अमिताभ का नाम जान-बूझकर डाला गया था। हालांकि, इस दावे की सच्चाई कितनी है, इस पर से कभी परदा नहीं उठा। राजनीति में तीन साल गुजारने के बाद अमिताभ ने संसद पद से 1987 में इस्तीफा दे दिया और वापस बॉलीवुड में लौट गए। बॉलीवुड में वापसी करने के बाद अमिताभ की फिल्में जादू नहीं दिखा पाईं। उनकी फिल्में एक-एक कर फ्लॉप हुईं। कुछ सालों बाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद गांधी एवं बच्चन परिवार के रिश्ते में दरार आने लगी।
अमर सिंह की दोस्ती ने अमिताभ को उबारा
गांधी परिवार को लगा कि मुश्किल घड़ी में बच्चन परिवार उनके साथ नहीं है। यही वह दौर था जब अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल पर भारी कर्ज हो गया। वह दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए। अमिताभ को लगा कि मुश्किल दौर में उनके सभी करीबियों ने उनका साथ छोड़ दिया। निराशा और आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे अमिताभ की जिंदगी में इसी समय अमर सिंह की एंट्री हुई। अमर सिंह और अमिताभ के बीच एक नई युगलबंदी पनपी। इस दोस्ती ने अमिताभ बच्चन को एक नई जिंदगी दी। उनका आर्थिक संकट दूर हुआ। पत्नी जया भादुड़ी समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद बनीं। खुद अमिताभ बच्चन उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार की कई योजनाएं के चेहरा बने।
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