अंग्रेज ही नहीं इस पड़ोसी के गुलाम भी रहे देश के इन तीन राज्यों के कई हिस्से

भारत सालों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। आखिरकार 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के कुछ हिस्से हमारे ही एक पड़ोसी देश के भी गुलाम रहे। करीब 20 वर्षों तक इस पड़ोसी ने भारत के इन हिस्सों में लोगों पर खूब अत्याचार किए।

Gorkha History
भारत पर अंग्रेजों ने लंबे समय तक शासन किया। आखिरकार 15 अगस्त 1947 को देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। लेकिन अंग्रेज अकेली विदेशी शक्ति नहीं थे, जिन्होंने भारत को गुलाम बनाया। अंग्रेजों के अलावा पुर्तगाली, फ्रेंच, डेनमार्क और स्वीडन जैसे देशों ने भी भारत के कई हिस्सों पर कब्जा किया। फ्रांस का कब्जा तो गोवा पर देश की आजादी के बाद भी रहा। इन यूरोपीय देशों ने अलग-अलग समय पर देश के कई हिस्सों को अपने कब्जे में लिया। लेकिन हमारा एक पड़ोसी देश भी है, जिसने भारत के बड़े हिस्से को गुलाम बना लिया था। चलिए जानते हैं उस पड़ोसी के बारे में और इतिहास के पन्नों से खंगालकर लाते हैं कि किन हिस्सों पर उस पड़ोसी ने कब्जा किया था।

किस पड़ोसी ने और कब बनाया गुलाम

आज का नेपाल यानी गोरखा राज्य जब अपने चरम पर था तो उसने सिक्किम सहित तीन राज्यों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। यह घटना 1790 की है। उस समय गोरखाओं ने उत्तराखंड के भी बहुत बड़े हिस्से और हिमाचल तक कब्जा कर लिया था।

खुड़बुड़ा की लड़ाई

साल 1790 में गोरखाओं ने काली नदी को पार किया और उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र पर हमला बोल दिया। गोरखाओं ने एक बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया और वह आगे बढ़ते गए। धीरे-धीरे वह खुरबुरा तक पहुंच गए। खुरबुरा या खुड़बुड़ा में गोरखाओं की गढ़वाल की फौज के साथ जोरदार लड़ाई हुई। साल 1804 में 13 दिन तक चले इस युद्ध में आखिरकार गढ़वाल के महाराजा प्रद्युम्न शाह की हार हुई। इस युद्ध में महाराजा प्रद्युम्न वीरगति को प्राप्त हुए। उस समय गोरखा कमांडर अमर सिंह ने महाराजा प्रद्युम्न शाह के शव को पूरे सम्मान के साथ हरिद्वार भेजा।

ऐसे फैला था गोरखा साम्राज्य

इस मैप को नेपाल ने जारी किया है, इसमें कालापानी को नेपाल में दिखाया गया है, जबकि वह भारत का हिस्सा है।

कहां है खुरबुरा या खुड़बुड़ा

जिस खुरबुरा या खुड़बुड़ा की लड़ाई में गोरखाओं ने गढ़वाल की फौज को हराया और महाराजा प्रद्युम्न वीरगति को प्राप्त हुए, वह आज के देहरादून में है। गोरखा आक्रमणकारियों के सामने गढ़वाली सेना टिक नहीं पाई, क्योंकि गढ़वाली सेना तलवार से लड़ाई लड़ रही थी, जबकि गोरखा बंदूकों के साथ आगे बढ़ रहे थे।
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