Siachen: दुनिया के सबसे लंबे 'ऑपरेशन मेघदूत' के 39 साल पूरे, सियाचिन डे पर देश कर रहा वीर सपूतों को नमन
सियाचिन में दिन का अधिकतम तापमान -40 डिग्री तक रहता है। इस विषम क्षेत्र में खून जमा देने वाली ठंड में भी भारतीय सेना के सैनिक लगातार यहां तैनात रहते हैं। इस इलाके में भारतीय सेना के ऑपरेशन मेघदूत ने 39 साल पूरे कर लिए हैं। देश सियाचिन दिवस पर भारत के वीर सपूतों नमन कर रहा है।

भारत का सबसे विषम युद्ध क्षेत्र सियाचिन (तस्वीर सौजन्य-Indian Army)
दुनिया के सबसे दुर्गम और चुनौतियों भरे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में भारतीय सेना के ऑपरेशन मेघदूत ने 39 साल पूरे कर लिए हैं। ऑपरेशन मेघदूत दुनिया का अब तक का सबसे लंबा सैन्य ऑपरेशन है। 13 अप्रैल 1984 को पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को मिट्टी में मिलाने के लिए भारतीय सेना को सियाचिन की पहाड़ियों पर तैनात किया गया था। यह वह जगह है जहां न सिर्फ पहुंचना असंभव है बल्कि यहां की विषम परिस्थितियों में जीवित रहना भी किसी आम आदमी के लिए नामुमकिन है।
सियाचिन एक विषम युद्ध क्षेत्र है
सियाचिन की बात की जाए तो यह पहाड़ 14000 से लेकर 20000 फुट तक की ऊंचाई पर पूरी तरह से बर्फ से ढके हुए हैं। सियाचिन एक ग्लेशियर है यानि बर्फ की एक ऐसी मोटी चादर जो लगातार खिसकती रहती है। यहां एक जगह से दूसरी जगह तक जाना बेहद खतरनाक होता है। ग्लेशियर के बीच में क्रेवास यानि खाई दिखाई नहीं देती, जिसके चलते कई बार दुर्घटनाएं हो जाती हैं। पिछले 39 सालों में इस विषम युद्ध क्षेत्र में भारतीय सेना ने अपने 846 से ज्यादा जवानों को खोया है।
सियाचिन में सेना की तैनाती क्यों जरूरी है
अगर तापमान की बात की जाए तो सियाचिन में दिन में अधिकतम तापमान -40 डिग्री तक रहता है। इस विषम खून जमा देने वाली ठंड में भी भारतीय सेना के सैनिक लगातार यहां ड्यूटी करते हैं। भारतीय सेना की सख्त ट्रेनिंग और सैनिकों के हौसले ही इन्हें यहां दुश्मन के सामने बुलंद रखते हैं। इन्फेंट्री के जवानों के लिए अपनी सर्विस के दौरान कम से कम एक बार सियाचिन में तैनाती जरूरी मानी जाती है। यहां एक तैनाती के दौरान करीब 90 दिन तक ग्लेशियर में रहना होता है यानी अपनी ट्रेनिंग के बाद जब जवान ग्लेशियर में जाते हैं तो वह 90 दिन के बाद ही नीचे उतर पाते हैं। ऐसे में वह अपने परिवार से दूर रहकर तमाम तरह की कठिनाइयों का सामना करते हुए भारत मां की सीमा की सुरक्षा करते हैं।
13 अप्रैल को मनाते हैं सियाचिन दिवस (Siachen Day )
दुनिया के अब तक के सबसे लंबे ऑपरेशन के दौरान भारतीय सेना के साहस को सलाम करने के लिए 13 अप्रैल को सियाचिन दिवस (Siachen Day) मनाया जाता है। यहां मौजूद हर एक सैनिक करीब तीन महीने सेवा देता है, जहां जवान दुश्मनों पर कड़ी निगाह बनाए रहते है, वहीं बेरहम मौसम के कारण कई मुश्किलों और चुनौतियों का सामना भी करते हैं।
सियाचिन दिवस (Siachen Day) क्यों मनाया जाता है?
39 साल पहले सियाचिन की बर्फीली ऊंचाइयों पर कब्जा करने और अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 13 अप्रैल को Siachen Day मनाया जाता है। सियाचिन में भारतीय सेना की ऑपरेशनल प्रीपेडनेस में हर साल डिफेंस बजट की एक बड़ी रकम का हिस्सा खर्च किया जाता है। पिछले महीने भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी कैप्टन शिवा चौहान ने सियाचिन में तैनात होने वाली पहली महिला अधिकारी बनने का कीर्तिमान बनाया है और अब उन्हें यहां 1 महीने का समय बीत चुका है भारतीय सेना सियाचिन में तैनात जवानों और अधिकारियों के लिए खास तरह के क्लॉथिंग और लिविंग तैयार कर रही है ताकि इस मौसम में इन्हें सुरक्षित रखा जा सके।
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19 सालों के पत्रकारिता के अपने अनुभव में मैंने राजनीति, सामाजिक सरोकार और रक्षा से जुड़े पहलुओं पर काम किया है। सीमाओं पर देश के वीरों का शौर्य, आत्मन...और देखें

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