च्वाइस-मूलभूत अधिकारों पर राय अलग, हिजाब मामले में दोनों जजों की खास टिप्पणी
कर्नाटक हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने फैसला तो सुनाया लेकिन एक दूसरे की राय अलग थी। यहां हम बताएंगे कि फैसला सुनाते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस हेमंत गुप्ता ने क्या टिप्पणी की।
हिजाब मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की बंटी राय
कर्नाटक हिजाब मामले को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने बड़ी बेंच के हवाले करने का फैसला किया है। इस मामले में दोनों जजों की राय बंटी हुई थी। जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि लड़कियों के लिए शिक्षा जरूरी है, इसके साथ ही उनके च्वाइस का भी सम्मान करना चाहिए तो दूसरे जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि क्या हिजाब मूलभूत अधिकार है उसे समझने की जरूरत है। अदालत के सामने जब सालिसिटर जनरल से फ्रांस का उदाहरण दिया तो जस्टिस धूलिया ने कहा कि वहां सार्वजनिक जगहों पर आप धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं कर सकते वहीं भारत में धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप अलग है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया की टिप्पणी
- लड़कियों की शिक्षा महत्वपूर्ण विषय है। लड़कियां कितनी मुश्किलों से गुजरते हुए पढ़ने के लिए आती हैं।
- लड़कियों की च्वाइस का सम्मान करना चाहिए। शिक्षा जरूरी है यह जरूरी नहीं है वो क्या ड्रेस पहन कर आती हैं
- कुरान की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है।
- कई इलाकों में लड़कियों को स्कूल आने से पहले घर का काम भी करना पड़ता है। अगर हम ड्रेस से संबंधित कोई फैसला करते हैं तो उनके सामने मुश्किल आएगी।
- कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सही दृष्टिकोण नहीं अपनाया
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने क्या कहा
- मेरे आदेश में कुल 11 सवालों का जिक्र है
- क्या इस केस को संविधान बेंच को भेजा जाए
- हिजाब पर बैन क्या अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है
- क्या अनुच्छेद 19 और 25 को एक मानना चाहिए
- क्या सरकार के आदेश से मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
- क्या छात्राओं की हिजाब पहनने की मांग को मूलभूत अधिकार माना जा सकता है।
हिजाब मामले पर राजनीतिक प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच के फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रिया देते हुए कर्नाटक के गृहमंत्री ने कहा कि यह राज्य सरकार के लिए झटका नहीं है। अब इस मामले को बड़ी बेंच को सुपुर्द किए जाने का फैसला है लिहाजा हमें अंतिम निर्णय का इंतजार करना चाहिए। विपक्षी दलों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि कर्नाटक सरकार मनमाने तरीके से फैसले कर रही है।
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