Padma Awards 2025: 100 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी लीबिया लोबो सहित 30 गुमनाम नायकों को 'पद्म श्री' सम्मान

Padma Awards 2025: गोवा की 100 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी, 150 महिलाओं को पुरुष प्रधान क्षेत्र ढाक वादन में प्रशिक्षित करने वाले पश्चिम बंगाल के ढाक वादक और कठपुतली का खेल दिखाने वाली पहली भारतीय महिला उन 30 गुमनाम नायकों में शामिल हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की गई है।

Libia Lobo Sardesai

गुमनाम नायकों का सम्मान

Padma Awards 2025: गोवा की 100 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी, 150 महिलाओं को पुरुष प्रधान क्षेत्र ढाक वादन में प्रशिक्षित करने वाले पश्चिम बंगाल के ढाक वादक और कठपुतली का खेल दिखाने वाली पहली भारतीय महिला उन 30 गुमनाम नायकों में शामिल हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की गई है।

कौन हैं लीबिया लोबो सरदेसाई?

गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली लीबिया लोबो सरदेसाई ने पुर्तगाली शासन के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए 1955 में एक जंगली इलाके में भूमिगत रेडियो स्टेशन ‘वोज दा लिबरडाबे (वॉयस ऑफ फ्रीडम)’ की स्थापना की थी।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 76वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर सरदेसाई को पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की। पुरस्कार पाने वालों में पश्चिम बंगाल के 57 वर्षीय ढाक वादक गोकुल चंद्र डे भी शामिल हैं जिन्होंने पुरुष-प्रधान क्षेत्र में 150 महिलाओं को प्रशिक्षण देकर लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ा।

डे ने ढाक प्रकार का एक हल्का वाद्ययंत्र भी बनाया, जो वजन में पारंपरिक वाद्ययंत्र से 1.5 किलोग्राम कम था। उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और पंडित रविशंकर तथा उस्ताद जाकिर हुसैन जैसी हस्तियों के साथ कार्यक्रम किए।

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पद्मश्री सम्मान की सूची में शामिल महिला सशक्तीकरण की मुखर समर्थक 82 वर्षीय सैली होलकर ने लुप्त हो रही माहेश्वरी शिल्प कला को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पारंपरिक बुनाई तकनीकों में प्रशिक्षण देने के लिए मध्य प्रदेश के महेश्वर में हथकरघा स्कूल की स्थापना की।

रानी अहिल्याबाई होल्कर की विरासत से प्रेरित और अमेरिका में जन्मीं सैली होलकर ने बुनाई की 300 साल पुरानी विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए अपने जीवन के पांच दशक समर्पित कर दिए।

पक्षियों, जानवरों और पेड़ों पर अद्वितीय शब्दकोश देने वाले वन्यजीव शोधकर्ता एवं मराठी लेखक मारुति भुजंगराव चितमपल्ली (92), जयपुर की 68 वर्षीय भजन गायिका एवं पेरिस के टाउन हॉल में प्रस्तुति देने वाली एकमात्र राजस्थानी महिला बतूल बेगम और पारंपरिक पराई इसई कला को मानकीकृत एवं पुनर्जीवित कर रहीं तमिलनाडु की तालवादक वेलु आसां (58) का नाम भी इस सूची में शामिल है।

तोगालु गोम्बेयाता (चमड़े की कठपुतली) का खेल दिखाने वाली भीमव्वा डोड्डाबलप्पा शिल्लेक्यथारा को भी पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। वह इस कला का अभ्यास करने वाली पहली महिलाओं में से एक रही हैं। 96 वर्षीय गोम्बेयाता ने महज 14 साल की उम्र में इस कला में महारत हासिल कर ली थी और उन्होंने 12 से अधिक देशों में इसका प्रदर्शन किया है।

सुरेंद्रनगर परमार में डांगसिया समुदाय से तांगलिया बुनकर लवजीभाई नागजीभाई (64); गरीब कैंसर रोगियों को मुफ्त इलाज प्रदान करने वाली कलबुर्गी की कैंसर रोग विशेषज्ञ विजयलक्ष्मी देशमाने और महाराष्ट्र में 400 हेक्टेयर जंगल का संरक्षण करने वाले चैतराम देवचंद पवार भी उन गुमनाम नायकों में शामिल हैं जिन्हें प्रतिष्ठित पुरस्कार देने की घोषणा की गई है।

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पारंपरिक आदिवासी संगीतकार और ‘सुलूर’ या ‘बस्तर बांसुरी’ के निर्माता पंडी राम मंडावी भी पुरस्कार विजेताओं में शामिल हैं। उत्तराखंड की 91 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहन भट्ट भी पद्मश्री पाने वालों की सूची में शामिल हैं। वह बालिकाओं की शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करती हैं। उन्होंने ‘चिपको आंदोलन’ में सक्रिय रूप से भाग लिया था। कुष्ठ रोगियों और दिव्यांगों के लिए काम करने वाले गुजरात के सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश सोनी का नाम भी इस सूची में शामिल है।

दिमासा लोक संगीत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए अपने जीवन के 60 वर्ष समर्पित करने वाले असम के आदिवासी संगीतकार जोयनाचरण बाथरी, कुवैत से योग अभ्यासी शेखा ए जे अल सबा, नेपाली लोक गायक गंगटोक नरेन गुरुंग और सर्वाइकल कैंसर के लिए दिशानिर्देश बनाने में अहम भूमिका निभाने वाली नीरजा भटला को भी गुमनाम नायकों की श्रेणी में पद्मश्री दिया गया है।

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अनुराग गुप्ता author

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