Heeraben Modi News: लग रहा है कुछ अच्छा काम कर रहे हो इसलिए मेरी हो रही है चर्चा, कुछ ऐसी थीं हीराबेन

Heeraben Modi: हीराबेन, एक ऐसी शख्सियत जो करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने यह बता दिया कि गरीबी और अभाव बाधा नहीं बल्कि हथियार है जिसके जरिए जिंदगी को खुशनुमा बनाया जा सकता है।

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हीरा बेन, पीएम नरेंद्र मोदी की मां

Who is Heeraben Modi: हीराबेन कोई आम शख्सियत नहीं थीं। सिर्फ हाड़ और मांस की शरीर नहीं, संघर्ष की पूरी कहानी। करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत। उन्होंने साबित कर दिया कि संघर्ष और अभाव ये दो शब्द भले ही जिंदगी की सच्चाई हों। लेकिन हौसले के हथियार से उन्हें परास्त किया जा सकता है। उनकी जिंदगी का सफर कई रंगों को समेटे हुए हैं। हर एक मुश्किल तरक्की की राह खोलती गई जिसकी झलक उनके पांचों बेटों में नजर आती है। उनके पांच बेटों में नरेंद्र मोदी कामयाबी के उस शिखर पर जा पहुंचे जिसे कामयाबी का उच्चतम बिंदू कहा जाया तो गलत नहीं होगा। हीराबेन की राह में तरह तरह की दिक्कतें लेकिन सामान्य हाड़ मांस की शरीर कुछ अलग थी। उस शरीर ने मानों ठान लिया कि मुश्किलें, संघर्ष उनके हौंसले को डिगा नहीं पाएंगी। सामान्य परिवार में ब्याही हीरा बेन के ऊपर पारिवारिक बोझ कम नहीं था। परिवार को दशा और दिशा देने की चुनौती थी। लेकिन वो साहस से लबरेज थीं। चाहे भले ही जिंदगी की राह पर कंकड़ों और पत्थरों से वास्ता पड़ा हो। हर दर्द को अपने आंचल में समेट लिया और उनके बच्चे स्नेह की छाया में आगे बढ़ते रहे हैं। खुद पीएम नरेंद्र मोदी अपने मां के संघर्ष का जिक्र कर भावुक हो गए थे। वो बताते हैं कि उनकी मां को पिता के साथ चाय बेचने में हाथ बंटाना पड़ा।

विसनगर और वडनगर से खास रिश्ता

हीराबेन का जन्म मेहसाणा के विसनगर जिले में हुआ जो उनकी ससुराल वडनगर से ज्यादा दूर नहीं था। हीरा बेन के ऊपर मुसीबतों की बारिश शादी के बाद नहीं शुरू हुई थी। वो महज कुछ दिनों की थीं जब उनकी मां का निधन हो गया था। आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि शायद ही उन्हें अपनी मां का चेहरा याद रहा होगा। उन्होंने स्कूली शिक्षा भी नहीं पाई थी। गरीबी और सिर्फ अभाव से ही उनका वास्ता रहा। संघर्ष इतना अधिक कि वो बचपने से पहले ही जवान हो गईं। हीरा बेन अपने ससुराल में सबसे बड़ी बहू थीं। ससुराल की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। वडनगर को जो घर उनका स्थायी रिहाइश बना उसमें ना तो खिड़की और ना ही टॉयलेट था। एक तरह से कह सकते हैं कि डेढ़ कमरे के घर में बुनियादी सुविधाओं का अभाव था।

आजीविका के लिए दूसरों के घरों का काम

हर मौसम में उनके पति दामोदर दास चाय बनाने के लिए निकल जाते थे। वो भी उनका साथ देने के लिए उठती थीं। पहले घर का काम काज करती थीं। यही नहीं घर को चलाने के लिए वो दूसरे के घरों में बर्तन धोने का काम करती थीं। यही नहीं चरखा भी चलाया करती थीं। इस तरह से घर का खर्च निकालती थीं। डेढ़ कमरे के घर की छत को दुरुस्त करने के लिए वो खुद छत की मरम्मत करती थीं। लेकिन जब इतनी कोशिशों के बाद भी छत का टपकना बंद नहीं होता था वो उस जगह पर बर्तन रख देती थीं और उस पानी का इस्तेमाल घर के कार्यों के लिए करती थीं।
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ललित राय author

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