स्थाई समितियों में नियुक्ति केस, सभापति ने चर्चा नहीं की, जयराम रमेश का इनकार

स्थाई समितियों में राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनकड़ द्वारा की गई कुछ नियुक्तियों पर सवाल है। राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश का कहना है कि कम से कम उनसे तो सलाह मशवरा नहीं किया गया।

राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ द्वारा समितियों में अपने पसंद के लोगों की नियुक्तियों का मामला गहराता जा रहा है। धनकड़ का कहना है कि समिति में जिन लोगों की नियुक्ति की गई है उस संबंध में विपक्ष के नेता से भी सहमति ली गई थी। लेकिन कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने सीधे तौर पर इनकार किया है। उन्होंने कहा कि किसी तरह की चर्चा नहीं हुई। जयराम रमेश ट्वीट के जरिए बताते हैं कि वो स्टैंडिंग कमेटी के अध्यतक्ष हैं और स्पष्ट करना चाहते हैं कि उनसे मशवरा नहीं लिया गया। बता दें कि जयराम रमेश, राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक हैं।इसके साथ ही साइंस टेक्नॉलजी, पर्यावरण वन, जलवायु परिवर्तन से जुड़े स्थाई समिति के अध्यक्ष हैं।

निजी स्टॉफ की नियुक्ति

उपाध्यक्ष के स्टाफ से समितियों से जुड़े अधिकारी विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) राजेश एन नाइक, निजी सचिव (पीएस) सुजीत कुमार, अतिरिक्त निजी सचिव संजय वर्मा और ओएसडी अभ्युदय सिंह शेखावत हैं। राज्यसभा के सभापति कार्यालय से नियुक्त किए गए उनके ओएसडी अखिल चौधरी, दिनेश डी, कौस्तुभ सुधाकर भालेकर और पीएस अदिति चौधरी हैं।

विपक्ष का हल्लाबोल

जयराम रमेश ने कहा कि वो इस कदम के तर्क या आवश्यकता को समझने में असमर्थ हैं। राज्य सभा की सभी समितियों में पहले से ही सचिवालय से लिए गए सक्षम कर्मचारी हैं। ये राज्य सभा की समितियाँ हैं न कि सभापति की। किसी भी तरह का कोई परामर्श नहीं किया गया है।राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा: "इस तरह के कदम के पीछे तर्क क्या है, जो मूल रूप से स्थायी समितियों के विचार और संरचना के खिलाफ जाता है।कांग्रेस के लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने ट्वीट किया: “वीपी राज्य परिषद के पदेन अध्यक्ष हैं। वह वाइस चेयरपर्सन या वाइस चेयरपर्सन के पैनल की तरह सदन के सदस्य नहीं हैं। वह संसदीय स्थायी समितियों में व्यक्तिगत कर्मचारियों की नियुक्ति कैसे कर सकता है? क्या यह संस्थागत विध्वंस जैसा नहीं होगा? पूर्व लोकसभा महासचिव पी डी टी आचार्य ने एक मीडिया संस्थान को बताया कि संसदीय समितियों की परिभाषा के अनुसार केवल सांसद और राज्यसभा या लोकसभा सचिवालय के कर्मचारी ही सहायता की ऐसी भूमिकाओं की पेशकश कर सकते हैं।

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