Ram Vilas Paswan: दलित की चेतना और सत्ता की धड़कन पहचानने वाले राजनीति के हर दौर के सितारे

Ram Vilas Paswan Death Anniversary: अपने सियासी सफर में छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने वाले रामविलास पासवान ने 8 अक्टूबर के दिन ही 74 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था।

Ram Vilas Paswan Death Anniversary

रामविलास पासवान ने 8 अक्टूबर के दिन ही 74 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था (फाइल फोटो)

Ram Vilas Paswan Death Anniversary: भारतीय राजनीति में रामविलास पासवान का उदय बड़ी खास घटना थी। 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले में पैदा हुए पासवान ने बहुत करीब से दलित जीवन के संघर्ष को देखा भी था और झेला भी था। उन्होंने इस संघर्ष को राजनीति में आने की बड़ी प्रेरणा बताई थी। वह देश के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक थे और पांच दशक से भी ज्यादा के संसदीय अनुभव में वह नौ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा सांसद रहे।
रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प था। वह गांव के वह कच्चे युवक थे जिसको पटना जाकर अभी बहुत तपना था। उन्होंने एक बार कहा था कि दलितों पर हजारों साल से बड़े जुर्म और अत्याचार हुए हैं। मैंने भी गांव में यह सब सहे हैं। जब मैं पढ़ाई के लिए पटना आया तो मुझे हॉस्टल में जगह पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। लेकिन नेतृत्व का कीड़ा मेरे अंदर बहुत पहले से था।
पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद पुलिस की नौकरी की
पासवान ने पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद पुलिस की नौकरी की, जिसको 1969 में छोड़कर उन्होंने राजनीति में खत्म रखा था। समाजवादी विचारधारा से वह काफी प्रभावित रहे और आपातकाल के दौरान उन्होंने जेल का भी सफर तय किया। लेकिन इस सफर ने उनके लिए दिल्ली का सफर भी शुरू कर दिया था। 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार बिहार की हाजीपुर से सीट से लोकसभा का चुनाव जीता था। हाजीपुर सीट और रामविलास पासवान हमेशा एक दूसरे के पूरक बने रहे। 1989 में वह केंद्र की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में पहली बार कैबिनेट में शामिल हुए और श्रम कल्याण मंत्री बने थे।
एच.डी. देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की कैबिनेट में भी मंत्री रहे
इसके बाद वह संयुक्त मोर्चा की सरकार में एच.डी. देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की कैबिनेट में भी मंत्री रहे। 1999 में वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी केंद्र में मंत्री रहे। इसके एक साल बाद उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की थी। इसके बाद हम केंद्र की भारतीय राजनीति में यूपीए और एनडीए का कार्यकाल देखते हैं। रामविलास पासवान इन दोनों ही सरकार में शामिल रहे। यह उनकी खासियत थी। चाहे किसी पार्टी की सरकार हो, वह कभी सरकार से बाहर नहीं रहे। उनके बारे में यह बात बड़ी चर्चित थी कि वह राजनीति में यह भांप लेते थे कि हवा किसके पक्ष में बह रही है। इसके लिए उनको भारतीय राजनीति का मौसम विज्ञानी भी कहा गया।
2014 का समय था जब रामविलास पासवान ने यूपीए छोड़कर एनडीए का साथ थाम लिया था
यह 2014 का समय था जब रामविलास पासवान ने यूपीए छोड़कर एनडीए का साथ थाम लिया था और उनके निधन के बाद भी यह साथ जारी है, जिसको उनके पुत्र चिराग पासवान आगे लेकर बढ़ रहे हैं। चिराग ने बताया था कि उनको अपने पिता को यूपीए से एनडीए लाने में बड़ी मुश्किल हुई। लेकिन कहीं न कहीं राहुल गांधी की वजह से रामविलास पासवान के लिए यह फैसला लेना आसान हो गया था। चिराग पासवान ने एक बार खुलासा किया था कि साल 2014 में तीन महीने तक इंतजार कराने के बाद भी जब राहुल गांधी ने रामविलास पासवान से मिलने के लिए वक्त नहीं निकाला तो उनके लिए अपने पिता को भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में जाने के लिए मनाना बड़ा आसान हो गया था।
उनके निधन के कुछ ही महीने बाद लोक जनशक्ति पार्टी में उनके ही पुत्र के खिलाफ बगावत हो गई थी
व्यक्तिगत रूप से राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे आपातकाल के प्रमुख नेताओं के करीबी रहे रामविलास पासवान की व्यक्तिगत सोच के बारे में जानने कि लिए प्रदीप श्रीवास्तव की किताब में काफी कुछ मिलता है। इस किताब में एक चैप्टर है जहां चिराग पासवान अपने पिता के बारे में बताते है कि कैसे उनके पिता ने हमेशा परिवार और खानदान पर आंच न आने देने की सीख दी थी। लेकिन विडंबना है कि उनके निधन के कुछ ही महीने बाद लोक जनशक्ति पार्टी में उनके ही पुत्र के खिलाफ बगावत हो गई थी। और वह बगावत की थी खुद रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने। चाचा-भतीजे की इस तकरार में लोजपा पार्टी टूट गई। चिराग ने कहा था कि उन्होंने अपने पिता के आदर्शों पर चलते हुए चाचा से सुलह के काफी प्रयास किए लेकिन बात नहीं बनी।
पिता के जाने के बाद चिराग ने कई बार अपने अकेलेपन का इजहार किया
पिता के जाने के बाद चिराग ने कई बार अपने अकेलेपन का इजहार किया है कि उनके ऊपर मां के अलावा अब किसी बड़े का आशीर्वाद नहीं है। लेकिन रामविलास की सीख कि "मछली के बच्चे को तैरना नहीं सिखाया जाता, वह खुद तैरना सीख लेता है", चिराग एक नई ऊर्जा और लोकसभा चुनाव 2024 में पांच सांसदों के साथ एनडीए सरकार में एक प्रमुख साझेदार हैं।
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रवि वैश्य author

मैं 'Times Now नवभारत' Digital में Assistant Editor के रूप में सेवाएं दे रहा हूं, 'न्यूज़ की दुनिया' या कहें 'खबरों के संसार' में काम करते हुए करीब...और देखें

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