नींद लेना हर व्यक्ति की अहम जरूरत, छीन नहीं सकते ये अधिकार, ईडी पूछताछ मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट की टिप्पणी

अदालत ने कहा, किसी व्यक्ति को एजेंसी द्वारा उसके बुनियादी मानव अधिकार, यानी सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। बयान आवश्यक रूप से सामान्य घंटों के दौरान दर्ज किए जाने चाहिए।

Bombay HC comment on ED Arrest

बॉम्बे हाई कोर्ट का निर्देश

Right To Sleep : बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि नींद का अधिकार किसी भी व्यक्ति की एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है और इसे प्रदान न करना किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय को निर्देश दिया कि जब एजेंसी द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत समन जारी किया जाए तो बयान दर्ज करने के लिए समय का ध्यान रखने के निर्देश जारी किए जाएं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, सोने का अधिकार/पलक झपकाने का अधिकार एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है, इसे प्रदान न करना किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। पीठ 64 वर्षीय गांधीधाम निवासी राम कोटुमल इसरानी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उनकी गिरफ्तारी को अवैध घोषित करने की मांग की गई थी।

आरोपी के वकीलों का तर्क

अधिवक्ता विजय अग्रवाल, आयुष जिंदल और यश वर्धन तिवारी ने बताया कि 7 अगस्त, 2023 को इसरानी दिल्ली में सुबह 10.30 बजे जांच में शामिल हुए और उनकी निजी स्वतंत्रता में कटौती कर दी गई। उनका मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया और उन्हें ईडी अधिकारियों ने घेर लिया और वॉशरूम तक उनका पीछा भी किया। अग्रवाल ने कहा, इसरानी से पूरी रात पूछताछ की गई, जिससे उनके नींद के अधिकार का उल्लंघन हुआ, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त उनके जीवन के अधिकार का हिस्सा है।

रात भर हुई पूछताछ, सोने के अधिकार से हुए वंचित

ईडी ने इसरानी का बयान रात 10.30 बजे से सुबह 3 बजे तक दर्ज किया, जिससे वह सोने के अधिकार से वंचित हो गए। अग्रवाल ने कहा कि इसरानी को मेडिकल समस्याएं थीं और ऐसे में ईडी को आधी रात के बाद उनका बयान दर्ज करने की क्या जल्दी थी। उन्हें अगली तारीख या उसके कुछ दिनों बाद भी बुलाया जा सकता था। इसरानी को औपचारिक रूप से 8 अगस्त, 2023 को सुबह 5.30 बजे गिरफ्तार दिखाया गया।

अदालत ने कहा, नींद की कमी से स्वास्थ्य पर असर

एजेंसी की ओर से पेश वकील हितेन वेनेगांवकर और आयुष केडिया ने कहा कि इसरानी को उनके बयान को देर से दर्ज करने पर कोई आपत्ति नहीं थी और इसलिए, इसे दर्ज किया गया। पीठ ने कहा, असाधारण समय पर बयान दर्ज करने से निश्चित रूप से किसी व्यक्ति की नींद, जो कि एक व्यक्ति का बुनियादी मानवाधिकार है, से वंचित हो जाती है। हम इस प्रथा को अस्वीकार करते हैं। नींद की कमी किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, उसकी मानसिक क्षमताओं, संज्ञानात्मक कौशल आदि को खराब कर सकती है।

सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता

अदालत ने कहा, किसी व्यक्ति को एजेंसी द्वारा उसके बुनियादी मानव अधिकार, यानी सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। बयान आवश्यक रूप से सामान्य घंटों के दौरान दर्ज किए जाने चाहिए, न कि रात में जब व्यक्ति का संज्ञानात्मक कौशल खराब हो सकता है। हालांकि, अदालत ने अवैध गिरफ्तारी के अग्रवाल के तर्क को खारिज कर दिया, लेकिन अपने आदेश में इस बात पर गौर किया कि किस तरह इसरानी को अपना बयान दर्ज करने के लिए रात भर रखा गया।
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