3 मीटर दूर था प्रज्ञान रोवर, तभी सामने आया 4 मीटर चौड़ा क्रेटर, जानिए फिर क्या हुआ
चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कर नया इतिहास रचा। लैंडिंग के साथ ही विक्रम लैंडर के पेट में मौजूद प्रज्ञान रोवर के बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी।
चंद्रमा पर प्रज्ञान रोवर
Pragyan Rover: चंद्रयान -3 की लॉन्चिंग के दिन से ही प्रज्ञान रोवर का चंद्रमा ताजा-तरीन तस्वीरें भेजने का सिलसिला जारी है। इसरो ने आज रोवर द्वारा खींची गईं कुछ नई तस्वीरें दिखाई हैं। ये तस्वीरें 27 अगस्त को खींची गई थी। अब इसरो ने ट्वीट के जरिए इन्हें लोगों को दिखाया है।
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इसमें चंद्रमा की सतह पर बना 4 मीटर चौड़ाई वाला एक क्रेटर साफ नजर आ रहा है। रोवर में महज तीन मीटर की दूरी से ये तस्वीर ली है। 27 अगस्त, 2023 को रोवर को अपनी जगह से 3 मीटर आगे मौजूद 4 मीटर व्यास वाला गड्ढा मिला। इसके बाद रोवर को पथ पर वापस लौटने का कमांड दिया गया। इसके बाद इसने रास्ता बदल लिया और दूसरी दिशा की तरफ मुड़ गया।
चंद्रयान-3 मिशन
चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कर नया इतिहास रचा। लैंडिंग के साथ ही विक्रम लैंडर के पेट में मौजूद प्रज्ञान रोवर के बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। अब प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर प्रयोगों की एक श्रृंखला को अंजाम दे रहा है। रोवर लगातार डेटा और तस्वीरे इसरो को भेज रहा है। चार दिन पूरे हो चुके हैं और अब इस मिशन के 10 दिन ही बचे हैं।
14 दिन बाद चंद्रयान 3 का क्या होगा?
14 दिनों के बाद चंद्रमा पर रात हो जाएगी जो कि 14 दिनों तक रहेगी। अत्यधिक ठंड का मौसम होगा और चूंकि विक्रम और प्रज्ञान केवल धूप में ही काम कर सकते हैं, इसलिए वे 14 दिनों के बाद निष्क्रिय हो जाएंगे। साथ ही लैंडर और रोवर दोनों को 14 दिनों तक चलने के लिए डिजाइन किया गया है। लेकिन इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर फिर से सूरज उगने पर विक्रम और प्रज्ञान के जीवन में वापस आने की संभावना से भी इनकार नहीं किया है। ऐसे में यह भारत के चंद्र मिशन के लिए बोनस होगा।
चंद्रयान 3 कहां उतरा?
चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर समतल क्षेत्र पर उतरा है। प्रज्ञान चंद्रमा की सतह की रासायनिक संरचना, चंद्रमा की मिट्टी और चट्टानों की जांच करेगा। यह ध्रुवीय क्षेत्र के पास चंद्रमा की सतह के आयनों और इलेक्ट्रॉनों के घनत्व और थर्मल गुणों को भी मापेगा। यह अपनी तरह का पहला मिशन है क्योंकि किसी भी अन्य देश ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जाने का साहस नहीं किया था।
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