मुस्लिमों से मेल,महिला मुख्य अतिथि और इकोनॉमी पर दो टूक,RSS के बदलाव के क्या है मायने

RSS Dussehra Event: आरएसएस में दिख रहे बदलाव का असर आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी की कार्यशैली में भी दिख सकता है। और उसके लिए यह इसलिए भी अहम है कि अगर उसे लगातार तीसरी सत्ता में आना है,तो इन मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जिन पर आरएसएस जोर दे रहा है।

मुख्य बातें
  • आरएसएस का दशहरा कार्यक्रम उसके लिए बेहद मायने रखता है। इसके जरिए संघ अपनी वैचारिक सोच लोगों को सामने रखता है।
  • महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने बढ़ती बेरोजगारी, इनकम की असमानता और गरीबी पर दो टूक बयान दिया है।
  • आरएसएस सर संघचालक मोहन भागवत ने इमाम और मुस्लिम बुद्धजीवियो से मुलाकात कर नया संदेश देने की कोशिश की है।
RSS Dussehra Event:क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) बड़े बदलाव की ओर है। हाल के उदाहरण कुछ ऐसी ही तस्वीर बयां करते हैं। पहले आरएसएस सर संघचालक मोहन भागवत का इमाम और मुस्लिम बुद्धजीवियों से मिलना, उसके बाद महासचिव दत्तात्रेय होसबाले का बेरोजगारी इनकम की असमानता और गरीबी पर चिंता जताना और दशहरा कार्यक्रम में प्रसिद्ध पर्वतारोही संतोष यादव को मुख्य अतिथि बनाना। यह ऐसे घटनाक्रम हैं, जो 1925 में गठित आरएसएस के पिछले 96 साल के इतिहास में सामान्य नहीं है। जाहिर है समय के साथ आरएसएस अब नए बदलाव की ओर है। जिसमें उस वर्ग के साथ संबंधों को मजबूत करने की कवायद है, जो अभी उससे दूर रहे हैं।
2024 से पहले मुस्लिमों को जोड़ने की कवायद
बीते सितंबर में मोहन भागवत का दिल्ली की एक मस्जिद में जाकर इमाम और मुस्लिम बुद्धजीवियों से मिलना और उसके कुछ दिन पहले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग सहित कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात करना, आरएसएस की छवि बदलने का हिस्सा है। असल में RSS उस छवि को बदलना चाहता है, जिसमें विपक्षी दल और बुद्धजीवी वर्ग उसे मुस्लिम विरोधी कहते हैं। साथ ही इस बात का दावा करते हैं कि RSS भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता है। इन मुलाकातों से साफ है कि आरएसएस, हिंदू-मुस्लिम समाज के बीच बनी दूरी को कम करना चाहता है। अगर ऐसा होता है तो इसका सामाजिक और राजनीतिक असर पड़ना स्वाभाविक है। और इसका सबसे बड़ा फायदा भाजपा को 2024 के लोक सभा चुनाव में मिल सकता है।
पहली बार महिला मुख्य अतिथि
आरएसएस का दशहरा कार्यक्रम उसके लिए बेहद मायने रखता है। इसके जरिए संघ अपनी वैचारिक सोच लोगों को सामने रखता है। ऐसे में हमेशा यह कोशिश रही है कि इस कार्यक्रम किसी ऐसे शख्स को मुख्य अतिथि बनाया जाय, जिसका संदेश बड़े तबके तक जाय। हाल के दिनों में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, एचसीएल चीफ शिव नाडर, पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी मुख्य अतिथि रहे हैं। और अब उसके 96 साल के इतिहास में पहली बार किसी महिला को मुख्य अतिथि बनाया गया है। हरियाणा के रेवाड़ी जिले की रहने वाली संतोष यादव दो बार एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला हैं। उन्हें पद्म श्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।
संतोष यादव का आरएसएस के कार्यक्रम मुख्य अतिथि बनने से दो संदेश साफ हैं। एक तो RSS ने महिला तबके को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है। दूसरा संतोष यादव, यादव समाज से आती है। जिनकी यूपी, बिहार जैसे राज्यों में बड़ी आबादी है। साफ है कि आरएसस महिलाओं के साथ ओबीसी वर्ग को भी अपने साथ जोड़ना चाहता है।
गरीब तबके के साथ जुड़ने की कोशिश
ठीक इसी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने बढ़ती बेरोजगारी, इनकम की असमानता और गरीबी पर चिंता जताकर उस तबके की सहानुभूति लेने की कोशिश की है, जो समाज में हाशिए पर है। साथ ही ऐसा कर सत्ताधारी दल भाजपा को भी संदेश देने की कोशिश है कि तीनों आर्थिक मुद्दों के दिशा में जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने की जरूरत है। क्योंकि इस समय देश की करीब 26 करोड़ आबादी गरीबी रेखा के नीचे हैं।
इसी तरह ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई का खुलासा करती है। उसके अनुसार साल 2021 में जहां भारत में 84 प्रतिशत परिवारों की इनकम में गिरावट आई, वहीं भारतीय अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई। और इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि देश के सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों के पास देश की 45 फीसदी दौलत है।
जाहिर है आरएसएस में दिख रहे बदलाव का असर आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी का कार्यशैली में भी दिख सकता है। और उसके लिए यह इसलिए भी अहम है कि अगर उसे लगातार तीसरी सत्ता में आना है,तो इन 3 मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जिन पर आरएसएस जोर दे रहा है।
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प्रशांत श्रीवास्तव author

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