हवाहवाई नहीं है जनसंख्या पर दत्तात्रेय होसबोले का बयान, आबादी के असंतुलन से बन चुके हैं नए देश
Dattatreya Hosabale : प्रयागराज में संघ के शिविर में होसबोले ने कहा कि सरकार को जनसंख्या पर काबू पाने के लिए नीति बनानी चाहिए। अगर जनसंख्या इसी रूप में असंतुलित होकर बढ़ती रही दो भारत की हालत भी चीन और जापान जैसी हो सकती है। उन्होंने कहा कि देश में हिंदुओं की आबादी घट रही है।
मुख्य बातें
- RSS के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने जनसंख्या के असंतुलन पर चिंता जताई है
- उन्होंने बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार से नीति बनाने की मांग की है
- होसबोले ने हिंदुओं के गिरते प्रजनन दर के लिए कुछ कारणों को जिम्मेदार माना है
प्रयागराज में संघ के शिविर में दिया बयान
प्रयागराज में संघ के शिविर में होसबोले ने कहा कि सरकार को जनसंख्या पर काबू पाने के लिए नीति बनानी चाहिए। अगर जनसंख्या इसी रूप में असंतुलित होकर बढ़ती रही दो भारत की हालत भी चीन और जापान जैसी हो सकती है। उन्होंने कहा कि देश में हिंदुओं की आबादी घट रही है। होसबोले ने धर्मांतरण की वजह से हिंदुओं की आबादी में असंतुलन पर चिंता जताई। उन्होंने वही बात दोहराई जिसके बारे में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी के मौके पर आगाह किया था।
आबादी के असंतुलन पर भागवत भी चिंता जता चुके हैं
दशहरे पर अपने संबोधन में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने आबादी असंतुलन के जिस खतरे से देश को चेताया था एक बार फिर प्रयागराज में 4 दिनों तक चली अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक में विस्तार से मंथन हुआ। इस बैठक में खास फोकस देश में पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या के धार्मिक असंतुलन पर रहा। बैठक के बाद संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले कहा कि जिस तरह से देश की जनसंख्या में बदलाव हो रहा है वो एक खतरे की घंटी से कम नहीं है। RSS के मुताबिक देश की जनसंख्या में धर्म के आधार पर असंतुलन आने के मुख्य रूप से तीन बड़े कारण हैं।
हिंदू परिवारों के प्रजनन दर में आई कमी
पहला कारण हिंदू परिवारों में प्रजनन दर में कमी है। हिंदू परिवारों में प्रजनन दर 1992 में प्रति परिवार 3.30 थी जो अब 2021 के आंकड़ों के मुताबिक घटकर 1.94 हो गई है जबकि ये कम से कम दर प्रति परिवार 2 रहनी चाहिए। आबादी असंतुल का दूसरा बड़ा कारण धर्म परिवर्तन है। पिछले तीन दशकों के आंकड़ों के मुताबिक हिंदुओं की आबादी दर में लगातार कमी आई है। 1981 में ये दर 23% थी तो 1991 में घटकर 20% रह गई और 2011 में और घटकर 17% रह गई।
देशों को बंटवारे का दंश झेलना पड़ा
आरएसएस के मंथन से निकले इस नए मुद्दे ने देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। हिंदू संगठन RSS के इस मंथन का खुलकर स्वागत कर रहे हैं लेकिन सियासी दलों को ये रास नहीं आ रहा है। RSS की ये चिंता सिर्फ हवाहवाई नहीं है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी देश में आबादी का असंतुलन पैदा हुआ है तब तब उसे बटंवारे का दंश झेलना पड़ा है। 1947 में भारत का विभाजन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 1975 में इंडोनेशिया में 40% आबादी ईसाई थी जो 90 के दशक में बढ़कर 90% हो गई और नतीजा ये हुआ कि 1999 में ईस्ट तिमोर नया देश बन गया। 2011 में धर्म के आधार पर ही साउथ सूडान नया देश बना और सर्बिया भी 2008 में धर्म के आधार पर ही टूटा और 90% मुस्लिम आबादी के साथ कोसोवो नया देश बन गया।
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