सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच हो गया है समझौता? समझिए कांग्रेस के 3 चुनावी प्लान

Rajasthan Chunav: सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच रंजिशें खत्म हो चुकी हैं, कांग्रेस पार्टी लगातार ये दावे कर रही है। मगर इसमें कितनी सच्चाई है, इसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है। आपको उन सारे फैक्टर्स को समझना चाहिए जो राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए इन दिनों कांग्रेस पार्टी अपना रही है। क्या सचमुच दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव खत्म हो गया है?

सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच खत्म हो गया है विवाद?

Rajasthan Election 2023: राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच अब कोई गिला शिकवा नहीं है? शायद ये आज के सियासी दौर का सबसे अहम और सबसे पेंचीदा सवाल है। हालांकि कांग्रेस पार्टी बीते लंबे वक्त से दोनों नेताओं के बीच संतुलन बिठाने की कोशिशों में जुटी हुई है। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अगर सचमुच पायलट और गहलोत के बीच सबकुछ ठीक नहीं हुआ, तो वाकई कांग्रेस के लिए मुसीबतें बढ़ी जाएगी। आपको राजस्थान में कांग्रेस के उन 3 चुनावी प्लान को समझना चाहिए, जिसे अगर नहीं अपनाया गया तो सत्ता में वापसी की राह आसान नहीं होगी।

1). कहीं बेवफा न हो जाएं सचिन पायलट...

सियासत में कोई सगा नहीं होता है, ये राजनीति की सबसे बड़ी सच्चाई है। कांग्रेस भी इस बात से गुरेज नहीं कर सकती है कि पूरे देश में कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने हाथ के पंजे से पीछा छुड़ाया है। कतार बहुत लंबी है, मगर क्या सचिन पायलट भी ऐसा कर सकते हैं? ये सवाल इन दिनों ज्यादा अहम हो गया है। पायलट के खास दोस्त कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब भाजपा का कमल अपने हाथ में थामा था, तो ऐसी चर्चाएं तेज हो गई थी कि अगला नंबर सचि पायलट का ही है। हालांकि अभी तक वो कांग्रेस से साथ बने हुए हैं। मगर पायलट और उनके समर्थक कांग्रेस में रहते हुए खुद को सौतेला समझते हैं। विधानसभा चुनाव 2018 में जब कांग्रेस सत्ता में आई थी तो उस वक्त पायलट पीसीसी चीफ थे और उस वक्त कांग्रेस ने दमदार जीत हासिल की। मगर वही हुआ जो कांग्रेस में होता आया है। ये कहना गलत नहीं होगा कि पायलट साइडलाइन किए गए। इस दौरान उनके बागी तेवर भी देखने को मिले, लेकिन उन्होंने कांग्रेस के साथ बेवफाई नहीं की। अब कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती यही होती कि कहीं सचिन अब बेवफा न हो जाएं...

2). सीट बंटवारे में हुई चूक तो बिगड़ जाएगी बात

राजस्थान में अशोक गहलोट गुट बनाम सचिन पायलट गुट के बीच आमने-सामने की लड़ाई जारी रहती है, इसमें कोई शक नहीं है। मगर चुनाव को दौरान कांग्रेस पार्टी को जो सबसे ज्यादा समझने की जरूरत होगी, वो यही कि पायलट गुट के नेताओं की नाराजगी कहीं इस कदर ना बढ़ जाए कि वो बेलगाम हो जाएं। सचिन पायलट खुद को मजबूत करने के लिए इस कोशिश में होंगे कि उनके ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट मिले, जिससे अगर कभी गहलोत से मुकाबला करना हो तो उनके खेमे में विधायकों की संख्या अधिक हो। हालांकि गहलोत को कम आंकना भी आसान नहीं होगा। टिकट बंटवारे के दौरान कांग्रेस को उस रणनीति का इस्तेमाल करना होगा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। दोनों नेताओं को संतुष्ट करना पार्टी के लिए सबसे मुश्किल टास्क होगा।
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