Medha Patkar: आपराधिक मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सजा निलंबित
Medha Patkar News: साकेत कोर्ट ने दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सजा को निलंबित कर दिया है।
आपराधिक मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सजा निलंबित
साकेत कोर्ट ने दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर (Medha Patkar) की सजा को निलंबित किया वहीं साकेत कोर्ट ने दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ( delhi lg vk saxena) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, साकेत कोर्ट ने पाटकर को 25,000 रुपये के बेल बांड और श्योरिटी पर जमानत दी।
साकेत कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 4 सितंबर को होगी बता दें दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को 23 साल पुराने मानहानि के एक मामले में कारावास की सजा सुनायी थी। मेधा पाटकर के खिलाफ यह मामला सन् 2000 से चल रहा है। मेधा पाटकर पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी कोर्ट ने लगाया था।
वीके सक्सेना मानहानि केस
गौर हो कि जुलाई 2024 की शुरूआत में दिल्ली की साकेत कोर्ट ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर को तत्कालीन केवीआईसी चेयरमैन वी के सक्सेना (अब दिल्ली के एलजी) द्वारा दायर मानहानि के मामले में 5 महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। कोर्ट ने मेधा पाटकर को वी के सक्सेना को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था।
जान लें क्या है मामलायह मामला दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने उनके खिलाफ उस वक्त दायर किया था जब वह (सक्सेना) गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख थे। अदालत ने पाटकर को यह सजा अपने समक्ष मौजूद सबूतों और इस तथ्य पर विचार करने के बाद सुनायी कि मामला दो दशक से अधिक समय तक चला। इस अपराध के लिए अधिकतम दो वर्ष तक की साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया था
हालांकि अदालत ने पाटकर को आदेश के खिलाफ अपील दायर करने का मौका देने को लेकर सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया था,‘प्रोबेशन’ पर रिहा करने के पाटकर के अनुरोध को खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा, "तथ्यों... नुकसान, उम्र और बीमारी (आरोपी की) को देखते हुए, मैं अधिक सजा सुनाने के पक्ष में नहीं हूं।"
23 साल पुराना है ये मामला
पाटकर और सक्सेना के बीच वर्ष 2000 से ही एक कानूनी लड़ाई जारी है, जब पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के विरुद्ध एक वाद दायर किया था। सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर उनके (सक्सेना) खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस में मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए भी पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए थे। सक्सेना तब अहमदाबाद के एक एनजीओ ‘काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ का नेतृत्व कर रहे थे।
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