केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, समलैंगिक शादी के सवालों को संसद के लिए छोड़ने पर करें विचार
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से इस मुद्दे को संसद पर छोड़ने का आग्रह किया।
सुप्रीम कोर्ट
उन्होंने न्यायमूर्ति एस. के. कौल, न्यायमूर्ति एस.आर. भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ से कहा कि कई अन्य विधानों पर भी इसका अनपेक्षित प्रभाव पड़ेगा, जिस पर समाज में और विभिन्न राज्य विधानमंडलों में चर्चा करने की जरूरत होगी।
संसद कानून बना सकती है
इस दौरान एसजी मेहता ने कहा कि विवाह के अधिकार ने केंद्र को विवाह की नई परिभाषा बनाने के लिए बाध्य नहीं किया। संसद ऐसा कानून बना सकती है लेकिन यह पूर्ण अधिकार नहीं है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से इस मुद्दे को संसद पर छोड़ने का आग्रह किया।
एसजी मेहता ने कहा कि अदालत एक बहुत ही जटिल विषय से निपट रही है जिसका गहरा सामाजिक प्रभाव है। वह सवाल उठाता है कि शादी किससे और किसके बीच होती है, इस पर कौन फैसला करेगा।
सरकार का रुख
केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की दलीलों के खिलाफ मार्च में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि पार्टनर के रूप में एक साथ रहना और समलैंगिक व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध बनाना भारतीय परिवार इकाई एक पति, एक पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों के साथ तुलनीय नहीं है। केंद्र ने जोर देकर कहा कि समलैंगिक विवाह सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है।
एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि शादी की धारणा ही अनिवार्य रूप से विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के बीच एक संबंध को मानती है। यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के विचार और अवधारणा में शामिल है और इसे न्यायिक व्याख्या से कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
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