कौन हैं सारा सनी भारत की पहली मूक-बधिर वकील? जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में की बहस
Sara Sunny Makes History: सारा सनी भारत की पहली ऐसी वकील हैं, जिन्होंने मूक-बाधिर होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट की वर्चुअल प्रोसीडिंग्स में हिस्सा लिया। उन्होंने साइन लैंग्वैज की मदद से अदालत में केस प्रजेंट किया। उन्होंने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तारीफ करते हुए कहा कि सीजेआई ने हमेशा ही दिव्यांगजनों की परेशानियों को समझा है।
मूक-बाधिर एडवोकेट सारा सनी ने सुप्रीम कोर्ट में पहला केस प्रजेंट किया।
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट में पहली बार एक मूक-बाधिर वकील ने अपना पहला केस लड़ा। दरअसल, शुक्रवार को एडवोकेट सारा सनी ने एक साइन लैंग्वेज की मदद से अदालत में केस की सुनवाई में अपना पक्ष रखा। वर्चुअल प्रोसीडिंग्स में इंडियन साइन लैंग्वेंज इंटरप्रेटर सौरव रॉयचौधरी की मदद से एडवोकेट सारा ने हिस्सा लिया। सारा की तरफ से भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) संचिता ऐन ने अपील की थी कि दुभाषिया को अनुमति दी जाए ताकि सारा कोर्ट की कार्यवाही को समझ सकें।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने दी इस बात की इजाजत
कोर्ट रूम मॉडरेटर ने पहले तो इंटरप्रेटर को पूरी कार्यवाही के दौरान वीडियो ऑन रखने की अनुमति नहीं दी, हालांकि बाद में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सारा सनी और सौरव रॉय को इसकी इजाजत दे दी। एक रिपोर्ट में ये बताया गया है कि इंटरप्रेटर की स्पीड से सभी काफी इंप्रेस हुए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी तारीफ करते हुए कहा कि जिस स्पीड से इंटरप्रेटर साइन लैंग्वेज को समझा रहे हैं वो काबिल ए तारीफ है।
सारा ने चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की तारीफ की
एडवोकेट सारा सनी ने कहा कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की वजह से दिव्यांगजनों के लिए अदालत के दरवाजे खुल रहे हैं। वो जस्टिस सिस्टम में लगातार समानता लाने की कोशिश कर रहे हैं। सारा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में उनके एक्सपीरिएंस के लिए दरवाजे एडवोकेट संचिता ने खोले। उनकी वजह से ही ये साबित हो पाया कि दिव्यांगजन कहीं से भी पीछे नहीं है।
मूलरूप से बेंगलुरु की रहने वाली हैं सारा
सारा सनी मूलरूप से कर्नाटक के बेंगलुरु की रहने वाली हैं। सारा ने अपनी पहले केस को लेकर खुशी भी जाहिर की। उन्होंने बताया कि यह मेरे लिए एक सपना साकार होने जैसा है। मेरी बहुत इच्छा थी कि मैं सुप्रीम कोर्ट में एक मामले के लिए केस का पक्ष रखूं। मैंने इतनी जल्दी ये सपना पूरा होने उम्मीद नहीं की थी। मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति में ऐसा हुआ तो इससे मेरे आत्मविश्वास को बल मिला और हिम्मत मिली है।
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