Sawal Public Ka: आखिर जांच नहीं होगी तो कैसे तय होगा, ज्ञानवापी में शिवलिंग है या फव्वारा?
Sawal Public Ka: वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट जज जस्टिस अजय कृष्ण विश्वेश ने ज्ञानवापी में मिली शिवलिंग (Shivling) जैसी आकृति पर कार्बन डेटिंग (Carbon dating) या वैज्ञानिक तरीके से जांच की मांग को ठुकरा दी है। सवाल पब्लिक का ये भी है कि अगर शिवलिंग जैसी आकृति की वैज्ञानिक जांच होती है तो किसे दिक्कत है। आखिर जांच नहीं होगी तो कैसे तय होगा कि ज्ञानवापी में शिवलिंग है या फव्वारा ?
इसलिए आज सवाल पब्लिक का है कि क्या अयोध्या मामले की तरह ज्ञानवापी का फैसला सिर्फ और सिर्फ सबसे बड़ी अदालत से हो सकता है? हम यहां याद दिलाते हैं कि श्रृंगार गौरी केस की सुनवाई ही ना हो इस के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में गुहार की गई थी। सवाल पब्लिक का ये भी है कि अगर शिवलिंग जैसी आकृति की वैज्ञानिक जांच होती है तो किसे दिक्कत है? क्यों कोर्ट में कार्बन डेटिंग या ASI सर्वे का विरोध हो रहा है? आखिर जांच नहीं होगी तो कैसे तय होगा कि ज्ञानवापी में शिवलिंग है या फव्वारा ? ज्ञानवापी की शिवलिंग जैसी आकृति की जांच की मांग आज भले ठुकरायी गई लेकिन क्या इसे सीधे-सीधे हिंदू पक्ष को झटका कहेंगे? या फिर इसमें हिंदू पक्ष के लिए भी बड़े संकेत हैं।
वाराणसी कोर्ट का आदेश
इसमें लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को आदेश में कहा था कि जो कथित शिवलिंग पाया गया है उसे सुरक्षित रखा जाए। ऐसी स्थिति में यदि कार्बन डेटिंग या ग्राउंड पेनीट्रेटिंग राडार का प्रयोग करने पर उस कथित शिवलिंग को क्षति पहुंचती है तो ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा। इसके अलावा ऐसा होने पर आम जनता की धार्मिक भावनाओं को भी चोट पहुंच सकती है। मेरा यह भी विचार है कि इस स्तर पर कथित शिवलिंग की आयु, प्रकृति और संरचना का निर्धारण करने के लिए ASI को निर्देश दिया जाना उचित नहीं होगा।
वाराणसी कोर्ट के इस आदेश का हिंदू पक्ष के लिए मतलब ये निकलता है
1. शिवलिंग जैसी आकृति में हिंदुओं की आस्था है...इसे वाराणसी कोर्ट भी मान रहा है।
2. शिवलिंग है या नहीं, इसकी मेरिट पर फैसला नहीं हुआ है।
3. इससे श्रृंगार गौरी पूजा की सुनवाई की मांग पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
इसीलिए हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन अब अपनी मांग के साथ सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख करने वाले हैं। ज्ञानवापी की अदालती लड़ाई अपनी जगह है, लेकिन आज मुस्लिम पक्ष की मांग को वाराणसी की कोर्ट ने स्वीकार किया है तो हम आज एक और मुद्दे को आपके सामने उठाना चाहते हैं। वाराणसी कोर्ट के इस फैसले से सिर्फ 2 दिनों पहले...सिर्फ 2 दिनों पहले.. ज्ञानवापी के मस्जिद की अंजुमन इंतजामिया कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी एस एम यासीन ने क्या कहा था?
उन्होंने अपने बयान में भारत की अदालती व्यवस्था को ही कटघरे में खड़ा किया था। और मुस्लिम विक्टिम कार्ड खेला था।
ये वही एस एम यासीन हैं जिन्होंने अप्रैल में कहा था कि किसी को ज्ञानवापी परिसर में सर्वे या वीडियोग्राफी के लिए घुसने नहीं देंगे। आपको ये भी याद होगा कि कोर्ट के आदेश पर मई में जब पहली बार एडवोकेट कमिश्नर सर्वे के लिए गए थे तो किस तरह उनका रास्ता रोकने की कोशिश हुई थी। लेकिन ठीक है, कम से कम आज के वाराणसी कोर्ट के फैसले का मुस्लिम पक्ष ने स्वागत किया। तो उधर ज्ञानवापी में आस्था की लड़ाई लड़ रहे हिंदू पक्ष के लिए अभी इंतजार लंबा है।
हम यहां अयोध्या केस की याद दिलाना चाहते हैं। अयोध्या में राम जन्मभूमि पर लगा ताला 1986 में खुला था। ये वो दौर था जब राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ रहा था। हिंदू पक्ष ने फैजाबाद कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी। और 2019 में जाकर इंसाफ पाने में कामयाब रहे। अयोध्या केस में हुए ASI सर्वे में मंदिर के अवशेषों का सच सामने आया था। और ये हिंदू पक्ष के लिए वरदान साबित हुआ। क्या इसीलिए आज ज्ञानवापी में मिली शिवलिंग जैसी आकृति की वैज्ञानिक जांच का विरोध हो रहा है? हिंदुओं का इंतजार भले लंबा हो, लेकिन आस्था कायम है।
सवाल पब्लिक का 1. वाराणसी कोर्ट का आज का फैसला किसके लिए राहत, किसके लिए आफत?
2. क्या ज्ञानवापी विवाद पर सच का सामना करने से मुस्लिम पक्ष भाग रहा है ?
3. क्या सच सामने लाने के लिए अयोध्या की तरह ज्ञानवापी में ASI सर्वे होना चाहिए?
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