शिवसेना विवाद में गवर्नर की भूमिका पर SC की टिप्पणी, कैसे पता चला कि कुछ गलत हो सकता है
Supreme court comment on shivsena: शिवसेना विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि उसका मत है कि राज्यपाल को इस तरह से बीच में नहीं आना चाहिए था। सवाल यह है कि क्या किसी सदस्य की जान पर खतरा ही विश्वासमत का आधार हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की शिवसेना मामले में टिप्पणी
संवैधानिक पीठ ने पूछे कड़वे सवाल
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संवैधानिक पीठ ने सवाल पूछा कि क्या विश्वास मत बुलाने के लिए वास्तव में संवैधानिक संकट था। अगर किसी सरकार पर खतरा हो तो राज्यपाल उसे गिराने में खुद की इच्छा से सहयोगी नहीं हो सकते हैं। राज्यपाल ने जिस तरह से विश्वास मत के लिए सदन को बुलाया वो तरीका सही नहीं था। सवाल यह भी है कि आखिर उन्होंने तीन साल के बाद यह कैसे अनुमान लगाया कि आगे किस तरह के हालात का निर्माण हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे खेमे से कहा कि दोनों गुटों के बीच संख्या बल का फासला कम यह स्पीकर से लिए मानना या ना मानना आसान है। लेकिन सवाल यह कि स्पीकर के सामने किस तरह के विषय सामने आएंगे इसे समझना होगा।
एकनाथ शिंदे खेमे का तर्क
शिंदे के वकील नीरज कौशल ने तर्क पेश किया कि 1994 में संवैधानिक पीठ(9 सदस्यों वाली) ने ही कहा था कि शक्ति परीक्षण किसी भी लोकतंत्र के लिटमस टेस्ट की तरह होता है। कोई सीएम खुद को इससे दूर नहीं कर सकता। अगर कोई सीएम इस व्यवस्था से बचने की कोशिश करते हैं तो इसका अर्थ साफ है कि उनके पास संख्या बल की कमी है। किसी पोलिटिकल पार्टी में डिविजन हुआ है या नहीं इसका फैसला सदन के स्पीकर को ही करना होता है।
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