सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई टाली, अप्रैल के पहले सप्ताह में होगी सुनवाई
जब एक वादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने दिन के दौरान सुनवाई के लिए एक नई याचिका का उल्लेख किया, तो सीजेआई ने कहा, हम इसे नहीं ले सकते हैं।



सुप्रीम कोर्ट
Places of Worship Act: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह तक टाल दी। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ करेगी। इससे पहले सुबह शीर्ष अदालत ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता से संबंधित एक मामले में कई नई याचिकाएं दायर किए जाने पर अपनी नाराजगी जताई।
सीजेआई बोले, याचिका दायर करने की भी एक सीमा
जब एक वादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने दिन के दौरान सुनवाई के लिए एक नई याचिका का उल्लेख किया, तो सीजेआई ने कहा, हम इसे नहीं ले सकते हैं। दिन की कार्यवाही की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता जयसिंह ने मामले का जिक्र किया। सीजेआई ने कहा, याचिका दायर करने की एक सीमा होती है। इतने सारे आईए (अंतरिम आवेदन) दायर किए गए हैं कि हम शायद इस पर विचार न कर पाएं। उन्होंने कहा कि मार्च में तारीख दी जा सकती है।
शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर, 2024 के अपने आदेश के माध्यम से विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही को प्रभावी रूप से रोक दिया, जिसमें वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण की मांग की गई थी। उसने तब सभी याचिकाओं को 17 फरवरी को प्रभावी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था।
ओवैसी, इकरा और कांग्रेस नेताओं की याचिका
12 दिसंबर के बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी नेता और कैराना सांसद इकरा चौधरी और कांग्रेस पार्टी की ओर से सहित कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें 1991 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की गई है। उत्तर प्रदेश के कैराना से लोकसभा सांसद इकरा चौधरी ने 14 फरवरी को मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर कानूनी कार्रवाई की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग की। उन्होंने कहा कि इससे सांप्रदायिक सद्भाव और देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खतरा है।
शीर्ष अदालत ने पहले ओवैसी की एक अलग याचिका पर भी विचार करने पर सहमति जताई थी, जिसमें इसी तरह की प्रार्थना की गई थी। अखिल भारतीय संत समिति नामक एक हिंदू संगठन ने 1991 के कानून के प्रावधानों की वैधता के खिलाफ दायर मामलों में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। इससे पहले, पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी, जिसमें 1991 के कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी गई थी। यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धर्मांतरण पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त, 1947 के समय के अनुसार बनाए रखने का प्रावधान करता है।
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