बढ़ेंगी आनंद मोहन की मुश्किलें, सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार से मांगा रिहाई से जुड़ा रिकॉर्ड
जी कृष्णैया के परिजनों ने आनंद मोहन की रिहाई का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
बढ़ेंगी आनंद मोहन की मुश्किलें
Anand Mohan Case: सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को बिहार सरकार को निर्देश दिया कि वह गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की 1994 में हुई हत्या के मामले में दोषी पूर्व सांसद आनंद मोहन को दी गई छूट से जुड़े सारे दस्तावेज पेश करे। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने बिहार सरकार की ओर से पेश वकील मनीष कुमार से कहा कि मामले में आगे कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा। पीठ ने उन्हें पूर्व सांसद आनंद मोहन को दी गई छूट से जुड़े सारे दस्तावेज पेश करने के निर्देश दिए।
दस्तावेज अदालत में पेश किए जाएं...
अदालत ने आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ जी कृष्णैया की पत्नी की ओर से दाखिल याचिका को आठ अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि राज्य सरकार ने पश्चगामी ढंग से नीति में बदलाव किया और आनंद मोहन को रिहा कर दिया। लूथरा ने पीठ से अनुरोध किया कि वह राज्य को आनंद मोहन के आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े सारे रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दे। साथ ही उन्होंने मामले की सुनवाई अगस्त में करने का भी अनुरोध किया।
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार और आनंद मोहन के वकील उसके समक्ष पेश हुए है। पीठ ने साथ ही कहा कि आगे कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा। पीठ ने कहा कि प्रतिवादी-4 (आनंद मोहन) को मिली छूट से जुड़े वास्तविक दस्तावेज अदालत में पेश किए जाएं। पीठ ने यह भी कहा कि आपराधिक पृष्ठिभूमि से जुड़े सभी रिकार्ड भी उसके समक्ष पेश किए जाएं। अधिवक्ता शोएब आलम एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश हुए और उन्होंने इस मामले में अदालत को सहयोग देने की अनुमति मांगी।
पीठ ने कहा कि मामले का राजनीतिकरण नहीं करिए। हम विशुद्ध कानूनी मुद्दे पर हैं और इसमें किसी हस्तक्षेप की इजाजत नहीं देंगे। अगर हमें लगेगा कि जरूरत है तो हम बार में सभी संबंद्ध लोगों को मामले में सहयोग करने की इजाजत देंगे। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन को समय से पहले रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर आठ मई को बिहार सरकार से जवाब मांगा था। बिहार कारागार नियमावली में संशोधन के बाद आनंद मोहन को 27 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था।
उमा कृष्णैया ने दायर की थी याचिका
उमा कृष्णैया ने 1 मई को बाहुबली नेता की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की थ। इस पर सुप्रीम कोर्ट आठ मई को सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। 1994 में गोपालगंज जिले के आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में बाहुबली नेता आनंद मोहन प्रमुख आरोपी थे। भीड़ को उकसाने के मामले में वह दोषी पाए गए थे, जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बाद में कोर्ट ने उनकी सजा को बदलकर उम्रकैद में तब्दील कर दिया था।
नीतीश सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव किया
बिहार की नीतीश सरकार ने बीते 10 अप्रैल को जेल मैनुअल में बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत आनंद मोहन समेत 26 कैदियों को सहरसा जेल से रिहा किया गया था। बिहार सरकार ने जिस नियम को बदला था, उसमें पहले ड्यूटी के दौरान हत्या के मामले में जेल से रिहाई का प्रावधान नहीं था। सरकार ने इसे बदल दिया, जिसके बाद आनंद मोहन को रिहा किया गया। उसकी रिहाई के बाद से नीतीश सरकार की आलोचना हुई। दिवंगत आईएएस जी. कृष्णैया की पत्नी व बेटी ने भी आनंद मोहन की रिहाई पर सवाल खड़े किए थे।
कौन थे जी कृष्णैया?
1985 बैच के आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे। दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णय्या 1994 में गोपालगंज के जिला मजिस्ट्रेट थे। वह एक गरीब दलित परिवार से ताल्लुक रखते थे और कहा जाता था कि वह अपने समय के सबसे ईमानदार नौकरशाह थे। 1994 में जब उनकी हत्या हुई थी वह गोपालगंज के जिलाधिकारी थे। जब उनका वाहन बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से गुजर रहा था तब एक गैंगस्टर छोटन शुक्ला की हत्या से गुस्साई भीड़ ने उन्हें पहले पीटा और फिर गोली मार दी थी। इस भीड़ की अगुवाई आनंद मोहन कर रहे थे।
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