सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने की मांग वाली याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वकील मैथ्यूज नेदुम्परा की इस दलील पर गौर किया कि कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने का अनुरोध करने वाली उनकी रिट याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाना है। वकील ने कहा, मैंने कई बार इसका उल्लेख किया है। रजिस्ट्री ने इसे खारिज कर दिया है और वह मेरी याचिका को सूचीबद्ध नहीं कर रही है।
चीफ जस्टिस ने दी ये दलील
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, रजिस्ट्रार ने कहा है कि जब संविधान पीठ किसी चीज पर एक बार फैसला सुना दे तो अनुच्छेद 32 के तहत याचिका (इस अनुच्छेद के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर याचिका सीधे सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है) सुनवाई योग्य नहीं होती। रजिस्ट्रार के आदेश के विरुद्ध अन्य उपाय भी हैं। वकीलों ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) पर फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका चैंबर में खारिज कर दी गई थी। उन्होंने कहा कि यह संस्था की विश्वसनीयता का सवाल है। कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करना होगा। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, मैं माफी चाहूंगा।
2015 में एनजेएसी को संवैधानिक करार दिया था
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एनजेएसी अधिनियम और 99वें संविधान संशोधन को 17 अक्टूबर, 2015 को असंवैधानिक करार दिया था और इसे खारिज कर दिया था। इसमें नेताओं और नागरिक समाज को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में अंतिम अधिकार देने का प्रावधान था। पीठ ने कहा था कि स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
एनडीए सरकार ने विधेयक पारित किया था
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने कॉलेजियम प्रणाली को हटाने के लिए एनजेएसी विधेयक पारित किया था। इस प्रणाली के तहत न्यायाधीशों का एक समूह फैसला करता है कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश कौन होंगे। एनजेएसी ने इसके लिए छह सदस्यों वाली एक संस्था बनाने का प्रस्ताव रखा था जिसमें प्रधान न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री और दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों को सदस्य बनाने की बात की गई थी।
याचिका स्वीकार करने से इनकार
इससे पहले 25 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को पुनर्जीवित करने की याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। इस याचिका में न्यायिक समय और ऊर्जा की अनावश्यक बर्बादी को रोकने की मांग की गई थी।
छह पन्नों के आदेश में सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार पुनीत सहगल ने बताया था कि कॉलेजियम प्रणाली को पहले ही बरकरार रखा जा चुका है, जबकि एनजेएसी - जिसने न्यायिक नियुक्तियों में सरकार को समान भूमिका दी थी, उसे अक्टूबर 2015 में एक संविधान पीठ द्वारा रद्द कर दिया गया था। फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका भी बाद में 2018 में खारिज कर दी गई थी।
क्या है कॉलेजियम सिस्टमकॉलेजियम सिस्टम सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपना विकसित किया हुआ एक सिस्टम है, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की जाती है। नियुक्ति फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जजों की अनुशंसा पर ही की जाती है। हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति भी कॉलेजियम की सलाह पर ही होती है। इस प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और उस राज्य के राज्यपाल शामिल होते हैं।
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