EWS आरक्षण पर सियासी जुगाली कितनी सही कितनी गलत, 1989-91 का दौर भी देखें

आर्थिक आधार पर गरीब सवर्णों को 10 फीसद आरक्षण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 से पक्ष में फैसला सुनाया। लेकिन यह विषय सियासी बहस का शक्ल अख्तियार कर रहा है। आरक्षण के समर्थकों का कहना है कि धीरे धीरे इस व्यवस्था को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।

EWS आरक्षण पर सियासी जुगाली

EWS कोटा यानी आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने बहुमत के आधार पर इसे सही माना। 2019 में मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण का प्रावधान किया था। तब संसद में एक-दो दलों को छोड़कर करीब करीब सभी दलों ने इसका सपोर्ट भी किया था। यानी जनप्रतिनिधि इसके पक्ष में थे। लेकिन कुछ लोग इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट चले गए और आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को आरक्षण को रोकने के लिए पूरा जोर लगा दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से साफ हो गया कि आर्थिक आधार पर आरक्षण पर कोई रोक नहीं लगेगी और ये जारी रहेगा। अदालत के इस फैसले के बाद कांग्रेस नेता उदित राज ने अदालत को जातिवादी तक करार देते हुए कहा कि इस व्यवस्था को खत्म करने की साजिश करार दिया।

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EWS कोटा

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  • जनवरी 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने 103 वें संविधान संशोधन के तहत EWS कोटा लागू किया था।
  • सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के खंड 6 में इस कोटे को जोड़ा जो नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देता है।
  • इसके तहत ही राज्य सरकार शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण और नौकरी पर आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग यानी EWS को 10 फीसदी आरक्षण दे सकती है।
  • साथ ही अनुच्छेद 30 (1) के तहत आने वाले अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर किसी भी शैक्षणिक संस्थान चाहे प्राइवेट भी हो..उसमें भी इस तरह का आरक्षण दिया जा सकता है।
  • EWS में आरक्षण सिर्फ जनरल कैटेगरी यानी सामान्य वर्ग के लोगों के लिए है। जिनके परिवार की सालाना आये 8 लाख रुपये से कम है
  • इस आय में सैलरी के अलावा, कृषि, व्यवसाय और दूसरे पेशे से मिलने वाली आय भी शामिल हैं।
3-2 से सुप्रीम कोर्ट का आया था फैसला

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