'भगवान ऐसी औलाद से तो अच्छा है बेऔलाद रहें', देखिए वृद्धाश्रम के बुजर्गों की दर्द भरी दिवाली; डबडबा जाएंगी आंखें
एक तरफ लोग दिवाली के लिए घरों में जोर शोर से तैयारियां कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने बुजुर्ग माता पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़कर आ रहे हैं। ऐसी ही ओल्ड ऐज होम में रहने वालों से हमने बात की, देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट-
देखिए बुजुर्गों की दर्दभरी दिवाली
Diwali Special: त्योहार और परिवार ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। त्योहारों की शोभा होते हैं हमारे मां-बाप। बाप यानी घर की छत और मां यानी घर का आंगन। लेकिन लगता है ये किसी और दौर की बात थी। आजकल तो इंसान अपने स्वार्थ सिद्धी में इतना मगन हो गया है कि उसे रिश्तों की, भावनाओं की कोई कद्र नहीं रह गई। परिवार में बुजुर्गों (Old Age) की बड़ी अहमियत होती है, लेकिन आजकल ऐसा कम ही देखने को मिलता है।संबंधित खबरें
ओल्ड ऐज होम बने सहाराजो मां बाप अपने कई बच्चों को एक छत के नीचे प्यार से पालते हैं उन्हें ही अपने बच्चों के बुरे व्यावहार और उनके तिरस्कार से परेशान होकर अपना बुढ़ापा old age home में गुजारना पड़ रहा है। उनके इस दर्द और व्यथा को Digital talk with Munish में पूरी ईमानदारी से दिखाने की कोशिश की गई है. कैसे दिवाली में अपने बनाए गए बड़े मकानों से दूर बुजुर्गों को ओल्ड ऐज होम में जिंदगी गुजारनी पड़ रही है। ये वो मां-बाप हैं जिन्हें हर पर्व त्योहार पर बस एक ही उम्मीद रहती है कि इनके बच्चे इनसे मिलने तो आ जाएं। वापस जाने की उम्मीद तो अधिकांश बुजुर्गों की खत्म हो चुकी है।
धन्य हैं ऐसे बच्चे!आखिर जिन बच्चों को उंगली पकड़कर कभी इन बुजुर्गों ने चलना सिखाया था, वो बच्चे ही इनकी उंगली पकड़कर इनकों आंगन नामक वृद्धाश्रम तक छोड़ गए. हमसे बात करते हुए कई बुजुर्ग मां-बाप अपने बच्चों को याद कर भावुक भी हो गए। बुजुर्गों ने बताया कैसे खून पसीने की कमाई से जिन बच्चों को पाल पोसकर बड़ा किया, उन बच्चों को ही बुढ़ापे में मां-बाप बोझ लगने लगे. समाज का ये सच बहुत डराने वाला है। नोएडा की KIDDIES FOUNDATION ऐसे बेसहारा बुजुर्गों के लिए सहारा बनने का काम कर रही है।
(मुनीष देवगन की रिपोर्ट)संबंधित खबरें
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