शरद पवार के गेम प्लान पर निगाहें गड़ाए बैठा है पूरा विपक्ष! 2024 के लिए सबसे अहम होंगे ये 3 मुद्दे
Opposition Meet Analysis: आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी पार्टियां रणनीति तैयार कर रही हैं। विपक्षी दलों की दो दिवसीय बैठक कर्नाटक के बेंगलुरु में चल रही है। पहले दिन शरद पवार बैठक में शामिल नहीं हो सके थे, ऐसे में दूसरे दिन सभी पार्टियों की निगाहें उनके मुद्दों पर टिकी होंगी। हाल ही में अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को ऐसा झटका दिया, जिसने सियासी गलियारे में खूब सुर्खियां बटोरी। शरद पवार का गेम प्लान इसलिए भी अहम होगा, क्योंकि इस वक्त वो राजनीति के एक घायल शेर हैं। और कहते हैं कि घायल शेर का वार कभी खाली नहीं जाता। आपको इस रिपोर्ट में उन 3 संजीवनी के बारे में बताते हैं, जो विपक्ष के लिए बेहद जरूरी है।
2024 के लिए क्या होगा शरद पवार का गेम प्लान?
Opposition Meet News: उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में चाचा-भतीजे के बीच बात बनी ही थी कि महाराष्ट्र में भतीजे ने अपने चाचा को ऐसा गच्चा दिया कि उनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर जोड़-तोड़ का दौर जारी है, विपक्षी दलों की दो दिवसीय बैठक में भाजपा को सत्ता से हटाने की रणनीति तैयार हो रही है। इस बीच हाल ही में भतीजे अजित पवार से मुंह की खाने के बाद बेंगलुरु में हो रही विपक्षी दलों की बैठक के दूसरे दिन पहुंचे शरद पवार के का सभी पार्टियों को बेसब्री से इंतजार था। आपको समझाते हैं कि 2024 के लिए वो 3 कौन-कौन से सबसे अहम मुद्दे होंगे, जिसे धरातल पर उतारने के लिए शरद पवार के गेम प्लान की सख्त जरूरत पड़ेगी।
1). विपक्षी दलों की एकजुटता को बनाए रखनास्टेज पर हाथ से हाथ मिलाकर तस्वीरें खिंचवाने के मौके कई बार देखे जा चुके हैं। वर्ष 2014 के बाद से विपक्षी एकता की बात सिर्फ तस्वीरों में ही नजर आई है। जब चुनाव आने वाला रहता है तो बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, मोदी हटाओ-देश बचाओ के स्लोगन के साथ हुंकार भरने की कोशिशें होती हैं। मगर अफसोस चुनाव की घोषणा होते ही सभी एक दूसरे के जानी दुश्मन की तरह बर्ताव करने लगते हैं। ऐसे कई मौके आ चुके हैं, जब विपक्षी पार्टियां एक मंच पर मौजूद रही है और उसके बाद ताश के पत्तों की तरह बिखर गई है। ऐसे में इस बार अगर वाकई चुनावों में विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार के खिलाफ खुद को मजबूत करना चाहता है, तो सबसे पहली शर्त होगी कि उनकी एकता बनी रहे। सभी को एक धागे में पिरोकर ही गठबंधन आगे बढ़ाया जा सकता है। इसमें शरद पवार की अगम भूमिका साबित होगी, हालांकि भतीजे की बगावत के बाद उनकी कार्यशैली भी कटघरे में जरूर खड़ी है। बगावत के बाद भी अजित पवार ने बार-बार चाचा शरद पवार के पास पहुंच रहे हैं, ये संकेत विपक्ष के लिए एक सकारात्मक संकेत है। शरद पवार का नाम उन नेताओं में शुमार है, जो हार कर भी जीतने में यकीन रखते हैं। इनका अगला स्टेप क्या हो सकता है, इसका अंदाजा भी कोई लगा नहीं पाता। तभी तो उन्हें कभी सियासत का मराठा योद्धा, तो कभी सियासी चाणक्य के दर्जे से नवाजा जा चुका है।
2). क्षेत्रीय पार्टियों पर भरोसा और उन्हें मजबूत करनादेश की सियासत कई दफा ऐसे अध्याय लिखे जा चुके हैं, जब क्षेत्रीय दलों की खूब बोलबाला रहा है। लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, एचडी देवगौड़ा, नीतीश कुमार, शरद पवार, ममता बनर्जी.. ऐसे न जाने कितने नाम रहे हैं, जिनकी केंद्रीय राजनीति में तूती बोलती रही है। विपक्षी एकता के लिए सबसे जरूरी कदम ये होगा कि इस गठबंधन में क्षेत्रीय पार्टियों पर भरोसा दिखाया जाना चाहिए और सभी को एक-दूसरे को मजबूत करने के लिए कोशिशें करनी चाहिए। शरद पवार इस रणनीति को भी धरातल पर उतारने के लिए सबसे योग्य नेता माने जा रहे हैं। इसे इस तरह से समझा जाए कि यदि किसी लोकसभा सीट पर एक से अधिक विपक्ष की पार्टियां अपनी दावेदारी पेश करेंगी तो BJP vs Many हो जाएगा। अगर भाजपा के खिलाफ हर लोकसभा सीट पर बड़े विपक्षी पार्टियों की तरफ से सिर्फ एक ही पार्टी के उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाएगा, तो निश्चित तौर पर मुकाबला बेहद रोचक हो जाएगा। ऐसी स्थिति में क्षेत्रीय पार्टियों पर ज्यादा भरोसे की जरूरत पड़ेगी। शरद पवार ने महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में इस बार भी ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों को शरद पवार से ये उम्मीद होगी कि इन दलों पर भरोसा और उन्हें मजबूत करने के लिए शरद पवार कोई गेम प्लान जरूर बनाएंगे।
3). कांग्रेस को सीट शेयरिंग में कॉम्प्रोमाइज के लिए मनानाएक कहावत है- 'दूर के ढोल सुहावन लागे...' फिलहाल विपक्षी एकता को बनाए रखने के लिए बैठकों का सिलसिला जारी है। मगर इन बैठकों में सभी नेताओं की सबसे बड़ी चुनौती होगी, कांग्रेस को सीट शेयरिंग के मुद्दे पर कॉम्प्रोमाइज के लिए मना पाना। लोकसभा चुनाव 2019 में सीट शेयरिंग पर बात नहीं बन पाने के चलते ही विपक्षी एकता धराशायी हो गई थी। खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कांग्रेस को अपने दिल पर पत्थर रखना पड़ सकता है। इससे पहले कांग्रेस इन राज्यों में लगभग सभी सीटों पर ताल ठोकती नजर आई है। अगर कांग्रेस को इस कॉम्प्रोमाइज के लिए कोई तैयार कर सकता है तो वो नाम शरद पवार का ही होगा। शरद पवार अगर कांग्रेस को कॉम्प्रोमाइज के लिए मना लेते हैं तो विपक्ष की गाड़ी को धक्का लगाया जा सकेगा, वरना आज जो एकजुट दिख रहे हैं वो लोकसभा चुनावों में एक दूसरे को कोसते नजर आएंगे।
शरद पवार पर ही क्यों भरोसा? समझिए वजहबंद कमरे में रणनीति बनाई जा रही है। वैसे तो सभी 26 पार्टियों के नेताओं की बातें अहम होंगी, मगर महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार का गेम प्लान इसलिए अहम माना जा रहा है, क्योंकि वो एक घायल शेर हैं। ये तो जगजाहिर है कि पलटवार करने में शरद पवार का कोई जवाब नहीं है। साल 1978 की बात है, कांग्रेस यू और कांग्रेस आई के गठबंधन वाली सरकार में वसंत दादा पाटील महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। शरद पवार तब की महाराष्ट्र सरकार में उद्योग मंत्री थे। एक रोज वसंत दादा पाटील के घर पर शरद पवार दोपहर के भोजन के लिए पहुंचे। भोजन के बाद वसंत दादा पाटील से शरद पवार ने बोला, 'तो दादा अब मैं चलता हूं, भूल चूक माफ कर देना...' तत्कालीन सीएम पाटील को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन 38 साल के पवार ने अपने सियासी गुरु यशवंत राव के इशारे 38 विधायकों को तोड़ दिया और तब की जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली। इसके साथ ही शरद पवार ने उस वक्त अपने नाम सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने का खिलाब भी हासिल कर लिया। ऐसे कई मौके आए हैं, जब कई पार्टियों को शरद पवार पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा नहीं था। अब देखना अहम होगा कि क्या विपक्ष का ये गठबंधन टिकता है या हर बार की तरह तितर-बितर हो जाता है।
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