बागी भतीजे का असर, जानें-शरद पवार को वेस्ट महाराष्ट्र- बारामती में लगेगा कितना बड़ा झटका
Sharad Pawar Politics: बारामती और पवार परिवार का अटूट रिश्ता है। लेकिन अब जब चाचा शरद पवार और भतीजा अजित पवार एक दूसरे के आमने सामने हैं तो क्या वो रिश्ता उसी तरह से कायम रहेगा या जमीनी स्तर पर बदलाव होगा उसे यहां पर समझने की कोशिश करेंगे।
शरद पवार का पश्चिमी महाराष्ट्र में असर
Sharad Pawar Politics: 5 जुलाई को चाचा शरद पवार और भतीजा अजित पवार एक साथ मंच साझा नहीं कर रहे थे। मंच साझा करने की कोई वजह भी नहीं थी। एमईटी में जहां अजित पवार ने शक्ति प्रदर्शन किया वहीं वाईबी सेंटर में शरद पवार का गुट भी शक्ति प्रदर्शन कर रहा था। लेकिन विधायकों की संख्या में अजित पवार आगे निकले। हालांकि मैजिक नंबर 36 से पीछे रहे। यह वो नंबर है जो उन्हें और उनके समर्थकों को दल बदल से बचाने के लिए जरूरी है। इन सबके बीच हम महाराष्ट्र के उस इलाके की चर्चा करेंगे जिसका मतलब ही शरद पवार है। बात यहां पश्चिम महाराष्ट्र और बारामती की हो रही है।
2019 में पश्चिम महाराष्ट्र में शानदार कामयाबी
2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान पश्चिम महाराष्ट्र की कुल 58 सीटों में से 22 पर कब्जा एनसीपी ने कब्जा किया था। 2014 के मुकाबले एनसीपी की ताकत 41 सीटों से बढ़कर 54 सीट की हो गई। 2020 में पार्टी की हार के कारण एनसीपी की सीटें घटकर 53 रह गईं। पंढरपुर-मंगलवेधा सीट पर उपचुनाव में बीजेपी को जीत मिली है। क्षेत्र की शेष 36 सीटों में से भाजपा को 18, शिवसेना को चार, कांग्रेस को आठ और अन्य को छह सीटें मिली थीं।छह महीने पहले लोकसभा चुनावों में पश्चिमी महाराष्ट्र ने सुप्रिया सुले (Baramati), श्रीनिवास पाटिल (Satara) और अमोल कोल्हे (Shirur) में एनसीपी के चार में से तीन सांसद चुने।मौजूदा सत्ता संघर्ष में सुले, कोल्हे और पाटिल ने वरिष्ठ पवार का समर्थन किया है जबकि रायगढ़ से पार्टी के चौथे सांसद सुनील तटकरे अजीत खेमे के साथ हैं और उन्हें राज्य इकाई का नया प्रमुख बनाया गया है। बुधवार को जब अजित खेमे ने एमईटी, बांद्रा में अपना शक्ति प्रदर्शन किया, तो पश्चिमी महाराष्ट्र के 22 में से 17 विधायक मौजूद थे। वहीं बाकी पांच विधायक वाईबी चव्हाण सभागार में मौजूद थे जहां शरद पवार ने भाषण दिया था।
अजित पवार द्वारा अधिकांश विधायकों को छीनने और पार्टी पर मजबूत नियंत्रण स्थापित करने के प्रयास के साथ यह क्षेत्र कई दलों के प्रभाव के साथ आगे बढ़ रहा है। जिसमें एनसीपी के दोनों खेमों की नजर आगामी चुनावों में मौजूदा वोट शेयर पर है।राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, बगावत के बाद अब महाराष्ट्र में मुख्य मुकाबला एक तरफ बीजेपी और दूसरी तरफ एनसीपी के दो गुटों के बीच होगा। अगर अजित खेमा विधानसभा और लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ता है तो क्षेत्र में गठबंधन को भारी फायदा होगा। हालांकि पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच। शरद पवार के प्रति निश्चित रूप से सहानुभूति है पार्टी में कई लोग मानते हैं कि अजित ही उनका भविष्य हैं। युवा कार्यकर्ताओं पर अजित की पकड़ जनता के साथ उनका जुड़ाव और वोटों को पार्टी के पक्ष में करने की क्षमता को देखते हुए, अगर यह काम करता है तो यह भाजपा-राकांपा गठबंधन के लिए फायदेमंद होगा
बारामती पर कितना असर
बदले हुए राजनीतिक समीकरणों का सबसे ज्यादा असर बारामती में पड़ने की संभावना है. वर्षा छाया क्षेत्र बारामती लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने अतीत में शरद पवार के प्रति भारी स्नेह दिखाया है। शरद पवार पहली बार 1967 में बारामती से चुने गए थे और तब से 2009 तक उन्होंने राज्य विधानसभा या लोकसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। जब पवार ने राज्यसभा जाने का फैसला किया तो उनकी बेटी सुप्रिया ने 2009 में गृहनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा और लगभग चार लाख वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की। हालांकि उनकी जीत में अजित का बड़ा योगदान था। यदि सुले 2014 और 2019 के चुनावों में जीतने के लिए संघर्ष कर रही थीं तो अजित पवार ने सुनिश्चित किया कि वह सुरक्षित रूप से आगे बढ़ें।
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