Maharashtra Dispute : 3 साल सत्ता में रहने के बाद शिंदे गुट को याद आई विचारधारा?

Maharashtra Dispute Update: महाराष्ट्र विवाद मामले पर 3 साल सत्ता में रहने के बाद शिंदे गुट को याद आई विचारधारा? महाराष्ट्र विवाद पर सुनवाई करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने राज्यपाल के तरीकों पर सवाल उठाए हैं।

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प्रतीकात्मक फोटो

Maharashtra News: फ्लोर टेस्ट कराने राज्यपाल का तरीका लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। ये टिप्पणी आज शिवसेना विवाद पर सुनवाई के वक्त सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने की। शिवसेना विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कई दिनों से सुनवाई कर रही है। चीफ जस्टिस ने ये टिप्पणी उस वक्त की जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बीजेपी-शिंदे गुट के कहने पर बहुमत परीक्षण के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने का आदेश दिया था।

राज्यपाल की तरफ से पेश हुए एसजी तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील दी कि तीन कारणों से सरकार के बहुमत को जांचने के लिए फ्लोर टेस्ट बुलाने का फैसला लिया गया.

1. एकनाथ शिंदे गुट के 34 विधायकों के समर्थन वाला वो पत्र जो राज्यपाल की को दिया गया जिसमें सभी बागी विधायकों ने एकनाथ शिंदे को अपना नेता माना था।

2. 47 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र जिसमें उन्होंने दावा किया कि उद्धव ठाकरे के तरफ से उन्हें धमकियां मिल रही हैं।

3. नेता प्रतिपक्ष द्वारा विधायकों के समर्थन का वो पत्र जिसमें बीजेपी और शिंदे गुट के गठबंधन के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या होने का दावा किया गया।

राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट के आदेश के समर्थन में दी गई दलीलों पर मुख्य न्यायाधीश ने ये निम्नलिखित टिप्पणियां की.

1. क्या किसी राजनीतिक दल में आंतरिक विद्रोह को आधार मानकर राज्यपाल फ्लोर टेस्ट कंडक्ट करा सकते हैं?

2.विश्वास मत हासिल करने के लिए सदन बुलाते समय क्या राज्यपाल को इस बात का आभास नहीं था कि इससे सरकार का तख्तापलट हो सकता है?

3. अगर किसी राजनीतिक दल के नेता के प्रति विधायकों में असंतोष है तो वो पार्टी के संविधान में दिए गए नियमों के मुताबिक अपना नया नेता चुन सकते हैं। लेकिन क्या इसके लिए सरकार को ही गिरा देने की जरूरत है?

4.राज्यपाल को कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहिए कि जिससे की सरकार गिर जाए।

5. शिवसेना का विचारधारा से हटकर एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने और राज्यपाल द्वारा सिर्फ पार्टियों के कहने पर ट्रस्ट वोट कराने में जमीन आसमान का फर्क है। ये लोकतंत्र को चिंतित करने वाला है।

तीन साल तक सत्ता का सुख भोगने के बाद अचानक से विधायकों को विचारधारा याद आई

सुनवाई के दौरान जब मुख्य न्यायाधीश ने ये टिप्पणी कि राज्यपाल को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए कि जिससे सरकार गिर जाए तो इस पर एसजी ने किहोटो फैसले का जिक्र किया। एसजी तुषार मेहता ने कहा, 'उद्धव ठाकरे एक अकेले व्यक्ति नहीं बल्कि राजनीतिक दल की विचारधारा विशेष का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में अगर वही नेता चुनाव के पहले तय हुए समझौते के वादे को तोड़कर एकदम विपरीत विचारधारा के दलों के साथ गठबंधन का फैसला लेते हैं तो इससे शिवसेना के अंदर नाराजगी होनी ही थी।'

सॉलिसिटर मेहता के इस तर्क पर सीजेआई ने सवाल पूछा कि गठबंधन के 3 साल बाद विचारधारा क्यों याद आई? 3 साल तक यही शिवसेना के बागी विधायक एनसीपी और कांग्रेस के साथ सत्ता का सुख भोगते रहे और फिर अचानक से 34 विधायक असंतुष्ट हो गए?

4 सवालों के जवाब तलाश रहा है पर सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ जो महाराष्ट्र में हुए उद्धव ठाकरे बनाम शिंदे विवाद को लेकर सुनवाई कर रही है। वह मुख्य तौर पर इन 4 कानूनी सवालों पर दोनों ही पक्षों की दलीलों को सुन रही है।

1. क्या किसी राजनीतिक पार्टी के अंदर हुई टूट और दल बदल करना एक ही बात है? इसका आशय ये है कि शिंदे गुट के 34 विधायकों का एक अलग गुट बना लेना शिवसेना की आंतरिक टूट मानी जायेगी या दलबदल.

2. एकनाथ शिंदे और अन्य विधायकों द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का विरोध करके अलग गुट बना लेना डिफेक्शन या दलबदल की श्रेणी में आएगा?

3. संविधान की 10 वीं अनुसूची के तहत क्या शिंदे गुट के खिलाफ कार्रवाई अयोग्यता की कार्रवाई विधानसभा अध्यक्ष कर सकते हैं?

4. क्या विधायकों के विद्रोह को पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का हिस्सा माना जायेगा या डिफेक्शन?

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गौरव श्रीवास्तव author

टीवी न्यूज रिपोर्टिंग में 10 साल पत्रकारिता का अनुभव है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से लेकर कानूनी दांव पेंच से जुड़ी हर खबर आपको इस जगह मिलेगी। साथ ही चुना...और देखें

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