जिस तीर-धनुष पर ठाकरे लड़ रहे हैं लड़ाई, वह हमेशा से नहीं था उनके पास; जानें पूरा इतिहास

चुनाव आयोग ने कहा है कि शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे को अलग-अलग चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। चुनाव आयोग ने उस तीर-धनुष चुनाव चिह्न को फ्रीज कर दिया है, जो शिवसेना का सिंबल था और जिसे लेकर उद्धव गुट और एकनाथ शिंदे गुट लड़ रही थी।

शिवसेना के चुनावी चिह्न की कहानी (फोटो- @ShivSena)

मुख्य बातें
  • शिवसेना को तोड़कर एकनाथ शिंदे बन चुके हैं सीएम
  • सीएम बनने के बाद पार्टी पर भी शिंदे गुट ने कर दिया है दावा
  • इसी के तहत शिवसेना के चुनाव चिह्न पर भी जताया था दावा

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से उद्धव गुट और एकनाथ शिंदे गुट के बीच तनाव बढ़ता दिख रहा है। कारण है चुनाव आयोग के द्वारा शिवसेना के चुनाव चिह्न को फ्रीज करना। इस कदम के लिए उद्धव गुट, एकनाथ शिंदे गुट को जिम्मेदार ठहरा रहा है। उद्धव गुट ने चुनाव आयोग के फैसले से नाराजगी भी जता दी है।

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आज जिस तीर और धनुष के चुनावी चिह्न के लिए ठाकरे गुट और शिंदे गुट भिड़ा हुआ है और लड़ाई लड़ रहा है, वो हमेशा से शिवसेना के पास नहीं थी। शिवसेना के चुनावी चिह्न कई बार बदल चुके हैं। आइए जानते हैं शिवसेना के चुनावी चिह्न के इतिहास की कहानी...

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शुरूआती कहानी

जब 1966 में दिवंगत बालासाहेब ठाकरे द्वारा शिवसेना की स्थापना की गई थी, तब यह एक राजनीतिक दल नहीं था, बल्कि एक संगठन और इसका लोगो गरजता हुआ बाघ था। इस लोगो का हमेशा से शिव सैनिकों द्वारा हर पार्टी कार्यालय, पोस्टर या आधिकारिक रूप से व्यापक रूप से उपयोग किया जाता रहा है।

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