उद्धव ठाकरे-एकनाथ शिंदे विवाद पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ी बेंच को सौंपा गया मामला

सु्प्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने महाराष्ट्र राजनीतिक संकट पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। क्या कहा है सुप्रीम कोर्ट ने जानिए।

उद्धव ठाकरे-एकनाथ शिंदे विवाद पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ी बेंच को सौंपा गया मामला

Supreme Court on Udhav-Shinde Case: उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के बीच शिवसेना पर कब्जे को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को मामला सौंप दिया है। अब 7 जजों की पीठ सुनवाई करेगी। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के रवैये पर भी सवाल उठाए। साथ ही उद्धव गुट को फौरी तौर पर कोई राहत नहीं दी।

अदालत ने क्या-क्या कहा

अदालत ने कहा कि पिछले साल 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना सही नहीं था। हालांकि अदालत ने पूर्व की स्थिति बहाल करने से इनकार करते हुए कहा कि ठाकरे ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

महाराष्ट्र में पिछले साल शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे नीत महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिरने और सामने आये राजनीतिक संकट से जुड़ी कई याचिकाओं पर सर्वसम्मति से अपने फैसले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना का व्हिप नियुक्त करने का विधानसभा अध्यक्ष का फैसला अवैध था।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, चूंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना किये बिना इस्तीफा दे दिया था, इसलिए राज्यपाल ने सदन में सबसे बड़े दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कहने पर सरकार बनाने के लिए शिंदे को आमंत्रित करके सही किया। पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारि, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल रहे।

अदालत ने कहा कि सदन में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल का ठाकरे को बुलाना उचित नहीं था क्योंकि उनके पास मौजूद सामग्री से इस निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई कारण नहीं था कि ठाकरे सदन में बहुमत खो चुके हैं। पीठ ने कहा, हालांकि, पूर्व स्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया था। इसलिए राज्यपाल का सदन में सबसे बड़े दल भाजपा के कहने पर सरकार बनाने के लिए शिंदे को आमंत्रित करने का फैसला सही था।

शीर्ष अदालत ने विधायकों को अयोग्य करार देने के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार से जुड़े पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2016 के नबाम रेबिया फैसले को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भी भेज दिया।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं थी। इसे पार्टी के भीतर के विवाद को हल करने के लिए एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार के विश्वास पर संदेह करने और फ्लोर टेस्ट करने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं थी। ऐसा संकेत नहीं मिला कि विधायक समर्थन वापस लेना चाहते थे। अगर यह मान भी लिया जाए कि विधायक सरकार से बाहर होना चाहते थे, तो उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया।

उद्धव बोले, मैंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि राज्यपाल का फैसला गलत था। मैंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था। एकनाथ शिंदे और फडणवीस में नैतिकता है तो वह भी मेरी तरह इस्तीफा दें। कुछ लोग सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अदालत का फैसला देश का भविष्य तय करेगा।

संजय राउत बोले, 16 बागी विधायक अयोग्य

सुप्रीम कोर्ट द्वारा महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट पर फैसला सुनाए जाने के कुछ ही देर बाद शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि अगर शीर्ष अदालत ने पाया है कि शिवसेना के उद्धव ठाकरे नीत खेमे के सुनील प्रभु आधिकारिक व्हिप (सचेतक) थे तो इस टिप्पणी के हिसाब से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत 16 बागी विधायक अयोग्य साबित होते हैं। उन्होंने कहा कि जब सरकार बनाने की प्रक्रिया ही अवैध थी तो शिंदे सरकार अवैध हुई। राज्यसभा सदस्य राउत ने कहा कि अदालत की टिप्पणियों के अनुसार सुनील प्रभु शिवसेना के आधिकारिक सचेतक थे इसलिए बागी विधायक अयोग्य साबित हो जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले साल 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना सही नहीं था। हालांकि अदालत ने पूर्व की स्थिति बहाल करने से इनकार करते हुए कहा कि ठाकरे ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

क्या था मामला

शिवसेना में संकट की शुरुआत एकनाथ शिंदे द्वारा 40 विधायकों के साथ उद्धव के खिलाफ विद्रोह के ऐलान से हुआ था। जून 2022 में शिंदे ने विद्रोह किया था। विद्रोह के बाद जून 2022 बागी असम चले गए और फिर बीजेपी की मदद से सरकार बनाने का दावा पेश किया।

तब उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया और एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक नहीं लगाई, जिसके आदेश तत्कालीन राज्यपाल बीएस कोश्यारी ने दिए थे। 4 जुलाई को एकनाथ शिंदे ने फ्लोर टेस्ट जीता था। शिंदे खेमे में गए विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग को लेकर उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

चुनाव आयोग ने अपनी ओर से शिंदे गुट को बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना का मूल धनुष और तीर चिन्ह दिया। उद्धव के गुट को मशाल का चुनाव चिह्न और नया नाम शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे दिया गया है। चुनाव आयोग ने बाद में एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना की मान्यता दे दी।

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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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