दृढ़, देसी और 'दबंग' हैं सिद्दारमैया: पॉलिटिक्स के लिए छोड़ दिया था पेशा, CM की रेस में खड़गे को भी लगा चुके हैं किनारे
Who is Siddaramaiah: सिद्दारमैया कुरुबा समुदाय से हैं। यह कर्नाटक में तीसरी सबसे बड़ी आबादी है। वह खुद को पिछड़े वर्ग के नेता के तौर पर स्थापित करते दिखे हैं। यही वजह है कि उन्होंने अहिंडा (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए कन्नड में सक्षिप्त शब्द) सम्मेलन आयोजित किए। यह संयोग से उस समय हुआ जब देवेगौड़ा के बेटे एच.डी. कुमारस्वामी को पार्टी में उभरते नेता के तौर पर देखा जा रहा था।
सीएलपी की बैठक में औपचारिक रूप से सिद्धरमैया को नेता और कर्नाटक का मुख्यमंत्री चुना गया।
Who is Siddaramaiah: सिद्धरमैया औपचारिक रूप से गुरुवार (18 मई 2023) को कर्नाटक में कांग्रेस विधायक दल के नेता चुन लिए गए। शिवकुमार ने कर्नाटक में कांग्रेस विधायक दल के नए नेता के रूप में सिद्धरमैया को चुनने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया। कांग्रेस पार्टी के सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से इसका समर्थन किया। ऐसे में वही सूबे के अगले और नए मुख्यमंत्री होंगे। 20 मई, 2023 को दोपहर साढ़े 12 बजे मनोनीत मंत्रियों के समूह के साथ शपथ लेंगे। वैसे, सिद्दारमैया दृढ़, देसी और 'दबंग' का मिश्रण माने जाते हैं। उन्होंने पॉलिटिक्स की दुनिया में बड़ा करने के लिए अपना मूल पेशा तक छोड़ दिया था। आइए, जानते हैं कांग्रेस के इस नेता के बारे में जो लगभग 25 साल तक इसी दल का धुर विरोधी रहा था:
75 साल के सीनियर नेता दूसरी बार दक्षिण भारतीय प्रदेश की कमान संभालेंगे। वह गरीब किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। 1980 के दशक की शुरुआत से 2005 तक वह कांग्रेस के धुर विरोधी हुआ करते थे। हालांकि, बाद में पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जेडी(एस) से बाहर किए जाने के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया।
दरअसल, सिद्धरमैया जेडी(एस) से बर्खास्त किए जाने से पहले राज्य इकाई प्रमुख के रूप में काम कर चुके थे। पार्टी के आलोचकों के मुताबिक, उन्हें इसलिए हटाया गया क्योंकि देवेगौड़ा कुमारस्वामी को पार्टी के नेता के रूप में बढ़ावा देने के इच्छुक थे। अधिवक्ता सिद्धरमैया ने उस वक्त भी ‘राजनीति से सन्यांस’ और वकालत के पेशे में लौटने का विचार व्यक्त किया था।
उन्होंने तब अपनी पार्टी के गठन की संभावना को खारिज करते हुए कहा था कि वह धनबल नहीं जुटा सकते। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने उन्हें लुभाते हुए पार्टी में पद देने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने कहा था कि वह भाजपा की विचारधारा से सहमत नहीं हैं । वह 2006 में समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। यह एक ऐसा कदम था जिसके बारे में कुछ वर्षों पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था।
वह अपनी धैर्य, दृढ़ता और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं। सूबे की बागडोर संभालने की उनकी महत्वाकांक्षा सबसे पहले साल 2013 में पूरी हुई थी। कांग्रेस पार्टी की तरफ से तब उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था। वह इसके अलावा नौ बार के विधायक रह चुके हैं। रोचक बात है कि यह विधानसभा चुनाव उनका आखिरी चुनाव है, जिसका ऐलान उन्होंने खुद किया था।
वैसे, उन्होंने अपनी यह इच्छा भी नहीं छिपाई कि वह अपनी सक्रिय सियासी पारी को “ऊंचाई” पर विराम देना चाहते हैं। सीएम बनने की रेस में उन्होंने कांग्रेस के कई दिग्गजों को किनारे लगाया है। ताजा मामला कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार का है। इस बार उन्होंने शिवकुमार से बाजी मारी तो इससे पहले 2013 में उन्होंने एम मल्लिकार्जुन खरगे (मौजूदा कांग्रेस चीफ और तत्कालीन केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्री) को पछाड़ा था।
हालांकि, 2004 में सूबे में खंडित जनादेश के बाद कांग्रेस-जेडी(एस) की मिली-जुली सरकार बनी थी। जेडी(एस) में तब रहे सिद्धरमैया को डिप्टी सीएम बनाया गया, जबकि कांग्रेस के एन धरम सिंह सीएम बने थे। सिद्धरमैया को यह शिकायत रही है कि उनके पास तब मुख्यमंत्री बनने का अवसर था, लेकिन देवेगौड़ा ने उनकी संभावनाओं पर पानी फेर दिया। यही नहीं, साल 1996 में भी मुख्यमंत्री की “गद्दी” से चूक गए थे, जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने थे। तब सिद्धरमैया को जेएच पटेल ने पछाड़ दिया था, जिनके मंत्रिमंडल में वे उप-मुख्यमंत्री थे।
विभिन्न मौकों पर ठेठ देसी अंदाज में नजर आने वाले सिद्धरमैया ने सीएम बनने की दिली तमन्ना को कभी न छुपाया और बार-बार, बिना किसी हिचकिचाहट के इस पर जोर दिया। जनता के बीच व्यापक प्रभाव रखने वाले सिद्धरमैया वित्त मंत्री के तौर पर 13 बार राज्य का बजट पेश कर चुके हैं। दोस्तों की मानें तो उनका व्यक्तित्व कुछ हद तक “दबंग” है और वह अपने लक्ष्यों को लेकर दृढ़ रहते हैं।
मैसुरू जिले के गांव सिद्धारमनहुंडी में 12 अगस्त, 1948 को जन्मे सिद्धरमैया ने मैसुरू विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली और बाद में वहीं से कानून की डिग्री हासिल की। पार्वती से उनकी शादी हुई, जबकि उनके बेटे डॉ. यतींद्र पिछली विधानसभा में वरुणा से विधायक थे। वहीं, इस बार सिद्धरमैया ने इस सीट से चुनाव जीता है। उनके बड़े बेटे राकेश की 2016 में मृत्यु हो गई, जिन्हें कभी उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था। (पीटीआई-भाषा इनपुट्स के साथ)
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