पाकिस्तान को कई बार गहरा घाव दे चुके हैं 'स्नो लेपर्ड', लद्दाख में दिखाई गजब की बहादुरी

India Pak war: लेह पहुंचने पर कैप्टन चांद ने नुब्रा, श्योक एवं इंडस वैली के स्थानीय लोगों से बात की। उन्हें लद्दाख के ऊपर मंडराने वाले खतरे के बारे में बताया। कैप्टन की बात सुनकर सशस्त्र समूह में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में युवा सामने आए। सेना ने इन युवकों को हथियार चलाने एवं दुश्मन से लड़ने की ट्रेनिंग दी।

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अब लद्दाख स्काउट के नाम से जाने जाते हैं नुब्रा सैनिक।

India Pak war: भारत अपने पड़ोसी एवं दुश्मन देशों पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध लड़ चुका है। इन लड़ाइयों में भारतीय सेना के जवान एवं अधिकारियों ने शौर्य, पराक्रम, साहस एवं दिलेरी का परिचय देते हुए सीमा की सुरक्षा की और दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। भारतीय सेना के शौर्य एवं पराक्रम के किस्से अनगिनत हैं। एक ऐसा ही किस्सा 1948 का है। पाकिस्तानी सेना लद्दाख में दाखिल हो गई थी। उसके साथ चितराल एवं गिलगिट स्काउट्स के प्रशिक्षित सैनिक थे। चूंकि इस इलाके में भारतीय सेना की मौजूदगी नहीं थी, ऐसे में यहां की स्थिति को लेकर भारत सरकार काफी चिंतित हो गई। सरकार को एक बार लगा कि वह इस इलाके को खो देगी।

आठ मार्च को लेह पहुंची भारतीय सेना

सेना ने नाजुक हालात को समझते हुए, इलाके की सुरक्षा एवं पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करने के लिए कैप्टन पृथी चंद के नेतृत्व में एक छोटी सी टुकड़ी भेजी। सेना की इस टुकड़ी के पास ज्यादा हथियार एवं गोला-बारूद भी नहीं था। आक्रमणकारियों को रोकने एवं उनका मुकाबला करने के लिए कैप्टन चंद से स्थानीय युवकों की एक टोली बनाने के लिए कहा गया। कैप्टन चंद के नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी 11,575 फीट ऊंचे जोजिला दर्रे को पैदल पार करती हुई आठ मार्च को लेह पहुंची।

नुब्रा, श्योक समुदाय के युवकों को दी ट्रेनिंग

लेह पहुंचने पर कैप्टन चंद ने नुब्रा, श्योक एवं इंडस वैली के स्थानीय लोगों से बात की। उन्हें लद्दाख के ऊपर मंडराने वाले खतरे के बारे में बताया। कैप्टन की बात सुनकर सशस्त्र समूह में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में युवा सामने आए। सेना ने इन युवकों को हथियार चलाने एवं दुश्मन से लड़ने की ट्रेनिंग दी। स्थानीय युवकों का यह सशस्त्र समूह अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हर एक कुर्बानी देने के लिए तैयार था।

ट्रेनिंग के बाद इन्हें नुब्रा गार्ड्स नाम मिला

संक्षिप्त प्रशिक्षण के बाद स्थानीय युवकों के इस सशस्त्र समूह को नुब्रा गार्ड्स नाम दिया गया और ला चुर्क एवं छंगमार में इनकी तैनाती की गई। अपनी पोस्ट पर तैनात नुब्रा गार्ड्स ने गजब का साहस दिखाया। इन्होंने करीब 53 दिनों तक पाकिस्तानी सेना को छकाए रखा। इलाके से भालीभांति परिचित होने के नाते इनके लिए यहां लड़ाई करना और दुश्मन को अपने हमलों से चौंकाना बड़ी बात नहीं थी। ये अलग-अलग दिशाओं से अचानक पाकिस्तानी सेना पर हमले करते थे। पाकिस्तानी सेना जब तक कुछ समझ पाती और लड़ने के लिए तैयार हो पाती तब तक नुब्रा लड़ाके उन्हें भारी क्षति पहुंचा देते थे। नुब्रा लड़ाकों के हमलों से पाकिस्तानी सेना उलझी रही तब तक भारतीय सेना को अपने सैनिक वहां भेजने के लिए जरूरी समय मिल गया।

लेह में दुश्मन के अहम ठिकाने पर कब्जा किया

सितंबर 1948 में सेना के साथ नुब्रा गार्ड्स ने नुब्रा घाटी में चले अभियान में हिस्सा लिया और कारू नुल्लाह में रणनीतिक रूप से अहम एक पोस्ट की सुरक्षा की। इसी महीने नुब्रा गार्ड्स ने 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित दुश्मन के एक अहम ठिकाने लामा हाउस पर कब्जा दिलाने में सेना का भरपूर साथ दिया।

1963 में नुब्रा गार्ड्स के लिए बना लद्दाख स्काउट

नुब्रा गार्ड्स की बहादुरी, काबिलियत और उनका जज्बा देखकर इन्हें 7वीं जम्मू-कश्मीर मलीशिया में शामिल किया गया। इसके बाद 1962 के भारत-चीन युद्ध में इन्होंने अपने अद्भुत पराक्रम का परिचय दिया। इसके बाद 1963 में नुब्रा गार्ड्स के लिए लद्दाख स्काउट का गठन कर दिया गया। 1971 की लड़ाई में लद्दाख स्काउट ने कारगिल में पाकिस्तान के कई पोस्टों को अपने कब्जे में लेकर भारत के लिए खतरे को कम किया।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

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