राजनीति के 'जेंटलमैन', क्रांतिकारी अर्थशास्त्री, कायमाब PM डॉ. मनमोहन सिंह की कहानी

Manmohan Singh Story: डॉ. मनमोहन सिंह ने एक सीनियर की तरह रिटायरमेंट ली और अपनी जगह सोनिया गांधी को सौंप कर पूरी गरिमा के साथ परिदृश्य से गायब हो गए। ठीक उसी तरह जैसे 92 साल की उम्र जीकर भारत मां के सच्चे सपूत के तौर पर क्रांतिकारी बदलावों के नायक की तरह उन्होंने काम किया और खामोशी से विदा हो गए।

डॉ. मनमोहन सिंह की कहानी

Manmohan Singh Story: भारत के सफल अर्थशास्त्री और आरबीआई गवर्नर रहे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं। 92 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले सौम्य मृदुल स्वाभाव के धनी डॉ. मनमोहन सिंह कई बड़े पदों पर रहते हुए देश की सेवा की। उनकी गैरमौजूदगी के कुछ ही लम्हे बीते हैं, लेकिन देश उत्कृष्ट योगदान के लिए महान शख्सियत-व्यक्तित्व की जीवंतता बनाए रखने वाले सिंह को याद कर रहा है। उनके जीवन से जुड़े कई अहम पड़ाव हैं, जिन पर चर्चा करना बेहद जरूरी है। सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पेशावर के करीब गाह नाम के गांव में गुरमुख सिंह कोहली और अमृत कौर के घर जन्म हुआ था। पेशावर में उनके परिवार का व्यापार था। बचपन में ही मां गुज़र गईं तो दादी जमना देवी के साये में ही बचपन के सबक सीखे। पेशावर में जिस स्कूल में डॉ. मनमोहन सिंह ने पढ़ाई की आज वो उन्हीं के नाम से जाना जाता है। आइये उनसे जुड़े तमाम तथ्यों पर एक नजर डालते हैं।

अविभाजित भारत में जन्में थे मनमोहन सिंह

ये अलग बात है कि वो स्कूल तब भारत का हिस्सा था अब पाकिस्तान का हिस्सा है। 15 सालों में मनमोहन सिंह ने अपनी आंखों से देश का बंटवारा और कत्लेआम की इंतिहा देखी थी। बंटवारे के बाद उनका परिवार अमृतसर में आकर बसा। अमृतसर के हिंदू कॉलेज में उनका दाखिला हुआ और इकनॉमिक्स से मनमोहन सिंह ने ग्रेजुएशन किया। उस दौर में ग्रेजुएट की डिग्री ही काफी ऊंची मानी जाती थी, लेकिन पढ़ाई में बेहद होशियार मनमोहन सिंह और पढ़ना चाहते थे। पहली से ग्रेजुएशन तक वो क्लास में अव्वल ही आए। इकनॉमिक्स में मास्टर्स करने के लिए मनमोहन सिंह प्रख्यात कैंब्रिज यूनिवर्सिटी पहुंचे फिर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से PhD की डिग्री ली। मनमोहन सिंह अब बन चुके थे डॉ. मनमोहन सिंह। इसके बाद डॉ. मनमोहन सिंह भारत लौटे और पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगे।

फॉरेन ट्रेड मिनिस्ट्री के बने एडवाइजर

एक युवा विद्वान अर्थशास्त्री और शिक्षक के तौर पर डॉ मनमोहन सिंह मशहूर होने लगे थे, लेकिन सीखने की ललक उन्हें ले गई यूनाइटेड नेशन जहां उन्होंने UNCTAD में 3 साल तक काम किया। 1966 से 1969 तक। अगले दो सालों तक उन्होंने विश्वविख्यात लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में पढ़ाया। अब डॉ. मनमोहन सिंह के चर्चे दिल्ली सरकार तक पहुंच रहे थे। उस वक्त देश के कॉमर्स मिनिस्टर रहे ललित नारायण मिश्रा ने डॉ. मनमोहन सिंह की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें फॉरेन ट्रेड मिनिस्ट्री का एडवाइजर बना दिया। ये सरकार के साथ काम करने का डॉ. मनमोहन सिंह का पहला अनुभव था। 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय का चीफ एडवाइजर बनाया गया। 1976 में वित्त सचिव, 1980 में योजना आयोग का उपाध्यक्ष और 1982 में रिजर्व बैंक का गवर्नर। डॉ. मनमोहन सिंह एक अर्थशास्त्री के तौर पर देश ही नहीं विदेशों में भी जाना माना नाम हो चुके थे। 1984 के चुनावों के बाद कांग्रेस का खुद के बलबूते पूर्ण बहुमत लाना इतिहास की बात होने वाली थी। सरकार गिरी तो डॉ. मनमोहन सिंह की भी विदाई हुई।

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