कहानी अंतरिक्ष के 'महाबली' PSLV की, जिसकी मदद से इसरो मंगल और चांद पर फहरा चुका है तिरंगा; अब सूर्य की बारी

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) भारत का तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है। यह पहला भारतीय प्रक्षेपण यान है जो तरल चरणों से सुसज्जित है। अक्टूबर 1994 में अपने पहले सफल प्रक्षेपण के बाद, पीएसएलवी भारत के एक विश्वसनीय और बहुमुखी लॉन्च वाहन के रूप में उभरा है।

अंतरिक्ष का महाबली पीएसएलवी रॉकेट (फोटो- ISRO)

इसरो ने आज अपना सूर्य मिशन अंतरिक्ष में भेज दिया है। इससे पहले चांद और मंगल पर इसरो अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है। साथ ही कई सैटेलाइट को भी पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर चुका है। इन सभी मिशनों में एक चीज कॉमन थी, वो है पीएएसएलवी (PSLV) रॉकेट, जिसे अंतरिक्ष का महाबली भी कहा जाता है। यह एक के बाद एक मिशन को सफलता से अंजाम दे रहा है।

तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) भारत का तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है। यह पहला भारतीय प्रक्षेपण यान है जो तरल चरणों से सुसज्जित है। अक्टूबर 1994 में अपने पहले सफल प्रक्षेपण के बाद, पीएसएलवी भारत के एक विश्वसनीय और बहुमुखी लॉन्च वाहन के रूप में उभरा है। इस रॉकेट ने कई भारतीय और विदेशी ग्राहक उपग्रह लॉन्च किए हैं।

महत्वपूर्ण मिशनों में अहम रोल

रॉकेट ने भारत के पहले अंतरग्रहीय मिशन चंद्रमा मिशन -1 या चंद्रयान -1 के लिए 22 अक्टूबर, 2008 को अपनी पहली उड़ान भरी थी। 5 नवंबर 2013 को, रॉकेट का उपयोग भारत के पहले मंगल मिशन के लिए किया गया था, जिसे मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) कहा जाता है। अपनी पहली उड़ान के लगभग 15 साल बाद और अपने 25वें मिशन पर, पीएसएलवी-सी57 नामक रॉकेट का उपयोग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा एक अन्य अंतरग्रहीय मिशन, सूर्य का अध्ययन करने के लिए गया है।

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