क्या है गुरु शिष्य परंपरा? जब सुधांशु त्रिवेदी ने दुनिया को समझाया ऋषि-मुनियों की शिक्षा पद्धति का मतलब

Sudhanshu Trivedi: 'गु' का अर्थ होता है अंधकार और 'रू'का अर्थ है निवारण। जो अंधकार का निवारण कर दे वही गुरू है। सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, हमारे यहां कहा जाता है कि किस गुरू से दीक्षा ली? उन्होंने कहा, शिक्षा लेने के लिए गुरू की आवश्यकता नहीं है।

सुधांशु त्रिवेदी

Sudhanshu Trivedi: भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। कहीं गुरु को 'ब्रह्मा-विष्णु-महेश' कहा गया है तो कहीं 'गोविन्द'। गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु (शिक्षक) अपने शिष्य को शिक्षा देता है या कोई विद्या सिखाता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रूप में दूसरों को शिक्षा देता है। यही क्रम चलता जाता है। यह परम्परा सनातन धर्म की सभी धाराओं में मिलती है।
भाजपा नेता व प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने दिल्ली विश्वविद्यालय में गुरू-शिष्य की परम्परा को लेकर एक व्याख्यान दिया था। इसमें उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का एक मात्र देश है, जो खुद को भारत माता कहता है और जब पुल्लिंग की बात होती है जगतगुरू थे। उन्होंने कहा, भारत में गुरू और शिष्य परंपरा थी।

पश्चिम संस्कृति से प्रभावित है हमारी शिक्षा का कॉन्सेप्ट

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, शिक्षा के संदर्भ में हमारे कॉन्सेप्ट पश्चिम से प्रभावित हैं। हमारे बच्चे बहुत अंग्रेजी और अन्य भाषाएं पढ़ने लगे हैं, इसलिए अपने मूल फंडामेंटल कॉन्सेप्ट से अलग होने लगे हैं। जब डिग्री लेना होता तो उसे हिंदी में दीक्षांत समारोह कहा जाता है, इसे शिक्षांत समारोह नहीं कहते हैं। हमारे यहां कहा जाता है कि किस गुरू से दीक्षा ली? उन्होंने कहा, शिक्षा लेने के लिए गुरू की आवश्यकता नहीं है। बाजार में किताबें उपलब्ध हैं, इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा, मैं इंजीनियरिंग का विद्यार्थी रहा, लेकिन इतिहास में रुचि हुई तो इतिहास की किताबें पढ़ लीं। अगर आपको अर्थशास्त्र में रुचि हो तो आप एक साल में 30 से 40 किताबें पढ़ लीजिए, इसके बाद आप अर्थशास्त्र के विद्वान हो जाएंगे।
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