Electoral Bonds Scheme: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया बड़ा झटका, चुनावी बॉन्ड योजना असंवैधानिक करार

SC on Electoral bond scheme: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को अंसवैधानिक करार दिया है। अदालत में क्या फैसला हुआ समझते हैं।

सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court electoral bonds: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को अंसवैधानिक(electoral bond scheme unconstitutional) करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केंद्र के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा(supreme court electoral bonds)
  • अनाम चुनावी बॉन्ड संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संबद्व बैंक चुनावी बॉन्ड को जारी करने से रोके।
  • एसबीआई 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का ब्योरा निर्वाचन आयोग को सौंपे।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
  • एसबीआई उन राजनीतिक दलों के विवरण निर्वाचन आयोग को दे जिन्हें 12 अप्रैल 2019 से अब चुनावी बॉन्ड के जरिए धनराशि मिली है।
  • एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बॉन्ड का मूल्य एवं तारीख सहित विवरण देना होगा।

सरकार ने 2018 में बांड योजना अधिसूचित किया था

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बांड योजना को सरकार ने दो जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।

बॉन्ड योजना में ये प्रावधान

योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बांड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर को कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा दायर याचिकाओं सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी।

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