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राज्य सरकारें SC-ST में बना सकती हैं सब-कैटेगरी, सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के फैसले को पलटा, जानिए क्या-क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उपवर्गीकृत करने से रोकता हो। उपवर्गीकरण का आधार राज्य के सही आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट

Sub-classification Within SC-ST: सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से फैसला दिया है कि राज्य सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती हैं। सात जजों की बेंच ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए 5 जजों के फैसले को पलट दिया है। 2004 में दिए उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एसी/एसटी जनजातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती। चीफ जस्टिस ने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उपवर्गीकरण यानी कैटेगरी अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि इन उपवर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है।

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6:1 के बहुमत से फैसला दिया

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था दी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए। बहुमत के फैसले में कहा गया है कि राज्यों द्वारा उप-वर्गीकरण को मानकों व आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए।

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